Baba ji ka satsang 16/02/2020 । बाबा जी ने ऐसा क्या कहा जिसे सुनकर संगत रोने लगी । ज़रूर सुने

आज डेरा ब्यास में बाबा जी ने लगभग एक घंटा 15 मिनट तक सत्संग फरमाया सत्संग की शुरुआत में आप ने बताया कि दो महात्मा हुए हैं एक तुलसी साहब और तुलसीदास यह तुलसी साहब की वाणी है शेक तकी तुलसी साहिब के पास रूहानियत का ज्ञान लेने आया था ,तुलसी साहिब ने शेक तकी का धर्म बदलने की कोशिश नहीं की ,शेक तकी को कुरान का हवाला देकर समझाया कि अगर तूं उस खुदा से मिलना चाहता है  ,तो तुझे उस जगह को साफ करना होगा जहां उस कुल मालिक को बिठाना है ,महापुरुषि हमें एक की भक्ति में लगाने के लिए आते हैं लेकिन हम अनेकता में फंसे हुए हैं और अगर कोई संत महात्मा हमारे दरमियान आ जाए और कुल मालिक की बातें बताएं तो हम सबसे आसान रास्ता निकालते हैं कि उसी के शरीर को पूजना शुरू कर देते हैं भाई हमें किसी शरीर की बंदगी नहीं करनी, किसी शरीर की भक्ति नहीं करनी क्योंकि शरीर की हद शमशान घाट तक है वह शमशान घाट के आगे नहीं जा सकता भाई हमें उस कुल मालिक की भक्ति करनी है उस एक की भक्ति करनी है हमें किसी अनेकता में नहीं फसना, आप जी ने फरमाया कि जब से इंसान इस सृष्टि में आया है हमने सभी चीजों को बांटना शुरू कर दिया ,और यहां तक कि जो चीज बांटी भी नहीं जा सकती हमने तो उस मालिक को भी बांट लिया तो उसके बाद बाबा जी ने फरमाया की हम ब्यास क्यों आए हैं क्या जरूरत थी हमें यहां आने की ,भाई हमें उस कुल मालिक की भक्ति करनी है हमें अनेकता में नहीं फसना है और आपने यहां पर बड़े अफसोस से यह कहा कि इंसान जितना मजब को लेकर आपस में लड़ता है शायद ही किसी और चीज के कारण लड़ता हो, हम मज़्ब के लिए एक दूसरे को मारने काटने के लिए तैयार हो जाते हैं और जहां पर आप ने फरमाया कि मजबो की नींव तो प्रेम प्यार के आधार पर रखी गई थी लेकिन हमने समझा नहीं हम अनेकता में फस गए उसके बाद बाबा जी ने बताया कि अगर उस कुल मालिक की कोई जात नहीं है उसका कोई धर्म नहीं है तो इंसान की क्या जात हो सकती है आपने यहां पर उदाहरण देकर बताया कि अगर सूरज की कोई जात नहीं है सूरज का कोई धर्म नहीं है तो मामूली किरण की क्या जात हो सकती है अगर समुंदर की कोई जात नहीं है तो मामूली बूंद की क्या जात हो सकती है तो आपने फरमाया कि हम इस अनेकता में फंसे हुए हैं , हमें इन सब चीजों से ऊपर उठकर उस कुल मालिक की भक्ति में लगना है उसके बाद बाबा जी ने फरमाया कि हम यहां पर सुबह-सुबह उठकर सत्संग सुनने के लिए आए हैं लेकिन हमने अगर कुछ सीखा ही नहीं अमल ही नहीं किया तो क्या फायदा हुआ यहां पर किसी ने आप की हाजरी तो नहीं लगानी तो क्या फायदा हुआ और उसके बाद आप जी ने फरमाया कि कुछ लोगों को यह भ्रम रहता है कि वह कहते हैं कि हमने उस गुरु से नाम दान लिया है वह बहुत ही पहुंचे हुए गुरु है तो बाबा जी ने यहां पर फरमाया की भाई वो पहुंचे होंगे लेकिन उससे तुम्हें क्या मिलेगा , तो आप जी ने फरमाया कि हमें जो भी मिलेगा अपनी करनी