गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी महाराज सावन सिंह जी के समय की है साध संगत जी जब महाराज सावन सिंह जी हुआ करते थे तब कुछ अभ्यासी ऐसे थे जो महाराज जी से सीधी बात कर लिया करते थे और उनकी बात महाराज जी से आसानी से हो जाया करती थी क्योंकि संगत भी ज्यादा नहीं हुआ करती थी ऐसे ही एक अभ्यासी था जो कि डेरा ब्यास के नजदीक का था जो अक्सर डेरे में जाकर सेवा किया करता और उसने महाराज सावन सिंह जी से नाम दान भी लिया हुआ था उसकी रुहानियत में बहुत रुचि थी वह संगत से काफी समय तक रूहानियत के बारे में बातें करता रहता और उसने किताबें भी बहुत पड़ी थी इसलिए उसे ज्ञान भी बहुत था तो जब भी संगत का इकठ देखता तो उनको रूहानियत के बारे में बताने लग जाता ,संगत भी उसकी यह बातें सुनने बैठ जाती जिससे बहुत संगत उस अभ्यासि का मान आदर करती थी तो ऐसे ही 1 दिन महाराज जी को पता लगा जब यह बात महाराज जी तक पहुंची तब महाराज जी ने उसे बुलाया और उससे कुछ देर बातें की महाराज जी ने कहा भाई बैठ जाओ मैंने सुना है कि आप संगत को बहुत सारी सखियां सुनाते हो उनको रोहानियत के बारे में बताते हो उस अभ्यासी ने कहा महाराज जी यह तो आपकी कृपा है मैं तो कुछ भी नहीं जो भी करते हो आप ही करते हो तो महाराज जी मुस्कुरा पड़े और महाराज जी ने उस अभ्यासी को कहा कि भाई जो तुम बातें संगत से करते हो क्या उसका अनुभव तुम्हें खुद है क्या तुमने कभी सचखंड देखा है अनुभव किया है तो उस अभ्यासी ने कुछ नहीं कहा और कुछ देर बाद वह बोला महाराज जी मेहनत तो बहुत करता हूं भजन बंदगी को पूरा समय देता हूं लेकिन फिर भी बात नहीं बनती मैं क्या करूं महाराज जी ने कहा ठीक है भाई आज से इतना समय भजन बंदगी को देना शुरू कर दो और किसी से कोई बात नहीं करनी और कहा वही बातें दूसरों से करनी चाहिए जो हमने खुद अनुभव की हो और भजन बंदगी को इतना समय जरूर देना, तो उसने ऐसा ही किया वह रोजाना भजन सिमरन को ज्यादा वक्त देने लगा और जब कुछ महीनों के बाद वह महाराज जी से मिला तो महाराज जी ने उसकी तरफ देखा महाराज जी jaan-e-jaan थे , अंतर्यामी थे तो महाराज जी ने उससे कहा कैसे हो , वह महाराज जी के चरणों में गिर पड़ा उसने कहा महाराज जी मैं तो ऐसे ही बातें किया करता था लेकिन अब मुझे पता चल गया है इस सत्य को कहा ही नहीं जा सकता शब्दों में जाहर नहीं किया जा सकता अब अगर मुझसे कोई पूछे तो मुझसे कहा ही नहीं जाएगा क्योंकि उसको बताने के लिए कोई शब्द ही नहीं है और ना ही आज तक बने है यह बातें सुनकर महाराज जी खिलखिला कर मुस्कुरा पड़े और महाराज जी ने उसको अपने सीने से लगाया ।
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