बरखुरदार बाबू सावन सिंह को जयमल सिंह की राधास्वामी और श्री वाहेगुरु जी की फतेह, हाल यह है कि आपकी फारसी की दो चिट्टियां एक ही दिन पहुंची हैं और दोनों चिट्टियां से कैफियत सब हाल आपके चोट लगने का शुरू से समझ लिया है और हाल पक्का पक्का यह है कि वैशाख महीने में मैंने आपकी चिट्ठी का बहुत बहुत इंतजार किया, चिट्ठी कोई आए तो मैं जवाब भेजूं पर कोई चिट्ठी नहीं आई अगर चिट्ठी लिखने में बहुत देरी हो जाए तो 15 रोज से ज्यादा देरी नहीं होनी चाहिए जो तकलीफ आपको इस वक्त हुई है टूटी हुई टांग जो की बांधी गई है हिलाना नहीं, घी ज्यादा खाना चाहिए पर ताजा घी होना चाहिए हजूर दीनदयाल अकालपुरुष खुद बख्श देंगे आप कोई फिकर ना करना यह हुक्म इसी तरह था क्योंकि दुख सुख इसी देह के द्वारा बोया गया है इसी में उगेगा, आप तंदुरुस्त हो जाओगे जी ,भट्ठे में एक लाख इंट चढ़ा दी गई हैं और जेठ की पंचमी को आग दी गई है इंट के पकने का हाल और इन पर जो खर्च होगा वह दूसरी चिट्ठी में लिखेंगे आठ-दस दिन में भट्ठा पक जाएगा जिस वक्त आप अस्पताल से वापस घर आओगे तब मैं आऊंगा जब आपको तकलीफ मालूम हो तो उसी वक्त सिमरन करो और फिर शब्द दोनों को सुनो जब सूरत शब्दों को पकड़ेगी तब देह को तकलीफ नहीं मालूम होगी जो कर्म परब्ध के हैं वह भोगे बिना नहीं कटते पर जिस वक्त सूरत निर्मल नाध में प्रीत के साथ लग जाती है उस वक्त प्रारब्ध कर्म भी कटते जाते हैं इस कदर प्रीत होती है, जिस समय मैं आपके पास आऊंगा उस समय सब जवानी समझा दूंगा , बीबी की राधास्वामी ड्सोंधा सिंह नंबरदार और सब सत्संगियों की राधास्वामी, घोड़े का कोई कसूर नहीं था जो बात थी वह मैं आपको जवानी बताऊंगा यह हुक्म इसी तरह था कभी मिट नहीं सकता था और हरी राम को राम राम कहना ।
यह चिट्ठी बाबा जी ने 19 मई 1897 को लिखी थी ।
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