गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक सत्संगी बीबी की है साध संगत जी हजूर महाराज जी के समय की बात है एक बीबी का महाराज जी से बहुत लगाव था महाराज जी से बहुत प्रेम था वह अक्सर डेरा ब्यास जाया करती हजूर महाराज जी से मिला करती और उनके दर्शन किया करती और वहां रहकर संगत की खूब सेवा किया करती वह अकेली थी जो अपने परिवार में से डेरा ब्यास आती थी और जिसने हजूर महाराज जी से नाम दान लिया हुआ था लेकिन उसका परिवार सत्संगी नहीं था एक वही बीबी थी जो कि डेरा ब्यास जाया करती और महाराज जी के कहे अनुसार अपना जीवन व्यतीत करती उसके घर वाले अक्सर उसे रोकते थे कि वे डेरा ब्यास ना जाया करें और कई तरह की मुश्किले उसके लिए खड़ी करते थे लेकिन फिर भी वह बीबी किसी भी तरह से कोई ना कोई बहाना बनाकर डेरा ब्यास में सेवा के लिए वक्त निकाल ही लेती थी और हजूर महाराज जी से कहा करती कि महाराज जी मेरे परिवार के ऊपर भी दया मेहर करो उनको भी अपने चरणों के साथ लगा लो वह अक्सर मुझे यहां आने के लिए रोकते हैं और मुझे सेवा पर नहीं जाने देते आप उन पर कृपा करो कि वह भी डेरा ब्यास आने लग जाए और आप से नाम दान ले ले महाराज जी मुस्कुरा पड़े और बस थोड़ा सा सिर हिला दिया उसके बाद कुछ दिनों के बाद वह बीबी से रोटी बनाते वक्त घर में रोटी जल गई जिसके कारण उसके पति को बहुत गुस्सा आया क्योंकि वह जब रोटी खाने लगा तो उसने देखा कि यह तो जली हुई है इसे क्या रोटी भी नहीं बनानी आती उसे इस बात पर इतना गुस्सा आया कि वह उसे बुरा भला बोलने लग गया और जिस चूल्हे पर रोटी बना रही थी उसने वहां से कोयले निकालकर उसके हाथों पर रख दिए जब उसने ऐसा किया वह बीबी ने उसी वक्त सतगुरु का ध्यान धरा और महाराज जी का सिमरन करने लग गई उसकी आंखों में आंसू भी आए क्योंकि उसके हाथ जल रहे थे जब उसने महाराज जी का सिमरन शुरू किया और कुछ देर बाद उसने अपने हाथों को देखा उसके हाथ बिल्कुल ठीक हो गए थे उसके हाथ नहीं जले और उधर महाराज जी कुछ काम कर रहे थे और एक सेवादार उनके पास था उसने देखा कि महाराज जी के हाथों को क्या हुआ इन पर शाले क्यों पड़ गए महाराज जी ने तो ऐसा कोई भी काम नहीं किया उसने उसी वक्त महाराज जी से कहा महाराज जी यह आपके हाथों में छाले पड़ गए हैं महाराज जी ने अपने दोनों हाथों को देखा और एक प्यारी सी मुस्कुराहट की तरफ उस सेवादार की तरफ देखा वह सेवादार हैरान रह गया कि महाराज जी के हाथों पर छाले पड़े हुए हैं और वह मुस्कुरा रहे हैं साध संगत जी गुरु हमारे लिए क्या-क्या नहीं करता सतगुरु हमारे लिए क्या-क्या नहीं करते वह हमारे कष्ट भी अपने ऊपर ले लेते हैं वह जानते हैं कि मेरे बच्चे इन्हें नहीं झेल पाएंगे तो वह हमारे कष्ट अपने ऊपर ले लेते हैं लेकिन हम फिर भी उनका कहा नहीं मानते हम अपनी मनमर्जी करते हैं वह तो हमसे केवल एक ही चीज मांगते हैं नाम की कमाई शब्द की कमाई लेकिन हमारे पास तो वक्त ही नहीं है हमारे पास तो समय ही नहीं है वह हम पर इतनी कृपा करते हैं जिसका कोई अंत नहीं वह हर पल हमारे अंग संग है हमारे साथ हैं हम ही उनके साथ नहीं है क्योंकि हम उनका कहा नहीं मानते हम उनके कहे गए वचनों पर नहीं चलते लेकिन देखो सतगुरु की दया इतनी है वह फिर भी हमारी देखभाल करते हैं जैसे कि बाबा जी ने अपने एक सत्संग में भी फरमाया था कि अगर बच्चे कहना नहीं मानते तो क्या हुआ बाप का फर्ज होता है उनकी देखभाल करना उनको समझाना वह अपने फर्ज को कभी नहीं भूलता ।
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