मांस और शराब का सेवन करने वाले एक बार इसे ज़रूर सुने

बरखुरदर बाबू सावन सिंह जी को जयमल सिंह की राधा स्वामी हजूर दीनदयाल अकाल पुरुष की बहुत-बहुत दया मेहर हर वक्त पहुंचे, हाल यह है कि आपकी दो चठियां एक ही लिफाफे में मिली है और गुरमुखी में लिखा श्री गुरु ग्रंथ साहिब का एक शब्द हमें मिला है और एक कार्ड फारसी में लिखा हुआ मिला है जिसमें मांस शराब खाने के बारे में लिखा था, चिट्ठियों से हाल सुनकर बहुत बहुत आनंद और खुशी हुई, मैं भी हजूर से अर्ज करता हूं कि सत्संगीयों के पिछले सब खोटे कर्म काट दो जी कुछ भुगत कर कट जाएंगे कुछ बख्श देंगे आपने लिखा है कि डॉक्टर कहते हैं कि मास शराब खाओ तो राजी हो जाओगे तो आपने कहा कि मेरे सतगुरु कहेंगे तो खाऊंगा सो सतगुरु का वचन एक ही होता है 2, 4 नहीं होते जब आऊंगा तब बाकी बात मैं जवानी आपको समझा दूंगा भट्ठे का हाल ये है  अच्छा पका है और 2 महीने तक ठंडा होगा फिर कुआं बनवाने का काम शुरू करेंगे और साथ ही आपके पास भी आना है आपके पास से वापस आकर शुरू करेंगे रुपए की अभी कोई जरूरत नहीं है आपकी जरूरत है सो हजूर आपको जल्दी बक्शे जी एक हफ्ते में चिट्ठी भेजा करो और हजूर मालिक आपको बक्षेगे कोई फिकर ना करना जो भी चिट्टियां लिखता है उसे चिट्ठी में लिखा कर भेजो जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब के शब्द गुरमुखी में लिखा था बहुत अच्छा लिखा था आप किसी बात की चिंता ना करना खतों को क्षण भर में बख्शने वाला मालिक है एक लाख पापों का एक अब होता है और लाख अब का एक खता होता है सो मालिक करोड़ों पापों को एक क्षण में बक्श देता है मैं आप पर बहुत बहुत प्रसन्न हूं एक ही जगह पड़े रहने से आप ना डरो ,टूटी हड्डी इस तरह जुड़ती है हजूर दीनदयाल अकालपुरुष हर वक्त रक्षा करते रहते हैं सब तरह से बक्शेगे जिस वक्त घर को चिट्ठी भेजो राजी खुशी की भेजो और हो भी तो राजी चार 10 दिन देह को कोई दुख सुख हुआ तो घर उसकी क्या खबर भेजनी है कि घर के लोग नाहक दुखी हो नहीं!  उनको यही खबर भेजो कि राजी खुशी हो शब्दों को अच्छी तरह से रोज-रोज पकड़ो सुनो सुन सुनकर मन और सूरत निर्मल होंगे और शरीर की कोई तकलीफ असर नहीं कर सकेगी अपना घर तो सचखंड है उस जगह कोई देह नहीं है जो शब्द धुन है वह भी उसी का स्वरूप है जो आवाज जुबान से निकलती है वह देह से भिन नहीं है जब ये सुरत अनहद शब्द को पड़ेगी तो फिर सुरत सचखंड ही जाएगी शब्द को पकड़कर के शब्द से आती है उसी जगह ले जाएगी श्री गुरु ग्रंथ साहिब का शब्द है " बाजे अनहद मेरा मन लीना" खुद सचखंड पहुंचेंगे जी देह तो कपड़ा है कोई फिक्र नहीं करना  बीबी की बाई जी को राधा स्वामी हरी राम को राम राम जितनी चिट्ठियों में आपने लिखा कि दर्शन की इच्छा बहुत रहती है सो दर्शन का फल आपको मिलता जाता है सतगुरु के दर्शन की प्यास अगर मन में लगे तो इसके बराबर और कोई करनी नहीं है

बाबा जी ने यह चिट्ठी 28 मई 1897 को लिखी थी ।

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