गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक बुजुर्ग सत्संगी की है जिन्हें बड़े बाबा जी महाराज सावन सिंह जी से नाम दान मिला हुआ था आप जी मृत्यु के समय का हाल बयान करते हैं आप जी कहते हैं कि मुझे महाराज सावन सिंह जी से नामदान मिला और जैसे कि नाम दान के समय बताया जाता है कि भजन बंदगी करनी है नाम की कमाई करनी है और इन असुरों पर चलना है लेकिन मैंने अपनी जिंदगी में नाम की कमाई नहीं की लेकिन गुरु घर की सेवा दिन रात की मैंने महाराज जी से बहुत बार कहा भी की भजन सिमरन नहीं होता और मैंने भजन सिमरन नहीं किया लेकिन सतगुरु की कृपा से सेवा बहुत की थी तो जब मेरा मृत्यु का समय आया तब मुझे तकलीफ होने लगी और मुझे यह देखने को मिला कि जमदूत मुझे लेने आए हैं और मैं बहुत डर गया था और मेरे मन में कुछ सवाल भी चल रहे थे कि यह क्या मैंने तो गुरु घर की इतनी सेवा की है बाबा जी से नाम दान भी मिला हुआ है लेकिन मुझे जमदूत क्यों लेने आए हैं मुझे तो बाबा जी को लेने आना चाहिए था जब उसने बाबा जी को याद किया बाबाजी के आगे अरदास की विनती की तब बाबाजी आ गए और उसने यह देखा कि जब बाबा जी आए वह जमदूत भाग खड़े हुए वह वहां पर 1 मिनट भी रुक नहीं पाए वह इस दृश्य को देखकर थोड़ा आश्चर्यचकित हुआ और उसने बाबा जी से यह कहा कि बाबा जी मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ मुझे जमदूत क्यों लेने आए तो आप जी ने बड़े ही प्रेम और प्यार से कहा कि भाई मैं सत्संग में कितना समझाता था की नाम की कमाई के बिना शब्द की कमाई के बिना आगे जाना मुश्किल है लेकिन मेरे कुछ बच्चे मानते ही नहीं और कह देते हैं कि हमसे भजन सिमरन नहीं होता तो इसलिए उनके साथ ऐसा होता है तुमने जी जान से संगत की सेवा की थी और जो मेरी संगत की सेवा करता है उसे मैं हर हाल में सचखंड लेकर जाता हूं इसलिए तुझे लेने तो मैं ही आने वाला था वैसे बातें सुनकर खुश हो गया और मुस्कुराहट के साथ उसमें अपने प्राण त्याग दिए गुरु प्यारी साध संगत जी हम अक्सर कहते हैं कि हमसे भजन सिमरन नहीं होता हमें समय नहीं मिल पाता लेकिन अगर हमने गुरु घर की थोड़ी सी भी सेवा की है संगत की सेवा की है तो उसका फल भी वह कुल मालिक हमें देता है लेकिन जैसे कि सत्संग में फरमाया जाता है कि नाम की कमाई के बिना शब्द की कमाई के बिना पार उतारा नहीं हो सकता क्योंकि नाम की कमाई के बिना जीव को आगे जाने में बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और जिसने जीते जी नाम की कमाई की होती है शब्द की कमाई की होती है वह सनी से मालिक से मिल जाता है ।
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