गुरु प्यारी साध संगत जी आज डेरा ब्यास में 45 मिनट तक गुरु अमर दास जी की वाणी पर सत्संग फरमाया गया सत्संग के बोल कुछ इस तरह है शुरुआत में आप जी ने फरमाया की मालिक निराकार है उसका कोई आकार नहीं वह कण कण में है रोए रोए में है आप जी फरमाते हैं यह संसार माया रूपी है इसका आकार है यहां कुछ ना कुछ बदलता रहता है और जो चीजें माया के अधीन होती हैं वह बदलती हैं लेकिन सत्य कभी नहीं बदलता वह परमात्मा निराकार है सतनाम है यह सब उसके हुक्म से ही हो रहा है कोई उसके हुक्म से बाहर नहीं है वह जिसको चाहे अपने से मिला लेता है उसकी दया हम सब पर अपार हो रही है लेकिन यह जो हमारी इंद्रियां है इनके कारण ही हमारा ध्यान दुनिया में फैलता है अगर हम अपनी इंद्रियों को अंदर की तरफ उनका रुख को कर दें तो हम अपने निजधाम सचखंड पहुंच सकते हैं लेकिन हम तो मोह माया में फंस कर रोजाना व्यर्थ के कार्य करते हैं जिनके करने का कोई फायदा नहीं हम दुनिया के स्वाद इन इंद्रियों के जरिए लेते हैं हम दुनिया की शक्ल पदार्थों में और माया में बुरी तरह फंसे हुए हैं हमें उस कुल मालिक की कोई खबर नहीं अगर कभी भूले भटके भी उसकी याद में बैठ जाते हैं तो दुनिया की ही ख्वाहिश उसके आगे रखते है और वही मालिक से मांगना शुरू कर देते हैं हमारा मन हमें दुनिया में ही उलझाए जाए रखता है उस मालिक के लिए कभी रोता नहीं हमेशा दुनिया के पदार्थों के लिए रोता रहता है हमें कभी चैन नहीं मिलता हम सब की ऐसी दौड़ लगी हुई है कि हमें पता ही नहीं हम कहां से आए हैं और किसकी अंश है यह तो हमें पूर्ण संत महात्मा अपनी कृपा कर कर ही हमें बता सकता है हमें सही रास्ता दिखा सकता है क्योंकि उस कुल मालिक ने नाम के खजाने की चाबी पूर्ण संत महात्मा के हाथों में दी होती है केवल वही नाम की बख्शीश करके अपने शिष्यों को मालिक से मिला सकते हैं और आप जी फरमाते हैं कि इस संसार में जब हम किसी सुंदर चीज को देखते हैं हम उसकी तरफ आकर्षित होने लगते हैं हम माया में फंसते चले जाते हैं और यह पांच चोर काम क्रोध लोभ मोह अहंकार अपना प्रचंड रूप लेकर हम पर हावी होते हैं और हम इन में फंस जाते हैं हम निकलने की कोशिश करते हैं लेकिन और नीचे दस्ते जाते हैं एक पूर्ण संत महात्मा ही अपनी बाजू हमें पकड़ा कर हमको इस दलदल से बाहर निकाल सकता है सतगुरु की बाजू परमात्मा जैसी लंबी होती है जो कि अपने शिष्यों को इस दलदल से निकाल सकती है सद्गुरु की कृपा परमात्मा जैसी विराट होती है सतगुरु की देखने की क्षमता परमात्मा जैसी विशाल होती है सतगुरु और परमात्मा में कोई भी अंतर नहीं है संत महात्मा जानते हैं कि यहां पर सब रिश्ते नाते झूठे हैं लेकिन हम इनसे ऐसे जुड़े हैं कि जब हमसे कोई जुदा होता है तो हम फूट-फूट कर रोने लगते हैं लेकिन सतगुरु जानते हैं कि यह संसार मोह माया है वह कभी इसमें उलझते नहीं लेकिन हम इनमें बुरी तरह से उलझे हुए हैं तो जब कोई शिष्य अपने सतगुरु के पास जाता है तो वह उन्हें भी यही शिक्षा देते हैं और अगर शिष्य अपने सतगुरु के हुक्म को मानकर अपने सतगुरु के भाने को मानकर जो वह कहते हैं वह करता है तो वह शिष्य को भी अपने जैसा बना लेते हैं एक सच्चे सतगुरु एक पूर्ण सतगुरु अपनी दया मेहर की कमी अपने शिष्य पर कभी नहीं होने देते ,उनकी दया अपने शिष्य पर अपार होती है जैसे वह परमात्मा से मिले होते हैं लीन रहते हैं वैसे ही अपने शिष्य को भी वह जांच सिखा देते हैं और वह शिष्य भी वैसा ही बन जाता है अपने शिष्य को भी वह अपने जैसा ही बना लेते हैं गुरु प्यारी साध संगत जी हमें भी चाहिए हमें अपने सतगुरु के भाने को मानकर उनके हुक्म को मानकर अभ्यास में पूरा वक्त देना है अपने सतगुरु की खुशी प्राप्त करनी है बाबा जी की खुशी प्राप्त करनी है । राधा स्वामी जी ।
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