महामारी के दौरान महाराज जी ने संगत को ये शब्द पढ़ने और सुनने को कहा था । ज़रूर सुने जी


गुरु प्यारी साध संगत जी जब 1920 में महामारी फैली थी तब सतगुरु ने संगत को यह शब्द पढ़ने और सुनने के लिए बोला था जो मैं आपसे सांझा करने जा रहा हूं :
इक्क ओन्कार सत नामक पुरख निरभऊ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभंगुर प्रसाद ॥
॥ जपु॥
आदि सचु जुगादि सचु॥
है भी सचु नानक होसी भी सचु॥१॥
घोर दुख्यंग अनिक हत्यंग, जन्म दारिंदर्ग महा बिख्यंदंग ।।
मिटत सगल सिमरत हर नाम ।।
नानक जैसे पावक कासट भसम करोत ।।



व्याख्या :
साध संगत जी जिसका अर्थ है भयानक दुख कलेश , अनेक खून पाप , जन्म से व्यापक दुख , रोग और गरीबी, बीमारी, बड़े से बड़े झगड़े मालिक का नाम लेने से खत्म हो जाते हैं जैसे आग लकड़ी को जलाकर राख कर देती है ।
साध संगत जी आज बैठे-बैठे सुखमनी साहिब की कुछ तूके मुझे याद आ गई वह भी मैं आपसे सांझा करता हूं :
नीकी कीरी मह कल राखे ।।
भसम करे लस्कर कोट लाखे ।।
जिसका अर्थ है कि जब मालिक किसी चीज को खत्म करने के लिए तैयार हो जाता है तो वह एक छोटी सी चींटी से भी लाखों की फौज को तबाह कर देता है जैसे कि आज दुनिया की बड़ी बड़ी ताकते अमेरिका, Canada , England Spain, China  एक छोटी सी बीमारी करोना वायरस के आगे चिंतित है बेबस पड़े हुए हैं सो गुरु प्यारी साध संगत जी हम ऐसे जो लोग विज्ञान को महान मानते हैं आप इस समय देख सकते हैं कि विज्ञान भी आज इसके सामने कुछ नहीं है बेबस पड़ा हुआ है साध संगत जी इसलिए सत्संग में समझाया जाता है कि हमें ज्यादा से ज्यादा समय मालिक की भक्ति को देना है हमें भजन बंदगी पर रोजाना बैठना है तभी भी कोई नागा नहीं डालना मालिक की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है मालिक का नाम ही सबसे ऊपर है उसके आगे कोई भी ताकत कुछ नहीं कर सकती हमें हर तरह की मुसीबत से केवल और केवल मालिक ही हमारी संभाल कर सकता है वही हमें इन सब दुखों से बचा सकता है हमारी संभाल कर सकता है लेकिन हम इस दुनियादारी की दौड़ में ऐसे लगे हुए हैं कि हमें कुल मालिक की भजन बंदगी के लिए समय ही नहीं मिल पाता और जब समय मिल भी पाता है तो हम दूसरे काम खोज लेते हैं और कहने लग जाते हैं कि हमें काम की वजह से भजन सिमरन में समय नहीं मिल पाता और जब हम पर कोई मुसीबत आती है तो हम मालिक को याद करते हैं यह हमारा कैसा प्रेम है जब हमारे ऊपर कोई मुश्किल आती है तब हम उसको याद करते हैं इससे हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है कि हमें मालिक से प्रेम नहीं है प्यार नहीं है हम तो डर की वजह से मालिक की भक्ति करते हैं और अगर करते भी हैं तब हम अपनी मांगे उसके आगे रख देते हैं कि हमें यह चाहिए हमें वह चाहिए हमारा इस दुनिया की भाग दौड़ में मालिक को याद करने का मन ही नहीं करता लेकिन इस समय हमें कोई भी काम नहीं यह समय बहुत कीमती है मालिक की भक्ति के लिए नाम की कमाई के लिए हमें इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए केवल और केवल मालिक ही हमें सभी तरह के दुख कष्ट बीमारी रोगों से बचा सकता है वही केबल अपना हाथ हमारे ऊपर रखकर हमारी संभाल कर सकता है और जिस पर उसका हाथ होता है उसकी कृपा होती है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता मालिक हमें अंदर से ताकत दे देता है तब हमें किसी तरह का कोई भी फर्क नहीं पड़ता तो हमें भी इस समय ज्यादा से ज्यादा समय मालिक की भजन बंदगी को देना है नाम की कमाई करनी है शब्द की कमाई करनी है हमारे पास समय बहुत है और यह समय मालिक की भजन बंदगी मैं लगना चाहिए ना कि व्यर्थ के कार्यों में हमें भी चाहिए कि हमें मालिक की भजन बंदगी करनी है कर कर दिखाना है बनकर दिखाना है फिर हमें किसी बात की कोई चिंता नहीं होगी क्योंकि सुबह खुद मालिक हमारी संभाल करेगा किसी तरह का दुख नहीं आने देगा ।

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