इस संकट की घड़ी में बाबा जी का संगत को संदेश । ज़रूर सुने जी

गुरु प्यारी साध संगत जी अब की जो स्थिति बनी हुई है जो भी माहौल अब बना हुआ है यह सब हम सभी जानते हैं कि कितनी मुश्किलें आ रही है कितनी मुसीबतें हमें झेलनी पड़ रही हैं कि हम कहीं आ जा नहीं सकते हम गुरु घर में सेवा करने नहीं जा सकते ,सत्संग सुनने नहीं जा सकते ,सतगुरु के दर्शन करने नहीं जा सकते ,कितना दुख हमें हो रहा होगा कितनी तकलीफ हो रही होगी साध संगत जी यह सब इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कुछ सत्संगी भाई और कुछ सत्संगी बहने ऐसी हैं जिनकी लगन सेवा के प्रति सतगुरु के दर्शनों के प्रति अटूट है वह सेवा के बिना नहीं रह सकते वह सत्संग के बिना नहीं रह सकते वह सतगुरु के दर्शनों के बिना नहीं रह सकते कितनी तकलीफ उन्हें हो रही होगी क्योंकि हम अपने सतगुरु से बहुत प्यार करते हैं लेकिन अगर आप जान सके कि बाबा जी हमें कितना प्यार करते हैं तो हम कभी यह कहेंगे ही नहीं कि हम बाबाजी से प्यार करते हैं ये जानने के बाद हम यही कहेंगे कि बाबा जी हमसे बहुत प्यार करते हैं हमारा प्यार तो उनके आगे कुछ भी नहीं है अब जैसा माहौल बना हुआ है ऐसा ही
महाराज सावन सिंह जी के समय में भी हुआ था जब भारत और पाकिस्तान अलग अलग हुए थे उसके बाद जब दोनों देश अलग अलग हो गए तब कितने लोगों के घर बर्बाद हुए थे कितने लोगों का नुकसान हुआ था सब बिखर गया था उस समय महाराज जी को सबसे ज्यादा दुख हुआ था महाराज जी की तबीयत भी नीचे चली गई थी खराब हो गई थी और ऐसी खराब हुई कि उसके बाद वह ठीक ही नहीं हो पाए, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि महाराज जी से उस समय बहुत सत्संगी परिवार पाकिस्तान से भी जुड़े हुए थे जो कि महाराज जी से बहुत प्रेम करते थे और डेरे में आते थे और जब महाराज जी की तबीयत खराब हो गई तब महाराज जी के सेवक दरियाई लाल कपूर जी ने महाराज जी से कहा कि महाराज जी अब जो हो रहा है और जो हो चुका है उसका बहुत दुख है बहुत तकलीफ है लेकिन आप अपनी सेहत का ख्याल रखें आप अपनी सेहत का ख्याल क्यों नहीं रख रहे तब महाराज जी ने दरियाई लाल जी से कहा था कि कपूर साहब मुझे एक बात बताओ कि अगर एक बाप के बच्चे मुसीबत में हो और अपने बाप से मदद की मांग कर रहे हो तो बाप कैसे बैठा रह सकता है कैसे वह चैन से बैठ सकता है अगर बच्चे बाप से किसी चीज की मांग कर रहे हो तो क्या बाप को नहीं देनी चाहिए क्या बाप देने के बगैर रह सकता है ? और तब दरियाई लाल कपूर जी जो महाराज जी के सेवक थे वह भी यह समझ गए थे कि कुछ सत्संगी भाई महाराज जी से फरियाद कर रहे हैं भजन सिमरन में महाराज जी के आगे फरियाद कर रहे हैं कि हमें बचा लो हमें इन मुसीबतों से छुटकारा दिला दो और तब महाराज जी ने उन सभी सत्संगीओ के दुख अपने ऊपर ले लिए थे जिसकी वजह से महाराज जी की सेहत खराब हो गई थी और ऐसी खराब हुई थी कि बाद में वह ठीक नहीं हो पाए थे तो जो अब का माहौल बना हुआ है सतगुरु ने कैसे ! बाबा जी ने कैसे अपने दिल पर पत्थर रखकर संगत को यह कहा होगा सेवादारों को यह कहा होगा कि डेरे में नहीं आना, क्या कभी कोई बाप अपने बच्चों को यह कह सकता है कैसे बाबा जी ने यह कहा होगा जबकि बाबा जी अपनी संगत से कितना प्यार करते हैं यह हम भी नहीं जानते हम तो आसानी से कह देते हैं कि हम बाबाजी से प्यार करते हैं लेकिन यह सब तो बातें ही हैं अगर बाबा जी के प्यार के बारे में हमें पता चले तो हम ऐसा कभी नहीं कहेंगे यही कहेंगे कि बाबा जी हमसे बहुत प्यार करते हैं उन्होंने यह सिर्फ संगत के लिए किया कि किसी को कोई तकलीफ ना हो किसी को कोई परेशानी ना हो जाए मेरी संगत सही रहे सलामत रहे और यहां पर हमें तो यह भी नहीं पता कि हमारे कर्म कैसे कैसे हैं हम कैसे कर्म पीछे कर कर आए हैं और कैसे फिर भी सतगुरु ने हमें अपने चरणों में हमें जगह दी है यहां