गुरु प्यारी साध संगत जी आज डेरा ब्यास में लगभग एक घंटा 7 मिनट तक हजूर स्वामी जी महाराज जी की वाणी पर बाबा जी द्वारा सत्संग फरमाया गया सत्संग की शुरुआत में आप जी ने फरमाया कि वह मालिक एक है और हम उसकी अंश है हमें उस एक की भक्ति करनी है लेकिन हमारा मन अनेकता में फंसा हुआ है भाई यह लड़ाई मन की ही है जो अपने मन को जीत जाता है वही सच्चा सूरमा कहलाता है लेकिन हम तो मैं और मेरी में बुरी तरह फंसे हुए हैं मन की यह मेल नाम की कमाई से ही दूर हो सकती है और किसी चीज से नहीं उदाहरण के तौर पर आप जी ने कहा कि जैसे कोई बर्तन गंदा हो जाता है बहुत ज्यादा गंदा हो जाता है तो जब हम उसे धोना शुरू करते हैं तो पहले उसकी पहली परत निकाली जाती है फिर दूसरी परत मेल की उतरती है और धीरे-धीरे बर्तन की चमक वापस आ जाती है ऐसे ही हमारे ऊपर भी बहुत सारी मन की मेले चढ़ी हुई हैं जिसे नाम की कमाई से ही दूर किया जा सकता है इसलिए संत महात्मा हमें समझाते हैं हमें हवाला देते हैं की भाई नाम की कमाई करो लेकिन हम तो यह समझ लेते हैं कि हमें नामदान मिल गया है बस कार्रवाई पूरी हुई भाई यह कोई कार्रवाई नहीं है नाम का मतलब सिर्फ इतना है कि आपको स्कूल में दाखिला मिल गया है आपको अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया है और कुछ नहीं , अगर आप कमाई करोगे तो इस भवसागर से पार हो जाओगे लेकिन हममें से बहुत ऐसे हैं जो नामदान लेकर भजन बंदगी नहीं करते यह तो फिर ऐसे ही हुआ जैसे कि हमने बच्चे को स्कूल में दाखिला दिला दिया और उसने आगे पढ़ाई नहीं की तो क्या वह पास हो पाएगा, नहीं हो पाएगा जब तक वह स्कूल नहीं जाएगा वहां जाकर पढ़ाई नहीं करेगा तब तक वह पास नहीं हो सकता ऐसे ही यह संतमत का मार्ग भी है इस मार्ग पर हमें करनी करनी है सुनी सुनाई बातों में नहीं आना खुद करना है पड़ी पढ़ाई बातों में नहीं आना और फिर आप जी ने फरमाया कि हम कह देते हैं जी मन हमारे ऊपर हावी हो गया है आप जी ने जहां पर सख्त होकर कहा कि मन में कोई ताकत नहीं है कि वह आपके ऊपर हावी हो ताकत उसे हम देते हैं मन में कोई ताकत नहीं है लेकिन हम तो तरह-तरह की बातें बनाते हैं कि मन ने यह सब करवा दिया काल ने यह सब करवा दिया भाई किसी का कोई कसूर नहीं है सब हमारे ऊपर ही निर्भर करता है हम ही मन को बढ़ावा देते हैं यहां पर आप जी ने फरमाया कि जैसे कि सिनेमा हॉल में कोई पिक्चर चल रही होती है और हम देख रहे होते हैं और पिक्चर में कुछ सीन ऐसे भी होते हैं जिनको देखकर आंसू आ जाते हैं और कुछ सीन खुशी वाले होते हैं जिनको देखकर हम हंसने लग जाते हैं लेकिन बाद में हमें ख्याल आता है कि यह तो एक पिक्चर है सच्चाई तो नहीं तो ऐसे ही हमारे साथ भी हो रहा है हम मन के पीछे लग कर इस माया को सत्य मान लेते हैं और मन हमें इसमें बुरी तरह फंसा देता है और हम पर हावी हो जाता है जबकि मन में कोई ताकत नहीं है हम ही मन को ताकत देते हैं और माया में फंसते चले जाते हैं आप जी ने फरमाया कि अगर हम उस मालिक से रिश्ता बनाएं उस मालिक की याद में बैठे तो हम अपने जीवन में एक बैलेंस रख सकते हैं और आप जी ने कहा कि हमें कोई घर बार छोड़कर कहीं नहीं जाना हमें तो दरमियान