गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी महाराज सावन सिंह जी के समय की है साध संगत जी एक सत्संगी परिवार डेरा ब्यास के नजदीक का था जो कि डेरा ब्यास में अक्सर जाया करता और सेवा किया करता साध संगत जी उस परिवार में एक बुजुर्ग बीबी थी जोकि बहुत कमाई वाली थी और उन्हें महाराज सावन सिंह जी से नामदान मिला था साध संगत जी वह बीवी की कमाई इतनी थी कि वह घंटों भजन सिमरन में बैठी रहती कभी-कभी दिन रात का भी ख्याल नहीं होता खाने पीने का भी ख्याल नहीं होता , पूरे गांव वालों को पता था की माताजी बहुत कमाई वाली है उन्हें जब भी कोई परेशानी आती तो वह माताजी से मिलने चले जाते क्योंकि माताजी पर बाबा जी की कृपा अपार थी वह दिन-रात मालिक की भजन बंदगी में ही रहती थी तो साध संगत जी और भी लोगों को पता चलने लगा कि माताजी लोगों की परेशानियां दूर करती है जब यह बात महाराज सावन सिंह जी तक पहुंची और महाराज जी हंस पड़े और एक दिन वह मांझी डेरा ब्यास में महाराज जी के दर्शन करने गई हुई थी महाराज जी ने मांझी को कहा कि मुझे पता लगा है कि आप लोगो की परेशानियां दूर करते हो मांझी ने कहा महाराज जी आप तो सब जानते हो मुझे बताने की क्या जरूरत है महाराज जी ने मांझी को यही कहा कि आप कम बोला करें यह कमाई बहुत मुश्किल से एकत्रित होती है इसे ऐसे ही जाया ना करें बस यह बातें उन्होंने मांझी को कहीं और मांझी को समझ आ गया था कि महाराज जी मुझे क्या समझाना चाहते हैं और उसके बाद उन्होंने कभी भी किसी से कुछ नहीं कहा और वह दिन रात भजन सिमरन में ही रहती उन्होंने परिवार वालों से भी बोलना कम कर दिया था वह अपने आप में समय व्यतीत करने लगी और महाराज जी की कृपा उन पर अपार रहने लगी साध संगत जी गुरु की इस मार्ग पर बहुत ज्यादा जरूरत पड़ती है क्योंकि जब हम इस रास्ते पर चलते हैं तो कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो हमें समझ नहीं आती और हमें मिल जाती हैं तो उस समय गुरु ही हमें समझाता है हमें बताता है हमें रास्ता दिखाता है कि हमें अब क्या करना है कैसे आगे बढ़ना है ।
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