गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक सत्संगी भाई ने सेवा के दौरान संगत को सुनाई थी जैसे कि हम जानते हैं कि जब भी हम सेवा करने जाते हैं या सेवा करनी शुरू करते हैं तो उससे पहले मालिक का ध्यान किया जाता है उसकी याद में बैठा जाता है सभी संगत से विनती की जाती है कि कृपया 5 मिनट मालिक की याद में बैठे, नाम सिमरन करें और उसके बाद ही सेवा शुरू होगी, तो ऐसे ही सेवा लगी हुई थी उस जत्थे का जो सेवादार था उसने यह साखी सभी संगत को सुनाई थी वह मैं आपसे सांझा करता हूं उन्होंने कहा था जैसे कि हम पर कोई दुख की घड़ी आ जाती है कोई मुसीबत की घड़ी हम पर आ जाती है हम परेशान हो जाते हैं चिंता में पड़ जाते हैं कि अब क्या होगा ? तो उस समय हमें परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारी देखभाल करने के लिए मालिक है अगर हमने अपना हाथ उसको पकड़ा दिया है तो हमें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि फिर वह खुद हमारी संभाल करता है अगर हमें नामदान मिल गया है गुरु की कृपा से हमें नाम बक्शीश हो गई है ,तो फिर हमें किसी बात का डर नहीं होना चाहिए
क्योंकि हमारे सतगुरु हमारे बाबाजी हर पल हमारे साथ हैं और जिस पर गुरु का हाथ होता है उस पर कोई मुसीबत नहीं आ सकती क्योंकि सतगुरु नाम दान के समय उस अभिलाषी जीव की जिम्मेवारी ले लेते हैं और उस पर कोई मुसीबत नहीं आने देते, उसे हर मुश्किल से निकाल देते हैं हम में से जिनको भी नाम दान मिल गया है वह बहुत ही भागो वाले हैं क्योंकि पूरा गुरु मिलना बहुत ही मुश्किल है हम ऐसे गुरु की तलाश नहीं कर सकते वह तो उसकी ही कृपा है मालिक की ही कृपा है कि हमें उससे मिला दे हमारा हाथ उसके हाथ में दे दे अब जब हमें नामदान मिल जाता है तो एक तरह से हमने संत मत में, रोहानियत में अपना दाखिला करवा लिया है अब उसे निभाने की जिम्मेवारी हमारी होती है जैसे कि फरमाया जाता है कि नामदान केवल रोहानियत में एक दाखिला है अगर हम नाम सिमरन की कमाई करेंगे मालिक की भजन बंदगी करेंगे तो हम इससे पार हो जाएंगे हमारा पार उतारा हो जाएगा, हमारा आना जाना खत्म हो जाएगा हम इस भवसागर से पार हो जाएंगे, अगर नहीं की तो हम यही भटकते रहेंगे बार बार आना पड़ेगा और आप जी ने फरमाया कि हम दुख की घड़ी में तो मालिक को याद करते हैं लेकिन सुख की घड़ी में उसकी याद ही नहीं आती हम दुनियादारी में इतना खो जाते हैं दुनिया की सुख सहुलतोतो में इतना खो जाते हैं कि हमें उसकी याद ही नहीं आती तो ऐसे ही बाबा फरीद जी हुआ करते थे जो कि बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा हुए हैं जिन्होंने मालिक की भजन बंदगी का प्रचार किया उसके नाम का प्रचार किया और जैसा जीवन व्यतीत करते थे वैसा ही उनकी संगत करने वाले लोगों को भी वह वैसा ही आचरण रखने के लिए कहते थे अक्सर देखा जाता था कि जब सब लोग इकट्ठे होकर फरियाद करते थे तो बाबा फरीद जी भी उनमें शामिल होते थे जब उस कुल मालिक के आगे फरियाद की जाती थी सब लोग फरियाद के समय मालिक से अपनी अपनी बातें जाहर करते थे कि हमें सुख देना और मुसीबतों से बचाए रखना, बाबा फरीद जी फरियाद में यह कहते थे की हे मालिक ! मुझे दुख