का रास्ता अपनाना है घर परिवार को भी देखना है जिम्मेदारियां भी निभानी है और परमार्थ की तरफ भी ध्यान देना है इसे ही दरमियान का रास्ता कहते हैं और आप जी ने यहां पर फरमाया कि जब भी हम किसी संत महात्मा को देखते हैं तो हम उसके पैरों को पकड़ना शुरू कर देते हैं उसके कपड़ों को हाथ लगाना शुरु कर देते हैं उसकी गाड़ी को हाथ लगाना शुरु कर देते हैं भाई अगर रुहानियत कपड़ों में होती इन सब चीजों में होती तो संत महात्मा ने पहले ही अपने कपड़े फाड़ कर आपको दे देने थे हम इन्हीं चीजों में फंसे हुए हैं हमें मालिक ने विवेक दिया है हमें सोचना चाहिए समझना चाहिए कि क्या करना है हर एक चीज का कोई ना कोई मकसद जरूर होता है आज भी हम सत्संग सुनने आए हैं क्या जरूरत पड़ी कि हम यहां चलकर आए कोई तो मकसद होगा ऐसा तो नहीं है कि बिना मकसद के हम घूमते फिरते रहे भाई मालिक ने हमें यह जीवन दिया है हमें यह मौका मिला है ताकि उसकी भक्ति की जा सके और इस भवसागर से पार जाया जा सके लेकिन हमारी हालत तो प्राय गधे जैसी है दूसरों का बोझ उठाते उठाते हम प्राय गधे बन जाते हैं और उसके बाद आप जी ने एक उदाहरण देकर बताया कि एक संत और एक उनके शिष्य जंगल में जा रहे थे और रात हो गई थी तो उस साधु महात्मा ने अपने शिष्य को कहा कि भाई जाओ जाकर लकड़ियां और घास फूस लेकर आओ रोटी बनानी है आग चाहिए तो उसने सोचा कि अगर मैं जंगल में गया तो कोई पहाड़ी जानवर निकल कर आ जाएगा और मेरी जान खतरे में पड़ जाएगी मैं नहीं जा सकता तो उसने बहाना बनाया की साईं अगर मैं जंगल में गया तो मेरी पीठ आपकी तरफ हो जाएगी मैं ऐसे कैसे कर सकता हूं तो उस साधु महात्मा ने खुद जंगल में जाकर लकड़ियां और घास फूस इकट्ठा किया और उसके बाद बारिश होने लग गई तो उस महात्मा ने अपने शिष्य को कहा कि भाई बारिश हो रही है ,ऊपर जाकर देखो छत से पानी आ रहा है तो उस शिष्य ने फिर सोचा कि अगर मैं ऊपर गया कहीं मेरा पैर फिसल गया कहीं मुझे चोट लग गई तो मैं क्या करूंगा मुझे तो यहां कोई बचाने वाला भी नहीं होगा तो उसने फिर सोचा और कहा कि साईं मैं ऐसा नहीं कर सकता अगर मैं छत पर गया तो आप नीचे होंगे और मैं आपके ऊपर यह तो अच्छा नहीं लगता मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर सकता तो उस महात्मा ने खुद ही जाकर ठीक कर लिया तो जब महात्मा ने कहा कि भाई आओ खाना खा लो तो उस शिष्य ने कहा हाथ जोड़कर लेट कर कहा की साईं मैंने आपके दो हुक्म नहीं माने ये मेरी गलतियां थी और अपने गुरु के चरणों में पड़ गया कि मैंने आपके दो हुक्म नहीं माने लेकिन यह तीसरा हुकुम तो मैं आपका मानूंगा , पंडाल में बैठे सभी संगत हंसने लगी और बाबा जी ने कहा की हंसो मत यही हाल तुम्हारा है उसके बाद बाबाजी ने कहा कि हम तो संत महात्माओं के कपड़ों को उनकी चीजों को पकड़ कर बैठे हुए हैं और कहते हैं जी यह कुर्सी महाराज जी की है यहां पर महाराज जी बैठते थे तो भाई महाराज जी दुनिया भर में घूमें हैं वह तो बहुत सारी कुर्सियों पर बैठे होंगे आप कौन-कौन सी कुर्सी को पकड़ोगे भाई रूहानियात इसमें नहीं है वह तो हमें इन सब चीजों से ऊपर उठाना चाहते थे लेकिन हम फिर ऐसी ही चीजों में पड़ गए , आप