गुरु प्यारी साध संगत जी जैसे कि हम जानते हैं कि इस महामारी के दौरान कैसे दुनिया की मुश्किलें बढ़ रही हैं सभी तरफ कोहराम हुआ पड़ा है हाल ही के दिनों में अमेरिका में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिल रहा है बहुत बड़ी संख्या में वहां पर लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं इस समय वहां पर इस महामारी से बहुत लोग अपनी जान गवां चुके है इसी के दौरान अमेरिका में कुछ सोसाइटीज है जो वहां पर लोगों तक वह चीजें पहुंचा रही हैं जिसकी उन्हें जरूरत है जैसे खाने पीने का सामान, इसी के चलते अमेरिका के राष्ट्रपति ने सभी धर्म संस्थाओं का आदर किया कि आप इस देश को यह सब प्रदान कर रहे हैं, कैसे आप देश की सेवा कर रहे हैं ,साध संगत जी जैसे कि हम जानते हैं कि अगर समाज में कोई भी मुश्किल आ जाती है तो जैसे कि हमारे गुरु साहिबानो ने हमें समझाया है हमें उपदेश दिया है कि हमें समाज की सेवा करनी है उनकी सेवा में लगना है
अगर कोई समाज में भूखा है तो उसे खाना देना है यही हमें हमारे गुरु साहिबानों ने हमें सिखाया है और हम उस पर अमल भी करते हैं क्योंकि हमारे संत महात्माओं का यह उपदेश है हमारे इस देश भारत में जितने भी संत महात्मा हुए हैं उन्होंने हमें यही उपदेश दिया है कि हमें दूसरों का भला करना है दूसरों में मालिक की ज्योति को देखना है उनकी मदद करनी है उनकी भलाई करनी है वह भी बिना कोई फर्क किए कि वह मुसलमान है वह किसी और धर्म का है हमें यह फर्क नहीं करना हमें केवल उनकी मदद करनी है सिर्फ इस भाव से कि हम सेवा कर रहे हैं आप देख सकते हैं कि भारत में भी कैसे सभी धर्म संस्थाएं अपनी तरफ से जितना हो सके वह लोगों की मदद कर रही हैं उनको खाना दे रही है जैसे कि हमारे भी कुछ सत्संगी भाई इस सेवा में लगे हुए हैं अब इस समय जो यह सेवा निभा रहे हैं वह बहुत भागो वाले जीव है क्योंकि इस समय हर किसी के लिए सेवा करना संभव नहीं है जिसको मालिक चाहे उसी को सेवा में लगाता है, कैसे गुरु की प्यारी संगत ,लोगों की सेवा कर रही है उन तक खाना पहुंचा रही है जिन्हें जो जरूरत है वह समान उन्हें दे रही है यह सब मालिक के हुक्म से ही हो रहा है लेकिन यह भी कुछ लोग कहते हैं कि इस समय किसी की कोई भी मदद करने की जरूरत नहीं क्योंकि सब के पास उसके गुजारे जितना है लेकिन हमें क्या पता कि मालिक किस भाव से उन लोगों तक खाना पहुंचा रहा है, क्या वह उसका प्रसाद भी हो सकता है ,उसकी दया मेहर भी हो सकती है, जो लोगों तक पहुंच रहा है तो ऐसे ही अमेरिका में भी बहुत सारी संगत सेवा में जुटी हुई है गुरु घरों में खाने के पैकेट बनाकर संगत में दिए जा रहे हैं ताकि आगे लोगों तक पहुंचाए जा सके तो इसी के चलते वहा के राष्ट्रपति ने सभी समूह साध संगत की प्रशंसा की ,कि आप कैसे देश को संभाला रहे है और सेवा को देखकर इतने प्रसन्न हुए कि कितना डिसिप्लिन है कितनी सफाई का ध्यान रखा जा रहा है