का मिलेगा कोई हमारे करम ले नहीं सकता और कोई अपने कर्म हमें दे नहीं सकता सबको अपने कर्मों का हिसाब किताब देना पड़ेगा और उसके बाद आप जी ने फरमाया कि अगर आप सोचते हैं कि मेरी भक्ति करने से आपका पार उतारा हो जाएगा ,भाई हमें जो मिलेगा हमारी करनी का मिलेगा लेकिन हम तो कह देते हैं जी हमारे पास वक्त नहीं है हम पर बहुत जिम्मेदारियां हैं तो भाई फिर वक्त किसके लिए है जिसने आपको यह सब कुछ दिया है यह धन दौलत यह बाल बच्चे यह सब उसी के दिए हुए हैं और अब आप कहते हो कि हमारे पास उसके लिए वक्त नहीं है तो आप जी ने यहां पर बड़े अफसोस के साथ कहा कि इस सृष्टि में सबसे नाशुक्रा जीव इंसान है और फिर आप ने कहा कि भाई उस के दरबार में हमारी धन दौलत, हमारे बाल बच्चे यह सब नहीं देखा जाएगा उसके घर तो केवल नाम की पहचान है और किसी चीज की नहीं , तो हमें इन सब चीजों से ऊपर उठकर उसकी भक्ति करनी है और आप ने कहा कि हमें कदर नहीं है हमें कदर करनी आनी चाहिए जो कुछ भी उसने हमें दिया है और उसके बाद आप जी ने फरमाया कि इंसान मैं और मेरी में बुरी तरह फंसा हुआ है आपने फरमाया की हजूर अपने सत्संग में यह बात कहा करते थे कि देखो एक इंसान गाड़ी में बैठा हुआ है और उसने अपने सिर पर अपना बैग रखा हुआ है और उसके साथ वाले उसको कहते हैं कि भाई इसको नीचे रख दो यह आप क्यों अपने ऊपर ले कर बैठे हो, यह ट्रेन आपका बैग भी वही ले जाएगी जहां आप जा रहे हैं लेकिन नहीं वह कहता है यह मेरा है तो बाबा जी ने यहां पर कहा कि ऐसे ही हम अपने कर्मों का बार अपने सिर पर लिए हुए हैं और अगर वह मालिक कहे कि भाई इसे मुझे दे दो वहां पर इंसान कह देता है नहीं यह मेरा है भाई फिर उठाओ अपना बोझ , तो ऐसी हालत हमारी है हम बुरी तरह से मैं और मेरी में फंसे हुए हैं ,मालिक तो शुरू से ही हमें देता आया है लेकिन हमें कदर नहीं है भाई हमें कदर करनी आनी चाहिए और फिर बाबा जी ने फरमाया कि भाई जितनी मर्जी सेवा कर लो जितने मर्जी सत्संग सुन लो कुछ नहीं होने वाला जो कुछ भी आपको मिलेगा आपकी भजन बंदगी के जरिए मिलेगा जो भी आपको मिलेगा आपकी करने का मिलेगा और यहां पर आपने उदाहरण दी कि जैसे एक छोटा बच्चा है वह अपने मास्टर की बहुत इज्जत करता है रोज सुबह जाकर उनके पैर छूता है लेकिन वह पढ़ाई नहीं करता तो क्या फायदा हुआ , हमारी हालत भी ऐसी ही है इसलिए हमें करनी में लगना है और हमें जो कुछ भी मिलेगा अपने अंदर से ही मिलेगा । भाई सच्चा शिष्य वही है जो अपने गुरु के हुक्म को माने और अपने गुरु के हुक्म को मानकर रूहानियत के पथ पर आगे बड़े और अपने गुरु का नाम रोशन करे वही सच्चा संत सिपाही है हमें भी कुछ कर कर दिखाना है बनकर दिखाना है कही सुनी बातों में हमें नहीं आना ।अंत में आप जी ने फरमाया कि हमें उस मालिक की भक्ति में लगना है बाकी सब उसके ऊपर छोड़ देना है हमें अपने बर्तन को साफ रखना है और बाकी जिम्मेवारी उस कुल मालिक की है ।

राधा स्वामी जी

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