बरखुरदर बाबू सावन सिंह जी को जयमल सिंह की राधास्वामी जहां सदा सुख आनंद है और हजूर दीनदयाल अकाल पुरुष से हर वक्त आपके लिए सुख शांति मांगते हैं दो चिट्ठियां आपकी आई है 24 मई को दोनों एक ही दिन दोनों चिट्ठियों को सुनकर बहुत बहुत खुश हुए हैं हजूर की दया मेहर समझी है जी अपनी दया की दृष्टि से बक्शेगे थोड़े दिनों के लिए कष्ट था सब कट जाएगा भट्ठे के हाल का मैंने पिछले पत्र में बयान कर दिया है आपको पहुंचा होगा अब पत्र आप 1 हफ्ते में भेजा करें क्योंकि अब खुद मालिक ने बक्श दिया है और आपको तकलीफ होती है लिखने में जिस वक्त आप ज्वाइन होंगे तब मुझे लिखना मैं आ जाऊंगा जो कुछ भी छिपी हुई चीज है इस देह में सो सब जवानी समझा दूंगा और किस तरह काल ने इस पर कर्म जमा किए हैं तो बताऊंगा जिस-जिस करने से जीव बंदा है और जो कर्म किए हैं इन्हें इसी देह में भुगत कर और फिर शब्द धुन को पकड़ कर सुरत सचखंड पहुंचती है कुछ कर्म सतगुरु काट देते हैं और बख्श देते हैं कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो देह में रहकर ही अदा होते हैं जो जीव सतगुरु पूरे की शरण में आया है जिसे पूरा उपदेश 5 शब्द का मिला है जिसकी पूरी प्रतीति सतगुरु पर है और जिसको यह पक्का विश्वास है कि सतगुरु मनुष्य नहीं है केवल परोपकार के लिए मनुष्य देह दरी वह कभी मनुष्य नहीं है जिसके मन में यह कभी नहीं आता कि वह मनुष्य है उसके स्थूल देह के सब कर्म कट गए हैं सूक्ष्म देह के रहे सो वह भी कट जाएंगे त्रिकुटी में पहुंचकर कारण माया जो ईश्वर अथवा जीव को पैदा करने वाली शक्ति है उसके भी कर्म कट जाएंगे फिर सूरत जाने जीवात्मा निर्मल होकर शब्द को पकड़ेगी फिर उस में लीन होगी शब्द धुन सचखंड से आती है वह सचखंड ले जाएगी फिर उसमें समा जाएगी फिर किसी बात का कोई डर नहीं है वह घर अपना है तो आपको फिर कोई और जन्म नहीं लेना है इस देह में सब कार्य पूर्ण होगा एक यह बात है कि नाम उनकी दया मेहर है गुरमुख चाहे तो किसी को नाम की कमी यानी धुन ना भि पकड़ावे और चाहे तो सारे संसार को अपनी दया मेहर की दृष्टि से ले जाए इतना होते हुए भी वह घमंड नहीं करता इसमें कोई संशय ना करो आपको अपने घर ही सचखंड ही जाना है बीवी की बाई जी को राधा स्वामी हरी राम को भी राम-राम कहना और आपने लिखा है कि मैं भी आस रखता हूं सो जैसा भी अकाल पुरुष का हुक्म होगा वही होगा और आप ने कहा कि 6 हफ्ते तक पड़े रहना है तो ठीक है टूटी हड्डी इसी तरह ठीक होती है आपको कोई तकलीफ नहीं होगी सुरत को शब्द में लगाए रखो फिर दर्द की खबर भी नहीं होगी ।
बाबा जी ने यह चिट्ठी महाराज जी को 25 मई 1897 को लिखी थी ।
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