उन्होंने सेवा कर रहे सत्संगीओ को जब देखा तो उन्हें सेवा का असल अर्थ समझ में आया उन्होंने देखा कि सेवा इसे कहते हैं जो निस्वार्थ भाव से की जा रही हो उन्होंने कहा कि इन्हें इस काम के कोई पैसे भी नहीं मिलने ,लेकिन फिर भी यह कितनी लगन से सेवा कर रहे हैं यह शब्द उन्होंने वहां पर कहें, यह उनसे कहीं ज्यादा है इसका कोई मूल्य नहीं है वे यह देखकर बहुत खुश हुए इसमें हमारी तो प्रशंसा हुई ही और हमारे गुरु की भी बहुत प्रशंसा हुई जिन्होंने हमें उपदेश दिया जिन्होंने हमें सिखाया है कि कैसे समाज की सेवा करनी है जब कोई मुश्किल घड़ी आ जाए ,कैसे दूसरों की मदद करनी है, स्वार्थी नहीं बनना, आगे होकर मदद के लिए हाथ बढ़ाना है और अगर हम मदद करते हैं तो हमें जताना नहीं है कि मैंने इतनी सेवा दी है यह भी हमारे सतगुरु ने हमें सिखाया है कि अगर दाया हाथ दान करता है तो बाएं हाथ को पता नहीं होना चाहिए कि दान किया गया है इसी तरह सेवा करनी चाहिए और सेवा करते हुए मन में कोई ऐसा विचार नहीं होना चाहिए कि मैं इस काम के लिए सेवा कर रहा हूं, निस्वार्थ भाव से सेवा की जानी चाहिए यही हमारे सतगुरु ने हमें सिखाया है हमारे बाबा जी ने हमें सिखाया है आप देख सकते हैं कि कैसे पूरी दुनिया में हम सत्संगीयों की प्रशंसा हो रही है लेकिन फिर भी देखें कि किसी भी न्यूज़ चैनल वाले को बुला कर दिखाया नहीं जा रहा कि हम कितनी सेवा कर रहे हैं ऐसा ही किस्सा पंजाब में हुआ कि न्यूज़ चैनल वाले सत्संग घर में जा पहुंचे उन्होंने गेट के बाहर सेवादार को कहा कि हमें अंदर जाकर सेवा कर रहे लोगों से कुछ बातें करनी है कृपया हमें इजाजत दें लेकिन सेक्रेटरी साहब ने उन्हें यह इजाजत नहीं दी क्योंकि वह अपने सतगुरु के भाने को मानते हैं कि हमें कोई दिखावा नहीं करना कि हम कितनी सेवा कर रहे हैं या हमने कितना कर दिया है तो उन्होंने उन्हें इजाजत नहीं दी उन्हें बाहर से ही मोड़ दिया गया ,आपने किसी भी चैनल पर नहीं देखा होगा कि यह दिखाया जा रहा है कि संगत कितनी सेवा कर रही है ऐसे ही हमारे सतगुरु हमारे हमारे बाबा जी हमें उपदेश देते हैं कि अगर हम कुछ करते हैं कोई सेवा करते हैं तो उसे हजम करना सीखें ,किसी तरह का एहसान जताने की जरूरत हमें नहीं है और फरमाया जाता है की सेवा करने से मन निर्मल होता है मन झुकना सीखता है जब हम साध संगत की सेवा करते हैं तो हमारा मन झुकना सीखता है यह हमारे लिए भजन सिमरन में बहुत ही सहायक है सेवा हमारे लिए हमारे भजन सिमरन में बहुत बड़ी सहायक बनती है क्योंकि हमारा मन अहंकारी है तो जब हम इसे सेवा में लगाते हैं साध संगत की सेवा करते हैं यह निर्मल हो जाता है और जब यह भजन सिमरन पर बैठता है तो मालिक की कृपा से बात भी बन जाती है तो हमें भी हमारे आस पास जो भी जरूरतमंद है उनकी सेवा करनी है निस्वार्थ भाव से हमें उनकी सेवा करनी है जिसे जितनी जरूरत है उसे उतना ही देना है ताकि सबको दिया जा सके और हमें