गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी सन 1927 की है जब सतगुरु महाराज जी हुआ करते थे उस समय लोग बहुत सीधे हुआ करते थे, ज्यादा मन में प्रसन्न नहीं होते थे उस समय के लोग ज्यादा विवादों में नहीं पड़ते थे सतगुरु जो हुकुम करते थे उनके भाने को मानकर वही काम करने में लग जाते थे अपने मुर्शिद से अपने गुरु से बिना सवाल किए हुकम की पालना करते थे लेकिन अगर आज के समय में देखा जाए तो हम में से कुछ भाई हैं जो कोई भी काम करने से पहले विचार करने लग जाते हैं अपनी बुद्धि से पूछने लग जाते हैं कि क्या यह काम मेरे लिए सही होगा या नहीं तो वह विचारों में पड़ जाते हैं लेकिन उस समय ऐसा नहीं होता था जो हुक्म कर दिया संगत उस सेवा में लग जाती थी
अपनी बुद्धि को हटाकर जो सतगुरु का हुक्म है उसकी पालना करने में लग जाती थी और इसीलिए उस समय लोगों के सीधे पन के कारण उनका ध्यान भी जल्दी लग जाता था क्योंकि सतगुरु जो उन्हें समझाते थे वह बिल्कुल वैसा ही करते थे अपनी मनमर्जी नहीं करते थे अपनी मनमानी नहीं करते थे अगर उन्हें कहा जाता था कि इतनी देर सिमरन पर बैठना है तो वह अपने गुरु के इस हुक्म को सबसे ऊपर रखकर भजन बंदगी करते थे अपने गुरु के हुक्म की पालना करते थे अपने गुरु के भाने को मानते थे क्योंकि उनका अपने सतगुरु से बहुत प्रेम था इसलिए उस समय महाराज जी ने बहुत संगत को उस मालिक से मिलाया ,उस मालिक की राह दिखाई और बहुत संगत उस मार्ग पर चली और मंजिल को प्राप्त हुई ,क्योंकि उन्होंने अपने सतगुरु का भाना माना सतगुरु के घर की सेवा की वह भी बिना कोई सवाल किए बिना कोई प्रश्न किए, इस समय बेशक हमारा सतगुरु से प्रेम है प्यार है लेकिन कहीं ना कहीं जाकर हम वाद विवाद में पड़ जाते हैं ना चाहते हुए भी इन सब चीजों में पड़ जाते हैं कि शायद जो वह कह रहे हैं वह मेरे लिए इतना जरूरी नहीं है उनका तो काम ही है बोलना ,कहना, लेकिन यह मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मुझे करना है कि नहीं करना है लेकिन उस समय ऐसा नहीं होता था संगत का इतना गहरा प्रेम होता था कि अगर उस समय सतगुरु कह देते थे कि आज पूरा दिन भजन पर बैठना है तो कुछ सज्जना ऐसे भी होते थे कि पूरा पूरा दिन भजन बंदगी में लगा देते थे वह भी अपने गुरु के प्यार की खातिर, जो हुक्म होता वह करने के लिए हमेशा से तैयार रहते थे उनका सीधा पन ही उन्हें मालिक से मिलवा गया, वह बिल्कुल एक छोटे बच्चे के जैसे थे इसलिए तो कहा जाता है कि अगर मालिक से मिलना हो तो एक बच्चे के जैसे होना पड़ेगा अपनी मनमर्जी करनी दूर करनी पड़ेगी, हटानी होगी जो हुक्म होता है वैसा ही करना पड़ेगा,उन्हें जैसा करने को कहा जाता था वह करने में लग जाते थे इसलिए तो कहा गया है कि बच्चे मालिक का रूप होते हैं क्योंकि वह बहुत ही सीधे होते हैं उनको जैसा बताओ वह वैसा ही करने लग जाते हैं इसलिए बच्चों को मालिक का रूप कहा जाता है लेकिन इस समय हम इतने उलझे हुए हैं इतने विचारों में पड़े हुए हैं कि ना तो हमें अपने सतगुरु का हुक्म समझ में आता है ना हमें यह पता चलता है कि हम करना क्या चाहते हैं और क्यों करना चाहते हैं मन जैसा हम से करवा रहा है हम अपने मन की सुनकर उसके पीछे लग रहे हैं हमें अपनी कोई सुध बुध नहीं है ऐसे ही एक सत्संगी मांझी हुआ करती थी जो कि बिल्कुल