गुरु प्यारी साध संगत जी यह बात 1920 के दशक की है जब हजूर महाराज सावन सिंह जी हुआ करते थे साध संगत जी तब महाराज जी संगत में बैठे थे और कुछ सज्जन अभ्यासी महाराज जी से प्रश्न पूछ रहे थे कुश अभिलाषी महाराज जी से अपने निजी अनुभव सांझा कर रहे थे महाराज जी उस समय संगत से सीधी वार्तालाप करते थे क्योंकि तब संगत कम होती थी और संगत महाराज जी से आसानी से बात कर सकती थी किसी को कोई भी प्रश्न होता था तो वह महाराज जी के सामने उस प्रश्न को रख देता था और महाराज जी उसका जवाब बहुत ही सरल तरीके से देते थे तो ऐसे ही 1920 की बात है जब दुनिया में एक महामारी फैली थी
जिसको स्पेनिश फलू कहा गया है जिसकी वजह से पूरी दुनिया में 5 करोड से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे और उनकी मृत्यु भी हो गई थी इस बीमारी ने इंसानियत को हिला कर रख दिया था उससे पहले भी एक महामारी आई थी जो 1820 में आई थी जिसकी वजह से उस समय भी बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे साध संगत जी आप चौक जायेंगे की ये हर 100 साल बाद ही क्यों होता है पहले 1720 में महामारी आई उसके बाद 1820 में और फिर 1920 में और अब 2020 में जिसके पीछे की वजह अभी तक विज्ञान भी नहीं जान पाया साध संगत जी आप जानते ही हैं कि विज्ञान ने कितनी तरक्की की है लेकिन इसके बावजूद भी कुछ रहस्य ऐसे है जिसे वह नहीं जान पाया क्योंकि भविष्य जो है वह मालिक के हाथ में है इंसान के हाथ में नहीं ,भविष्य मालिक की मुट्ठी में बंधा हुआ एक वह सिक्का है जो केवल पूर्ण संत महात्माओं को ही मालूम होता है या फिर मालिक खुद ही जान सकता है हम इंसान कितनी भी कोशिश कर ले कुछ रहस्य ऐसे हैं जो हम नहीं जान सकते वह केवल और केवल मालिक के हाथ में है संत महात्मा सब जानते हैं उन्हें सब पता होता है उन्हें जन्मों-जन्मों की खबर रहती है युगों युगों की खबर रहती है लेकिन वह सब जानते हुए भी कुछ नहीं बोलते क्योंकि वह मालिक के भाने में रहते है तो ऐसे ही उस समय संगत महाराज जी के पास बैठी हुई थी तब एक अभ्यासी ने महाराज जी से पूछा था कि महाराज जी ये जो महामारी फैली हुई है जिसकी वजह से बहुत सारे इंसानों की जान चली गई दुनिया भर में लोग इससे प्रभावित हुए क्या इसका कोई हल नहीं हो सकता , क्या इसकी कोई दवाई नहीं बनाई जा सकती ? क्या यह सब मालिक के भाने में हो रहा है ? तब महाराज जी ने जवाब दिया था कि जो भी इस संसार में होता है वह कुल मालिक के भाने में ही होता है उसके हुक्म के अंदर ही होता है जैसे कि जप जी साहब में भी गुरु नानक साहब द्वारा समझाया गया है " हुक्म है अंदर सब को बाहर हुकम ना कोई " कि जो भी हो रहा है हुकम के अंदर ही हो रहा है हुकम के बाहर कुछ भी नहीं, तो ऐसे में हम उस कुल मालिक के आगे फरयाद ही कर सकते हैं अरदास ही कर सकते हैं मालिक जो करता है वह केवल वही जानता है हम उस कुल मालिक से सवाल नहीं कर सकते यह सृष्टि उसकी है यह खेल उसका है वह जो चाहे कर सकता है उसने नाम के धागे से इस सृष्टि को परो रखा है नाम के जरिए ही यह सृष्टि चल रही है नाम के बिना यह सब खत्म हो जाएगा वह चाहे तो 1 दिन में 1 सेकंड में इस सृष्टि को खत्म कर सकता है और वह चाहे तो 1 सेकंड में इसे दोबारा