गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी हजूर महाराज सावन सिंह जी के समय की है साध संगत जी जैसे कि आप जानते ही हैं कि हजूर महाराज सावन सिंह जी बीवियों को काको कहकर पुकारते थे और महाराज जी एक दिन संगत को नाम दान की दीक्षा दे रहे थे माता लाजो जी महाराज जी के साथ होती थी महाराज जी ने सेवादारों को इशारा किया कि वह जो बीवी बैठी है उसको बाहर निकाल दो जब महाराज जी ने ऐसा कहा तो माता लाजो जी ने महाराज जी से विनती की कि महाराज जी आप ऐसा क्यों कह रहे हैं तो महाराज जी ने माता लाजो जी के कान में कहा कि अब यह 6 दिन की मेहमान है इसके पास ज्यादा समय नहीं है तो माता लाजो जी ने कहा कि महाराज जी आपके घर किस चीज की कमी है आप चाहो तो सब कर सकते हो यह बात सुनकर महाराज जी ने माता लाजो जी के कहने पर उस बीवी को नाम दान देने के लिए राजी हो गए और महाराज जी ने उस बीवी को नाम दान दे दिया और जब महाराज जी ने कहा कि जहां बैठो और मालिक के ध्यान में लीन हो जाओ और जो नाम दान के समय बताया जाता है वह करने के लिए बोला तो वह बीबी का ध्यान लग गया और जब उसने अपनी आंखें खोली तो उसने माता लाजो जी से कहा कि अंदर तो बहुत ही शांति है अंदर बहुत ही आनंद है
यह कहते हुए उसने माता लाजो जी से इजाजत ली और महाराज जी ने उसे रोजाना भजन सिमरन करने के लिए बोला की दिन-रात भजन सिमरन करना और उसके अगले दिन ही महाराज जी को तेज बुखार हो गया माता लाजो जी ने महाराज जी से कहा कि महाराज जी अभी तो आप ठीक थे यह कैसे हुआ महाराज जी थोड़ा सा मुस्कुरा पड़े , महाराज जी ने कुछ नहीं कहा लेकिन माता लाजो जी कमाई वाली थी वह समझ गई कि बाबा जी ने उस बीवी को नाम दान दिया है उसके कर्म अपने ऊपर ले लिए ,इसलिए यह सब हुआ उस बीवी की सुरत लगने लग गई और धुन को सुनने लग गई और उसे यह भी पता चल गया कि उसका मृत्यु के समय नजदीक है तो उसने अपने सभी परिवार वालों को बुलाकर कहा कि मैंने इतने बजे उस दिन चले जाना है वह लोग यह सुनकर हैरान हो गए जब माता लाजो जी को पता चला तो वह भी उनसे मिलने उनके घर पहुंच गई तो माता जी को एक बिस्तर पर बिठाया गया था तो माता लाजो जी ने उनसे कहा कि आप कैसे हो वह बोल नहीं सकती कि उसे क्या मिल गया तो उसने कुछ शब्दों से जाहर करने की कोशिश की लेकिन माता लाजो जी समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहती है और उन्हें यह भी पता चल गया था कि जो नजारा अंदर है उसे शब्दों में कहा नहीं जा सकता तो जब माताजी ने कहा कि दिए कि लो कर दो तो उस बीबी ने कहा कि नहीं सतगुरु ने वैसे ही बहुत प्रकाश कर दिया है अब दीए की कोई जरूरत नहीं ,धन है मेरे सतगुरु जिन्होंने मुझे मेरे अंतिम समय पर मुझे स्वीकार कर लिया साध संगत जी हम नहीं जानते कि हमारे कैसे-कैसे कर्म होते हैं और हमारे पास कितना समय बाकी है लेकिन संत सतगुरु सब जानते हैं उन्हें सब पता होता है और वह सब चीजों को ध्यान में रखकर भी हमें स्वीकार कर लेते हैं इससे ऊपर और हमारे लिए क्या हो सकता है केवल संत सद्गुरु ही होते हैं जो हम