हुजूर महाराज जी के समय की बात हैं, उनके पास एक सत्संगी जो बहुत पहुचा हुआ था। उनका नाम मस्ताना जी था। हुजूर जी अपने सत्संग में अक्सर उनकी बातें किया करते थे और हुजूर जी भी अक्सर उनकी बातों में खुश रहते थे। क्युकी वो जो भी करते थे, हुजूर महाराज की दया मेहर से होता था। एक बार की बात हैं मिटटी - रोड़ी की सेवा चल रही थी और सड़क बननी थी काफी ट्रक सेवा में लगे हुए थे। शाम का समय था मस्ताना जी ने दो ट्रको का रास्ता रोक लिया और आगे न जाने के लिए कहा। उस पर उन ट्रक ड्राइवरों ने काफी बिनती की लेकिन मस्ताना जी नहीं माने काफी देर ऐसा ही चलता रहा तो इस पर मस्ताना जी ने एक डंडा लिया और उन्होंने उस डंडे से ट्रको के शीशे तोड़ दिए इस बात से वो ड्राइवर नाराज हो गए। और हुजूर जी के पास जा पहुंचे वहाँ जबरजस्ती सारी बात हुजूर जी को बता दी। तो हुजूर जी ने कहा चलो में तुम्हारे साथ मस्ताना के पास चलता हूँ। और जब वहाँ पर पहुंचे तो मस्ताना जी से पूछा आपने ये क्या किया तो मस्ताना जी ने कहा हुजूर पहले तो आप ने ही कहा कि शीशा तोड़ दो और अब यहाँ आकर कहते हो की ये सब क्यों किया। आप तो गुरुदेव हो सब जानते हो तो हुजूर मालिक हँसने लगे इस पर मस्ताना ने कहा कि हुजूर ये सब क्या आपकी लीला नही थी ? अब ये भी बता दो की आपने ये सब क्यों करवाया। तो हुजूर महाराज जी ने बड़े ही प्यार से कहा कि - बेटा जब तुम लोग यहाँ से ट्रक लेकर जा रहे थे और तुमने आगे आने वाले पुल पर जाना था तो वहाँ वो पुल टूट जाना था और आप लोगो ने उस में बह जाना था इसलिए आप को यहाँ रूकवा दिया गया था अब वो पुल का समय और अलग रास्ता निकाल दिया गया हैं। आप उस तरफ से जाना जी।
इतना सुन कर वो दोनों ड्राइवर रो पड़े और हुजूर जी का आशीर्वाद लेकर "राधास्वामी जी" कहा और वह से आगे चले गए। इसलिए दोस्तों अगर हम लोगों को कही जाने में थोड़ी देर हो जाती हैं तो कभी किसी को बुरा भला नही कहना चाहिए बल्कि मालिक का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि पता नही उस कुल मालिक ने हमें किस मुसीबत से बचाया हो। क्युकी उसकी महिमा वही जानता हैं। हम इंसान अपनी बुद्धि और मन से उसके लीला को नही समझ सकते। इसलिए उस सतगुरु परमात्मा का हर समय शुक्रिया अदा करना चाहिए। शुक्र हैं मालिक तेरा, शुक्रिया कि तूने अपने और हमारे घर का रास्ता हमें बताया। शुक्र हैं मेरे सतगुरु शुक्र हैं।
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