बना सकता है वह उसकी मौज है हम उसकी अंश है हम भी उसी का रूप है लेकिन हम भूल गए हैं अपनी असल वास्तविकता को हम भूल गए हैं इसलिए तो संतों महात्माओं ने हमें समझाया है कि खुद की पहचान करो मालिक की पहचान अपने आप हो जाएगी इसलिए संत महात्मा मालिक की भजन बंदगी पर इतना जोर देते हैं ताकि हमें हमारी असल वास्तविकता के बारे में पता चल सके और हम उस कुल मालिक से मिलाप कर पाएं उसके भाने को केवल वही समझ सकता है जो उसमें समा गया है जो उसी का रूप हो गया है वाणी में कहा गया है " एवडु उचा होवे कोई तिस ऊंचे को ज्ञानी सोए " कि हम उस कुल मालिक के भाने को नहीं समझ सकते ,केवल वही समझ सकते हैं जो उसमें समा गए हैं जो मालिक में मिलकर मालिक का रूप हो गए हैं इसलिए सत्संग में भजन सिमरन पर जोर दिया जाता है कि भजन बंदगी करो, नाम की कमाई करो नाम के बिना यहां कोई नहीं ,नाम हर समय हमारी संभाल करता है जब सभी हमें छोड़ जाते हैं नाम तब भी हमारी संभाल करता है फिर चाहे कुछ भी हो जाए इस संसार में कोई भी वारदात हो जाए कोई भी तबाही हो जाए लेकिन जो नाम की कमाई करता है जिसने भजन सिमरन को पूरा पूरा समय दिया है जिसने कभी कोई नागा नहीं डाला उसे फिर किसी चीज से डर नहीं लगता उसे फर्क ही नहीं पड़ता उसे बाहरी संसार से कोई मतलब ही नहीं रहता क्योंकि वह सत्य को जान जाता है उसे समझ आ जाती है उस पर मालिक की कृपा हो जाती है जब मालिक का नूर उस पर पड़ता है तो उसका रोम रोम मालिक की कृपा से भर जाता है तब उसे कोई फिक्र नहीं रहती, संसार में कोई भी तबाही हो कुछ भी हो जाए उसे कोई परवाह नहीं रहती वह तो मालिक के साथ जुड़ जाता है उसे पता है कि मैं कोई शरीर नहीं हूं जब मालिक की कृपा होती है तो आत्मा भी संवर जाती है और जो देह होती है वह भी संवर जाती है उसे भी कोई कष्ट नहीं होता कोई बीमारी नहीं होती इसलिए भजन सिमरन पर इतना जोर दिया जाता है । साथ संगत जी हमें भी इससे सीख लेनी होगी कि अगर हम इस संकट की घड़ी में अपने घर पर कैद होकर बैठे हैं तो व्यर्थ समय ना गवाएं जितना भी समय है मालिक के ध्यान में बताएं नाम की कमाई करने में लगाएं भजन सिमरन करने में लगाएं आप देख सकते हैं कि हमें रोजाना जीवन में जिंदगी में कितने कामकाज होते हैं और हमारे पास भजन सिमरन को ना करने के कितने बहाने होते हैं कि हमें वह काम पड़ गया हमें वह काम पड़ गया लेकिन आप इस घड़ी को देख सकते हैं जैसे कि सब रुका हुआ है इस समय सभी अपने घर पर बैठे हुए है लेकिन हम व्यर्थ ही समय गवा रहे हैं इस समय हमें कोई और काम नहीं है हमें ज्यादा से ज्यादा समय भजन सिमरन को देना है कुल मालिक को देना है नाम की कमाई करनी है फिर जब हम मालिक का ध्यान करते हैं भजन बंदगी करते हैं और जब मालिक का नूर हम पर पड़ता है तो हमारी आत्मा के कष्ट भी दूर हो जाते हैं और इस देह के कष्ट भी दूर हो जाते हैं तब हमें कोई तकलीफ नहीं रहती हमें किसी बात की कोई चिंता नहीं रहती तब हमें किसी भी तरह की बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं जब मालिक हमारे साथ है जब हम अंदर से मालिक से जुड़े हुए हैं तब मालिक खुद हमारा हाथ पकड़ लेता है हमारी संभाल करता है ।
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