जी ने फरमाया बाहर से आपको कुछ हासिल नहीं होगा जो भी मिलेगा करनी का मिलेगा और अंदर से मिलेगा हमारे लिए कोई कर नहीं सकता चाहे कोई कितना ही कहे कि मैंने उस बाबा से नाम दान लिया है मैंने उस गुरु से नामदान लिया है जब तक करनी नहीं करोगे कुछ हासिल नहीं होगा हमें मालिक से रिश्ता बनाना है लेकिन हमारी तो दौड़ लगी हुई है आप देख लो कि जिसके पास जितनी दौलत है उसकी भूख और बढ़ जाती है और एक गरीब को देख लो उसके घर कोई भी आए अच्छे से उसका स्वागत करता है और अगर किसी अमीर के घर जाओ तो वह पहले देखते हैं कि आदमी काम का है अगर नहीं तो बाहर से ही उसको वापस भेज देते हैं यहां पर आप जी ने बताया कि एक बार अकबर बादशाह जंगल में अपने सिपाहियों के साथ गया था और वहां जाकर जंगल में खो गया और उसे एक गरीब का झोपड़ा दिखा और उसके पास गया उसने कहा कि मुझे बहुत भूख लगी है तो गरीब के पास जो खाने को था उसने उसे दे दिया तब उस बादशाह ने सोचा कि देखो कितना बड़ा दिल है इसने अपने परिवार के बारे में भी नहीं सोचा खुले दिल से मुझे यह सब दे दिया तो उसने खुश होकर अपनी एक अंगूठी उसे दे दी और कहा कि आगे कभी भी जरूरत पड़े तो मेरे पास आ जाना मैं इस देश का बादशाह हूं तो जब वहां पर कॉल पड़ गया तो उसके घर वालों ने कहा कि जाओ बादशाह ने तुम्हें अंगूठी दी थी उसके पास जाओ उसके पास जाकर फरियाद करो कि हमारी सहायता करें तो उसने ऐसा ही किया वह जब राज महल में गया तो उसने वहां जाकर देखा कि बादशाह नमाज पढ़ रहा था और मालिक के आगे फरियाद कर रहा था कि मेरे देश में काल पड़ गया है आपकी बक्शीश चाहिए मालिक के आगे दोनों हाथ फैला कर फरियाद कर रहा था जब यह सब उस आदमी ने देखा तो वापस चल पड़ा बादशाह ने देख लिया, ये तो वही आदमी है उसने दोबारा से उसे आवाज लगाई कि कहां जा रहे हो तो उसने कहा कि नहीं मुझे समझ आ गई उसने कहा कि बताओ क्या बात है उसने कहा कि मुझे तो लगा था कि आप हमारी सहायता करोगे लेकिन आप तो खुद भिखारी बने बैठे हो तो बाबा जी ने जहां पर फरमाया कि हम उस मालिक से कुछ ना कुछ मांगते ही रहते हैं हमारी कोई ना कोई फरियाद उसके आगे रहती है और वह तो शुरु से ही देता आया है लेकिन हमारी भूख नहीं मिटती और आप जी ने कहा कि चाहे जितना बड़ा घर बना लो सोना तो एक ही कमरे में है शरीर की कुछ जरूरतें हैं दो वक्त की रोटी चाहिए कपड़े चाहिए और सिर ढकने के लिए शत चाहिए और बाकी सब जो भी है वह सब ज्यादा है लेकिन नहीं अगर घर में कोई शादी आ जाए हमारे ट्रंक हमारी अलमारियां कपड़ों से भरी पड़ी होती हैं लेकिन हम फिर भी कह देते हैं कपड़े हैं नहीं जी , हमें किसी ने नहीं देखना लेकिन फिर भी हमें यही फिक्र रहती है कि यह तो मैंने कल डाला था अगर आज भी यही कपड़ा पहन लिया तो लोग कहेंगे कल भी तुमने यही डाला था आज भी यही जबकि पूछने वाला कोई नहीं है हमें यही फिक्र रहती है संगत हंसने लगी भाई हमें सभी चीजों से ऊपर उठकर उस कुल मालिक की भक्ति करनी है और याद रखो उसके घर में केवल नाम की पहचान है हमारी धन दौलत की नहीं हमारे बाल बच्चों की नहीं सिर्फ नाम की ही पहचान है और किसी चीज की नहीं ।
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