किसी तरह का दुरुपयोग नहीं करना है क्योंकि देखने में आया है कि खाने का दुरुपयोग भी हो रहा है हमें दुरुपयोग करना नहीं सिखाया गया, हमें हर चीज का उपयोग करना सिखाया गया है कि हमें जितनी जरूरत है हमें उतना ही लेना है जितनी जरूरत है उसको उतना ही देना है तो हमें भी इस समय सतगुरु के हुक्म को मानकर समाज सेवा करनी है उनकी सेवा में लगना है यही हमारे लिए सतगुरु की सेवा है जो हम वहां जाकर करते हैं ।
अगर कोई समाज में भूखा है तो उसे खाना देना है यही हमें हमारे गुरु साहिबानों ने हमें सिखाया है और हम उस पर अमल भी करते हैं क्योंकि हमारे संत महात्माओं का यह उपदेश है हमारे इस देश भारत में जितने भी संत महात्मा हुए हैं उन्होंने हमें यही उपदेश दिया है कि हमें दूसरों का भला करना है दूसरों में मालिक की ज्योति को देखना है उनकी मदद करनी है उनकी भलाई करनी है वह भी बिना कोई फर्क किए कि वह मुसलमान है वह किसी और धर्म का है हमें यह फर्क नहीं करना हमें केवल उनकी मदद करनी है सिर्फ इस भाव से कि हम सेवा कर रहे हैं आप देख सकते हैं कि भारत में भी कैसे सभी धर्म संस्थाएं अपनी तरफ से जितना हो सके वह लोगों की मदद कर रही हैं उनको खाना दे रही है जैसे कि हमारे भी कुछ सत्संगी भाई इस सेवा में लगे हुए हैं अब इस समय जो यह सेवा निभा रहे हैं वह बहुत भागो वाले जीव है क्योंकि इस समय हर किसी के लिए सेवा करना संभव नहीं है जिसको मालिक चाहे उसी को सेवा में लगाता है, कैसे गुरु की प्यारी संगत ,लोगों की सेवा कर रही है उन तक खाना पहुंचा रही है जिन्हें जो जरूरत है वह समान उन्हें दे रही है यह सब मालिक के हुक्म से ही हो रहा है लेकिन यह भी कुछ लोग कहते हैं कि इस समय किसी की कोई भी मदद करने की जरूरत नहीं क्योंकि सब के पास उसके गुजारे जितना है लेकिन हमें क्या पता कि मालिक किस भाव से उन लोगों तक खाना पहुंचा रहा है, क्या वह उसका प्रसाद भी हो सकता है ,उसकी दया मेहर भी हो सकती है, जो लोगों तक पहुंच रहा है तो ऐसे ही अमेरिका में भी बहुत सारी संगत सेवा में जुटी हुई है गुरु घरों में खाने के पैकेट बनाकर संगत में दिए जा रहे हैं ताकि आगे लोगों तक पहुंचाए जा सके तो इसी के चलते वहा के राष्ट्रपति ने सभी समूह साध संगत की प्रशंसा की ,कि आप कैसे देश को संभाला रहे है और सेवा को देखकर इतने प्रसन्न हुए कि कितना डिसिप्लिन है कितनी सफाई का ध्यान रखा जा रहा है उन्होंने सेवा कर रहे सत्संगीओ को जब देखा तो उन्हें सेवा का असल अर्थ समझ में आया उन्होंने देखा कि सेवा इसे कहते हैं जो निस्वार्थ भाव से की जा रही हो उन्होंने कहा कि इन्हें इस काम के कोई पैसे भी नहीं मिलने ,लेकिन फिर भी यह कितनी लगन से सेवा कर रहे हैं यह शब्द उन्होंने वहां पर कहें, यह उनसे कहीं ज्यादा है इसका कोई मूल्य नहीं है वे यह देखकर बहुत खुश हुए इसमें हमारी तो प्रशंसा हुई ही और हमारे गुरु की भी बहुत प्रशंसा हुई जिन्होंने हमें उपदेश दिया