सीधी थी ,कोई प्रश्न नहीं ,जो हुकुम वही करना अगर बोला गया है कि ढाई घंटे भजन सिमरन करना है तो ढाई घंटे ही करना है ना कम ना ज्यादा अगर सतगुरु ने 5 घंटे बोल दिया तो 5 घंटे बैठना है हुक्म मानना है हुकुम की पालना करनी है तो ऐसे ही उस समय मांझी से एक सत्संगी बहन ने सवाल कर दिया कि अगर आप की मृत्यु के समय हजूर महाराज जी आपको लेने आ जाए तो क्या आप उनके साथ जाओगे तो माझी ने कहा कि नाम दान देते वक्त मुझे मेरे सतगुरु ने यह हुक्म किया है कि भजन बंदगी करनी है इतना समय भजन सिमरन को देना ,मृत्यु के समय मैं तुम्हारी संभाल करूंगा मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाता हूं तो मेरे मौजूदा सतगुरु ने मेरी जिम्मेदारी ली है ऐसी कोई बात नहीं है कि वह बड़े हैं या फिर यह छोटे हैं बात एक ही है जो मुझे मेरे सतगुरु ने हुक्म किया है मैं तो वैसा ही करूंगी अगर उन्होंने कहा है कि वह मुझे लेने आएंगे तो मैं उनके साथ ही जाऊंगी क्योंकि मैं हुकम की पालना कर रही हूं मेरे लिए हुकम सबसे ऊपर है मेरे लिए मेरे महाराज जी का हुक्म सबसे ऊपर है मेरे लिए और कोई भी काम इतना विशेष नहीं है जितना मेरे लिए मेरे सतगुरु का हुक्म है यह बात महाराज जी को पता चल गई की माई ने ऐसा कहा है महाराज जी थोड़ा सा मुस्कुरा पड़े और जब उस माता का मृत्यु का समय आया ,माता को पता चल गया था उसका समय नजदीक है अब उसे जाना है तो वह पहले से ही तैयारी में लग गई क्योंकि अक्सर देखा जाता है जो सत्संगी अभ्यासी होते हैं उन्हें मृत्यु की खबर पहले ही हो जाती है लेकिन जिन्होंने भजन सिमरन नहीं किया उन्हें तो कुछ नहीं पता चलता कि कब क्या हो जाए जिन्होंने नाम की कमाई की होती है शब्द की कमाई की होती है उन्हें हर खबर पहले ही मालूम पड़ जाती है तो जब माता को पता चला कि उसका समय नजदीक आ गया है अब उसे जाना है तो वह तैयारी में लग गई और वह ध्यान में बैठ गई की आखरी बार अपने सतगुरु की हुकुम की पालना कर लूं और जब वह ध्यान में लीन हो गई तो हजूर महाराज जी उसके ध्यान में आए और कहा कि चलो आपका समय आ गया है माताजी ने कुछ नहीं बोला माताजी ने उस समय महाराज जी ने जो बताया था उस नाम का जाप करना शुरू कर दिया और जैसा बताया जाता है वैसा ही करना शुरू कर दिया उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया हजूर महाराज जी ने दो बार कहा कि चलो समय हो गया है माता जी ने महाराज जी को याद किया कि महाराज जी आपका हुक्म था कि आप मुझे लेने आओगे अगर आप मुझे यहां आकर कह दो कि आप हजूर महाराज जी के साथ चले जाओ तो मैं चली जाऊंगी लेकिन आपके हुकुम की उलांगना, में नहीं कर सकती तो जो सावन सिंह जी महाराज जी थे वही हजूर महाराज जी थे वह दूसरे रूप में माता के सामने प्रकट हुए माता को समझ में आया कि कोई अलग नहीं है सब एक ही जोत है ,हमारे देखने की दृष्टि है कि वह बड़े महाराज जी हैं वह हजूर महाराज जी है, माता को उस समय यह समझ में आया कि जोत एक ही है माता के आंसू निकल गए और महाराज जी यह देखकर बहुत खुश हुए की हुकुम की पालना पूरी तरह की गई है ,ये साखी उस समय उस सत्संगी परिवार के एक सदस्य ने ही संगत को सुनाई थी साध संगत जी ऐसी ही और साखियां सुनने के लिए इस Website को सब्सक्राइब कर लीजिए ।
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