महाराज जी के अनमोल वचन जब भजन में शब्द कम या न सुनाई दे, ऐसे में उचित है की उस वक़्त उसी स्थिती में रह कर ध्यान करे फिर भी यदि ‘शब्द’ सुनाई न दे या स्पष्ट न हो, तो स्वरुप का ध्यान कर के ही उठ जाय और फिर किसी और वक़्त ‘भजन’ में बैठे, यदि फिर भी ‘शब्द’ न खुले तो ‘स्वरुप’ का ही ध्यान करे और रोज़ करते रहे, जब तक कि ‘शब्द’ खुल न जाय, इस प्रयास में चार-छह दिन या दो हफ्ते भी लग जाए पर राधास्वामी दयाल की दया से, कम या ज़्यादा ‘शब्द’ ज़रूर खुलेगा, जब भजन में परमार्थी बैठे और विचार संसारी मन पर हावी होने लगें और हटाने से भी न हटें तो उचित है कि उसी स्थिती में ध्यान और सुमिरन ही करे, जब ध्यान में मन लग जाएगा तो विचार स्वतः ही दूर हो जायेंगे, फिर भी यदि मन में तरंगें उठती ही रहे तो सुमिरन ही करे मन,सुरत और अंतर द्रष्टी को सहसदलकंवल पर टिका कर करे, इस तरीके से निश्चित ही सुमिरन का रस आयेगा और मन निश्चल हो जाएगा, तब फिर चाहें ध्यान करे चाहें भजन और जो मन शान्त हो गया हो तो चाहे उठ जाए, अंतर के अभिलाषी पर्मार्थियों की अक्सर शिकायत होती है कि, मन भजन और ध्यान में नहीं लगता और संसारी ख्याल ज़्यादा उठाता है, तब भी उपरोक्त उपाय ही करना चाहिए यानी दस पंद्रह दिन नियम से रोज़ एक घंटा ‘नाम धुन’ सुने इससे मन की सफाई होगी और रस भी कुछ-आने लगेगा, जिससे ध्यान व् भजन में भी सजगता बढ़ती जायेगी ।
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