जीवो का उद्धार कर सकते हैं हम अपनी तरफ से जितनी भी कोशिश करते हैं उतना ही नीचे दस्ते जाते हैं सतगुरु ही हमें अपनी बाजू पकड़ा कर हमें इन कष्टों से ऊपर लेकर जाते हैं और हमारी मुक्ति करवा देते हैं , जैसे कि फरमाया जाता है कि हमें नाम सिमरन करना है नाम की कमाई करनी है क्योंकि इसी में सब कुछ है इसके अलावा हमारा यहां कोई भी नहीं और ना ही हो सकता है हम अकेले आए हैं अकेले ही जाएंगे, हमारा कोई रिश्तेदार हमारे साथ नहीं जाएगा ,हमारा कोई जीवन साथी हमारे साथ नहीं जाएगा ,अगर जाएगी तो केवल और केवल नाम की कमाई ही हमारे साथ जाएगी, वहां पर हमारा धर्म नहीं देखा जाता ,हमारी धन दौलत नहीं देखी जाती ,वहां पर केवल एक ही चीज की पहचान है वह है नाम की पहचान नाम की कमाई की पहचान अगर हमने नाम सिमरन रोजाना किया होगा तो वहां पर हमें कोई दिक्कत नहीं आएगी तो मालिक हमें अपनी गोद में जगह देगा और अगर हमने नाम की कमाई नहीं की शब्द की कमाई नहीं की तो हम दर दर भटकते रहेंगे हमारा आना जाना लगा रहेगा हम ऐसे ही ठोकरें खाते रहेंगे इसलिए तो नाम की कमाई पर इतना जोर दिया जाता है ऐसा नहीं है कि हमें जिम्मेवारीया नहीं निभानी हमें जिम्मेदारियां भी निभानी है हमें अपने कामकाज भी करने हैं लेकिन सब कुछ करते हुए हमें नाम की कमाई के लिए समय भी निकालना है हमें बैलेंस रखकर जीवन व्यतीत करना है हर चीज को हमें उतनी ही महत्वता देनी है जितनी हमें देनी चाहिए और जिस समय हमें नाम की कमाई करनी है जिस समय हमें नाम सिमरन में लगना है उस समय हमें सभी काम छोड़ देने चाहिए क्योंकि इसके ऊपर और कुछ नहीं है जैसे कि कहा जाता है कि अगर हम मालिक की भजन बंदगी करते हैं उसके नाम का सिमरन करते हैं तो वह हमारी जिम्मेवारी ले लेता है हमारे कामकाज वह खुद सवारने लग जाता है , इसलिए हमें इस संसार में रहते हुए सभी कामकाज करते हुए नाम सिमरन के लिए वक्त निकालना है उसकी याद में बैठना है जिसमें हमारी ही भलाई है संत महात्मा इस पर इतना जोर इसलिए देते हैं क्योंकि वह उस ज्ञान को जानते हैं वह सत्य को जानते हैं और जो हमारे जैसे हैं जिनको उस परमपिता परमात्मा की कोई खबर नहीं ,सत्य की कोई खबर नहीं ,वह अपना समय व्यर्थ ही गवा लेते हैं वह अपना जन्म व्यर्थ ही जाया कर देते हैं इसलिए तो हमें संत महात्मा कभी प्यार से और कभी चेतावनी के रूप से हमें समझाते रहते हैं हमें उपदेश देते रहते हैं कि भाई नाम की कमाई कर लो इसके बिना तुम्हारा पार उतारा नहीं हो सकता हमें भी समझना चाहिए कि जो हमारे संत महात्मा हमें समझाते हैं उस पर हमें अमल करना चाहिए, विचार करना चाहिए कि हमें भी नाम की कमाई में लगना है चाहे कुछ भी हो जाए हमें उसकी याद में बैठना है भजन सिमरन पर बैठना है साध संगत जी इसी के चलते हम आपसे इजाजत लेते हैं और अगर आप परमार्थी साखियां सुनना पसंद करते हैं या पढ़ना पसंद करते हैं तो आप इस Website को सब्सक्राइब कर लीजिए ताकि आपको हर नई साखी मिल सके परमार्थ से जुड़ी बातें आपको मिल सके ।
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