पर एक बात याद आती है कि एक भेड़ का बच्चा गलती से लोहे की तारों में फस गया और जिस रास्ते से वह अंदर गया था वह रास्ता बहुत ही खुला था जिसकी वजह से वह आसानी से अंदर चला गया लेकिन जब उसे पता चला कि मैं अंदर आ गया हूं और उसने बाहर निकलने की कोशिश की तो उससे निकला नहीं गया और उसे पता चल चुका था कि अगर मैंने निकलने की कोशिश की तो मुझे नुकसान हो सकता है चोटें लग सकती हैं तब उस समय चरवाहे ने देखा कि यह तो एक जालीदार लोहे की तारों में अटक गया है तब वह दौड़ कर गया और भेड़ के बच्चे ने यह समझ लिया कि शायद मुझे छोड़कर भाग गया है लेकिन वह दौड़कर एक औजार लेकर आया जिसकी मदद से वह उन लोहे की तारों को काट सके और उस बच्चे को वहां से निकाल सके तो उसने धीरे-धीरे लोहे की तारों को काटना शुरू किया और जैसे-जैसे वह उन तारों को काटता गया वैसे वैसे जगह बनती गई और उसने आखिर में बच्चे को सही सलामत उठा लिया और उसे बचा लिया लेकिन अगर वह बिना युक्ति के उसे निकालने की कोशिश करता तो उसे मालूम था कि इसे तकलीफ होगी ,लोहे की तारें इसकी खाल को उतार भी सकती हैं इसकी चमड़ी उखाड़ भी सकती है जिससे यह बचेगा नहीं लेकिन उसने युक्ति से लोहे की तारों को काटा और बच्चे को बचा लिया तो क्या हम भी उस भेड़ के बच्चे जैसे नहीं हैं क्योंकि हम भी तो ऐसे ही फंसे हुए हैं हमें कुछ नहीं पता है कि हमने पीछे क्या किया है कैसे हमारे कर्म है बाबाजी तो उन सब तारों को काटने के लिए लगे हुए हैं उन सब कर्मों को काटने के लिए लगे हुए हैं जो हमने पीछे किए हैं लेकिन हमें उस भेड़ के बच्चे की तरह आगे नहीं बढ़ना है वहीं रुक जाना है ताकि सतगुरु आए और हमें वहां से निकाल कर ले जाए और अगर हमने आगे जाने की कोशिश की और नई तारों में हम फंस जाएंगे जिससे हमें ही नुकसान पहुंचेगा सतगुरु तो हमें निकालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन हम मानते नहीं और उलझनों में पड़ जाते हैं और उलझने की तारे खड़ी कर लेते हैं यह तारे क्या है यह है निंदा चुगली, इर्खा करना यह सब बातें हैं हमें इन सब बातों में नहीं पड़ना ,हमें अपने सतगुरु के हुक्म को मानकर नाम की कमाई करनी है हमारे पास पहले बहुत सारे बहाने थे कि समय नहीं लगता लेकिन अब हमारे पास कितना समय है जहां हम ढाई घंटे दिया करते थे हम आज 5 घंटे दे सकते हैं 5 घंटे देकर हम अपने प्रेम को जाहिर कर सकते हैं हम तो आसानी से कह देते हैं कि हमारा सतगुरु से बहुत प्रेम है लेकिन हमें इस प्रेम को भजन बंदगी के जरिए जाहिर करना है भजन बंदगी के जरिए बाबा जी को खुश करना है बाबा जी की खुशी केवल और केवल हमारे भजन सिमरन में है डेरा ब्यास में जब सेवा का मौका मिलता है तो सेवादार कितने खुश होते हैं क्योंकि सेवा हर एक को नहीं मिल सकती, जिसको सतगुरु चाहे उसी को सेवा का मौका मिलता है और कुछ सेवादार ऐसे संत पुरुष हैं जो पूरा पूरा दिन सेवा करते हैं और रात के समय भजन बंदगी पर बैठते है और कुछ ऐसे हैं जो पूरी पूरी रात भजन बंदगी पर बैठे रहते हैं क्योंकि वह हुकुम की पालना करते हैं सतगुरु के हुक्म को ऊपर रखते हैं उनके पास बहाने नहीं है कि हमारे शरीर में दर्द हो रही है या फिर मैंने दिन में काम किया अभी मैं मुझे सोना चाहिए, यह सब बातें नहीं देखते वह पूरा पूरा दिन सतगुरु के घर की गुरु घर की सेवा करते हैं और पूरी रात मालिक की भजन बंदगी में व्यतीत करते हैं और अब जो समय हमारे पास है यह मालिक ने हमें गोल्डन चांस दिया है हमें मौका मिला है सतगुरु की तरफ से मौका मिला है कि हम ज्यादा से ज्यादा भजन बंदगी को समय दे पाए, हमें भी नाम की कमाई करनी है शब्द की कमाई करनी है यही बेनती सतगुरु से है कि हम सभी को सतगुरु अपने चरणों में जगह दे और ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन करने का बल दे ।

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