जिन्होंने हमें सिखाया है कि कैसे समाज की सेवा करनी है जब कोई मुश्किल घड़ी आ जाए ,कैसे दूसरों की मदद करनी है, स्वार्थी नहीं बनना, आगे होकर मदद के लिए हाथ बढ़ाना है और अगर हम मदद करते हैं तो हमें जताना नहीं है कि मैंने इतनी सेवा दी है यह भी हमारे सतगुरु ने हमें सिखाया है कि अगर दाया हाथ दान करता है तो बाएं हाथ को पता नहीं होना चाहिए कि दान किया गया है इसी तरह सेवा करनी चाहिए और सेवा करते हुए मन में कोई ऐसा विचार नहीं होना चाहिए कि मैं इस काम के लिए सेवा कर रहा हूं, निस्वार्थ भाव से सेवा की जानी चाहिए यही हमारे सतगुरु ने हमें सिखाया है हमारे बाबा जी ने हमें सिखाया है आप देख सकते हैं कि कैसे पूरी दुनिया में हम सत्संगीयों की प्रशंसा हो रही है लेकिन फिर भी देखें कि किसी भी न्यूज़ चैनल वाले को बुला कर दिखाया नहीं जा रहा कि हम कितनी सेवा कर रहे हैं ऐसा ही किस्सा पंजाब में हुआ कि न्यूज़ चैनल वाले सत्संग घर में जा पहुंचे उन्होंने गेट के बाहर सेवादार को कहा कि हमें अंदर जाकर सेवा कर रहे लोगों से कुछ बातें करनी है कृपया हमें इजाजत दें लेकिन सेक्रेटरी साहब ने उन्हें यह इजाजत नहीं दी क्योंकि वह अपने सतगुरु के भाने को मानते हैं कि हमें कोई दिखावा नहीं करना कि हम कितनी सेवा कर रहे हैं या हमने कितना कर दिया है तो उन्होंने उन्हें इजाजत नहीं दी उन्हें बाहर से ही मोड़ दिया गया ,आपने किसी भी चैनल पर नहीं देखा होगा कि यह दिखाया जा रहा है कि संगत कितनी सेवा कर रही है ऐसे ही हमारे सतगुरु हमारे हमारे बाबा जी हमें उपदेश देते हैं कि अगर हम कुछ करते हैं कोई सेवा करते हैं तो उसे हजम करना सीखें ,किसी तरह का एहसान जताने की जरूरत हमें नहीं है और फरमाया जाता है की सेवा करने से मन निर्मल होता है मन झुकना सीखता है जब हम साध संगत की सेवा करते हैं तो हमारा मन झुकना सीखता है यह हमारे लिए भजन सिमरन में बहुत ही सहायक है सेवा हमारे लिए हमारे भजन सिमरन में बहुत बड़ी सहायक बनती है क्योंकि हमारा मन अहंकारी है तो जब हम इसे सेवा में लगाते हैं साध संगत की सेवा करते हैं यह निर्मल हो जाता है और जब यह भजन सिमरन पर बैठता है तो मालिक की कृपा से बात भी बन जाती है तो हमें भी हमारे आस पास जो भी जरूरतमंद है उनकी सेवा करनी है निस्वार्थ भाव से हमें उनकी सेवा करनी है जिसे जितनी जरूरत है उसे उतना ही देना है ताकि सबको दिया जा सके और हमें किसी तरह का दुरुपयोग नहीं करना है क्योंकि देखने में आया है कि खाने का दुरुपयोग भी हो रहा है हमें दुरुपयोग करना नहीं सिखाया गया, हमें हर चीज का उपयोग करना सिखाया गया है कि हमें जितनी जरूरत है हमें उतना ही लेना है जितनी जरूरत है उसको उतना ही देना है तो हमें भी इस समय सतगुरु के हुक्म को मानकर समाज सेवा करनी है उनकी सेवा में लगना है यही हमारे लिए सतगुरु की सेवा है जो हम वहां जाकर करते हैं ।
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