Rssb spiritual sakhi । जब एक सत्संगी ने बाबा जी से आत्मा के सफ़र के बारे में पूछा । ज़रूर सुने


गुरु प्यारी साध संगत जी यह बात बड़े महाराज जी के समय की है साध संगत जी ऐसे ही संगत महाराज जी के पास बैठी हुई थी और महाराज जी संगत से कुछ बातें कर रहे थे कुछ अभ्यासी अपने निजी अनुभव महाराज जी से सांझा कर रहे थे और महाराज जी उनका जवाब दे रहे थे तो एक अभ्यासी ने महाराज जी से पूछा कि महाराज जी मैंने आत्मा के सफर के बारे में बहुत सुना है कृपया हमें इसके बारे में समझाएं ताकि हमें आत्मा के सफर के बारे में ज्ञान हो सके बहुत सारी बातें हैं जो हमें नहीं पता कृपया हमारा मार्गदर्शन करें तो महाराज जी ने उस समय वहां पर मौजूद संगत से कहा कि जब हम भजन बंदगी पर बैठते हैं मालिक का ध्यान करते हैं जो युक्ति नाम के समय बताई जाती है उसका पालन करते हैं और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं अनुभव आने शुरू हो जाते हैं हमारी चेतना पैरों के तलवों से निकलकर ऊपर उठती है इसमें थोड़ा समय लगता है पहले पैर सुन होने शुरू हो जाते हैं और जैसे-जैसे चेतना ऊपर उठती है हमें नीचे का कोई आभास नहीं रहता और जैसे जैसे हम अभ्यास को समय देते जाते हैं वैसे ही चेतना ऊपर उठती जाती है हम जितना ज्यादा समय देंगे उतनी हमें तरक्की जल्दी मालिक की कृपा से मिल पाती है जब चेतना दोनों आंखों के बीच आकर सिमट जाती है वहां से आत्मा का सफर शुरू होता है और यह सफर ऐसा है जो बताया नहीं जा सकता यह अनुभव ऐसे हैं जो कहे नहीं जा सकते ना तो इनको शब्दों में कहा जा सकता है और ना ही बोलकर बताया जा सकता है और ना ही लिखकर कहा जा सकता है यह तो गूंगे का गुड़ है और अगर हम कहने की कोशिश करते हैं तो ऐसा ही है जैसे गूंगा गुड़ खाकर करता है तो आगे का सफर जो है वह कहा नहीं जा सकता वह तो अभ्यासी को खुद ही अनुभव कर कर पता चलेगा और किसी के कहने से किसी के बताने से उसका कोई फायदा होने वाला नहीं जब तक कि वह खुद उस मार्ग पर ना आ जाए और आगे मालिक खुद अपने जीव की संभाल करता है डरने की कोई बात नहीं है मालिक हर समय हमारे साथ है और वही हमारा मार्गदर्शन करते हैं इस मार्ग पर गुरु जोकि मालिक का ही रूप है वह हमारा मार्गदर्शन करते हैं हमें बताते हैं कि कैसे और किस तरह चलना है साध संगत जी ऐसे बहुत सारे प्रश्न है जिनके जवाब नहीं है जिनके जवाब दिए भी नहीं जा सकते जिनका जवाब शब्दों में कहना कठिन है वह जवाब अनुभव से ही हासिल हो सकते हैं इसलिए तो सत्संग में बाबाजी अक्सर कहते हैं की भजन बंदगी करो नाम की कमाई करो शब्द की कमाई करो और जो रस है वह खुद चखो खुद जानो कहीं कहाई बातों में नहीं पड़ना खुद चलना है कर कर दिखाना है बनकर दिखाना है ।

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