बाबू सावन सिंह को जयमल सिंह का आशीर्वाद और राधा स्वामी और हाल यह है कि तार आपका आया है आपने लिखा है कि मैं बहुत बीमार हूं जल्दी आओ, सो मेरा आना नहीं हो सकता है किस कारण से ? ईटों का भट्ठा चढ़ चुका है उसको आग देनी है और आदमी कोई नहीं मिलता साथ ही बारिश होती रहती है और डेरे में आदमी कोई नहीं है आने का कोई मौका नहीं बन रहा है हम दो बार यहां से चले थे पर ईटो वाले वापस ले जाते हैं यहां का काम नहीं चल सकेगा जब भट्ठा पक जाएगा तब 10 15 दिन के लिए आ जाएंगे और अब कोई फिक्र नहीं करना हजूर दीन दयाल दया मेहर करके बक्श देंगे क्योंकि जो जो कर्म पिछले जन्म का है इसी वक्त भुगतना है संतों के संगी का फिर जन्म नहीं होता विपत पड़े धीरज धरना चाहिए फिर वह कर्म अपने आप सुख दुख होकर हट जाते हैं जिस जिस वक्त शरीर के कष्ट हो उसी वक्त सतगुरु का ध्यान करो और शब्दों को पकड़ो तब शब्द गुरु उनके रास्ते फौरन दया मेहर भेजेंगे जो जो कर्म भुगतने होंगे उनकी तकलीफ होगी, बाकी सब बख्शे जाएंगे उनके हुक्म के बिना कुछ नहीं हुआ है और मुझे जल्दी ही फिर समाचार भेजना शब्द रूप सतगुरु आपके पास है और हमें खबर जरूर भेजनी चाहिए जी सतगुरु आपके अंग संग है हजूर दीनदयाल अकाल पुरुष बहुत-बहुत दया मेहर करेंगे देह तो सबकी ही छूटनी है इसका क्या अंदेशा है जी शब्द तो नहीं छूटना है तो आपका घर तो शब्द है कोई फिक्र नहीं करना जी पर मुझे जल्दी समाचार जरूर भेजना बीबी की राधास्वामी पहुंचे और इस समय मैं आपके पास आने में मजबूर हूं इसलिए नहीं आ पाया 100000 इंटे भट्ठी पर चढ़ गई हैं अब और नहीं डालनी है इतनी ही बहुत है
यह चिट्ठी आप जी ने 8 मई 1897 को लिखी।
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