देना और जब दूसरे लोग यह बात सुनते थे तो वह बाबा फरीद जी से कहते थे कि यह आप क्या कह रहे हैं हम सभी उस खुदा के आगे सुख की फरियाद कर रहे हैं आप दुख मांग रहे हैं यह क्या बात हुई ! तो बाबा फरीद जी मुस्कुराए और उन्होंने इसका बहुत ही सुंदर तरीके से जवाब दिया कि अगर मैं मालिक से सुख मांगूंगा तो मुझे उसकी याद ही नहीं आएगी मैं तो फिर इस दुनिया के सुख मैं खो जाऊंगा और जो खो जाता है उसे मालिक की याद कहां से आती है आप देख सकते हैं जो राजे महाराजे हैं उनकी दिनचर्या क्या है वह नाचगाना करते हैं शराब पीते हैं बस इन्हीं कामों में अपना जीवन जाया कर देते हैं उन्हें उस कुल मालिक उस खुदा की कोई खबर नहीं होती क्योंकि वह दुनिया के इस सुख में दुनिया की इस माया में इतने खोए हुए हैं कि उन्हें सत्य की कोई खबर नहीं मालिक की कोई खबर नहीं वह माया की नींद में सोए हुए हैं और यह नींद इतनी मीठी है कि इससे जग पाना मुश्किल है अगर गुरु की कृपा हो तो ही इससे निकला जा सकता है इससे बचा जा सकता है और दूसरी तरफ देखें जिन्हें दुख होता है जिन्हें दुख रहता है वह हर पल उस मालिक को याद करते रहते हैं कि हमें बख्श लो हम पर रहम करो, वह मालिक से हर पल एक तरह से जुड़ जाते हैं क्योंकि उससे जुड़ने का कारण वह दुख ही है अगर दुख नहीं होता तो उन्हें उस खुदा की कोई याद नहीं आनी थी अब दुख है तो उसकी याद आ रही है ऐसे ही अगर दुख होगा तो हम उससे जुड़े रहेंगे उसकी याद हमें आती रहेगी ,सत्य की खबर हमें होगी हमें याद आएगी कि हमारा पिता व वह कुल मालिक वह खुदा है यह संसार तो उसकी एक रचना है एक मात्र सत्य वही है जो इसे चला रहा है तब हम इस माया की नगरी से आजाद हो पाएंगे हमें मुक्ति मिल सकेगी अगर सुख में रहे तो हमें उसकी कोई याद नहीं आएगी हम सुख में इतने खो जाएंगे कि अपना सारा जीवन इसी माया में जाया कर कर चले जाएंगे इसलिए उस खुदा के आगे फरियाद करता हूं कि मुझे दुख देना ताकि तेरी याद हर पल मुझे आती रहे साध संगत जी जैसे कि फरमाया जाता है कि दुख की घड़ी हो या सुख की घड़ी हो हमें बिना नागा भजन सिमरन करना है लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है कि हम दुनिया के इस सुख को देखते हुए उस कुल मालिक की याद में बैठना भूल जाते हैं इससे हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है कि जब तक हमारे पास सुख है तब तक हमें कुल मालिक कि कोई याद नहीं कोई खबर नहीं और जब दुख आता है तब हम कैसे नाक रगड़ कर उसके आगे फरियाद करते हैं कि हमें बख्श ले हम पर रहम कर लेकिन अगर हमने उसको सुख में भी याद किया होता तो दुख आना ही नहीं था जो उसकी याद में बैठते हैं उन्हें सुख दुख से कोई फर्क नहीं पड़ता चाहे कोई भी स्थिति हो जाए वह इन सब बातों से ऊपर उठ जाते हैं वह पूर्ण संत महात्मा कहलाते हैं इसलिए हमें भी नाम की कमाई में लगना है शब्द की कमाई में लगना है ताकि हम भी उस अवस्था को प्राप्त कर सकें जब हमें दुख सुख से कोई भी अंतर ना पढ़ सके साध संगत जी ऐसी ही और साखियां सुनने के लिए या पढ़ने के लिए इस Website को सब्सक्राइब कर लीजिए ताकि आपको हर नई साखी मिलती रहे ।
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