साथ संगत जी बाबा जी ने अपने सत्संग में हम सत्संगीयों का हाल बयान किया कि हम क्या करते हैं कैसी हमारी सोच बनी हुई है आप जी ने कहा कि जब हमें नामदान मिल जाता है तब हमें यह अहंकार हो जाता है कि हम सत्संगी हैं और दूसरे गैर सत्संगी है भाई यहां पर कोई गैर नहीं है सब जीव उस कुल मालिक के हैं हम इन बातों में पड़ जाते हैं अगर दुनिया के अहंकार को छोड़ते हैं तो रूहानियत में अहंकार करने लग जाते हैं कि हमने तो उनसे नाम दान लिया है वह बहुत पहुंचे हुए हैं आप जी ने सख्त हो कर कहां कि वह पहुंचे हुए होंगे उससे आपको कोई फायदा होने वाला नहीं आप को नाम दान दिया जाता है युक्ति बताई जाती है तरीका बताया जाता है कि कैसे उस कुल मालिक की याद में बैठना है आप जी ने फरमाया कि हम कह देते हैं जी मन हमारे ऊपर हावी हो गया है आप जी ने जहां पर सख्त होकर कहा कि मन में कोई ताकत नहीं है कि वह आपके ऊपर हावी हो ताकत उसे हम देते हैं मन में कोई ताकत नहीं है लेकिन हम तो तरह-तरह की बातें बनाते हैं कि मन ने यह सब करवा दिया काल ने यह सब करवा दिया भाई किसी का कोई कसूर नहीं है सब हमारे ऊपर ही निर्भर करता है हम ही मन को बढ़ावा देते हैं यहां पर आप जी ने फरमाया कि जैसे कि सिनेमा हॉल में कोई पिक्चर चल रही होती है और हम देख रहे होते हैं और पिक्चर में कुछ सीन ऐसे भी होते हैं जिनको देखकर आंसू आ जाते हैं और कुछ सीन खुशी वाले होते हैं जिनको देखकर हम हंसने लग जाते हैं लेकिन बाद में हमें ख्याल आता है कि यह तो एक पिक्चर है सच्चाई तो नहीं तो ऐसे ही हमारे साथ भी हो रहा है हम मन के पीछे लग कर इस माया को सत्य मान लेते हैं और मन हमें इसमें बुरी तरह फंसा देता है और हम पर हावी हो जाता है जबकि मन में कोई ताकत नहीं है हम ही मन को ताकत देते हैं और माया में फंसते चले जाते हैं आप जी ने फरमाया कि अगर हम उस मालिक से रिश्ता बनाएं उस मालिक की याद में बैठे तो हम अपने जीवन में एक बैलेंस रख सकते हैं और आप जी ने कहा कि हमें कोई घर बार छोड़कर कहीं नहीं जाना हमें तो दरमियान का रास्ता अपनाना है घर परिवार को भी देखना है जिम्मेदारियां भी निभानी है और परमार्थ की तरफ भी ध्यान देना है इसे ही दरमियान का रास्ता कहते हैं और आप जी ने यहां पर फरमाया कि जब भी हम किसी संत महात्मा को देखते हैं तो हम उसके पैरों को पकड़ना शुरू कर देते हैं उसके कपड़ों को हाथ लगाना शुरु कर देते हैं उसकी गाड़ी को हाथ लगाना शुरु कर देते हैं भाई अगर रुहानियत कपड़ों में होती इन सब चीजों में होती तो संत महात्मा ने पहले ही अपने कपड़े फाड़ कर आपको दे देने थे हम इन्हीं चीजों में फंसे हुए हैं हमें मालिक ने विवेक दिया है हमें सोचना चाहिए समझना चाहिए कि क्या करना है हर एक चीज का कोई ना कोई मकसद जरूर होता है आज भी हम सत्संग सुनने आए हैं क्या जरूरत पड़ी कि हम यहां चलकर आए कोई तो मकसद होगा ऐसा तो नहीं है कि बिना मकसद के हम घूमते फिरते रहे भाई मालिक ने हमें यह जीवन दिया है हमें यह मौका मिला है ताकि उसकी भक्ति की जा सके और इस भवसागर से पार जाया जा सके लेकिन हमारी हालत तो प्राय गधे जैसी है दूसरों का बोझ उठाते उठाते हम प्राय गधे बन जाते हैं और उसके बाद आप जी ने एक उदाहरण देकर बताया कि एक संत और एक उनके शिष्य जंगल में जा रहे थे और रात हो गई थी तो उस साधु महात्मा ने अपने शिष्य को कहा कि भाई जाओ जाकर लकड़ियां और घास फूस लेकर आओ रोटी बनानी है आग चाहिए तो उसने सोचा कि अगर मैं जंगल में गया तो कोई पहाड़ी जानवर निकल कर आ जाएगा और मेरी जान खतरे में पड़ जाएगी मैं नहीं जा सकता तो उसने बहाना बनाया की साईं अगर मैं जंगल में गया तो मेरी पीठ आपकी तरफ हो जाएगी मैं ऐसे कैसे कर सकता हूं तो उस साधु महात्मा ने खुद जंगल में जाकर लकड़ियां और घास फूस इकट्ठा किया और उसके बाद बारिश होने लग गई तो उस महात्मा ने अपने शिष्य को कहा कि भाई बारिश हो रही है ,ऊपर जाकर देखो छत से पानी आ रहा है तो उस शिष्य ने फिर सोचा कि अगर मैं ऊपर गया कहीं मेरा पैर फिसल गया कहीं मुझे चोट लग गई तो मैं क्या करूंगा मुझे तो यहां कोई बचाने वाला भी नहीं होगा तो उसने फिर सोचा और कहा कि साईं मैं ऐसा नहीं कर सकता अगर मैं छत पर गया तो आप नीचे होंगे और मैं आपके ऊपर यह तो अच्छा नहीं लगता मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर सकता तो उस महात्मा ने खुद ही जाकर ठीक कर लिया तो जब महात्मा ने कहा कि भाई आओ खाना खा लो तो उस शिष्य ने कहा हाथ जोड़कर लेट कर कहा की साईं मैंने आपके दो हुक्म नहीं माने ये मेरी गलतियां थी और अपने गुरु के चरणों में पड़ गया कि मैंने आपके दो हुक्म नहीं माने लेकिन यह तीसरा हुकुम तो मैं आपका मानूंगा , पंडाल में बैठे सभी संगत हंसने लगी और बाबा जी ने कहा की हंसो मत यही हाल तुम्हारा है
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