अगर नामदान की बकसीश हो गई है तो इस साखी को जरूर सुने


गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी नामदान की बक्सीश से संबंधित है इस साखी में हमें नाम जैसी बड़ी और अनमोल दौलत के बारे में अपने सतगुरु की अपार कृपा के बारे में पता चलेगा कि नाम से बड़ी दौलत और कोई भी नहीं और नाम की कमाई कोई मजाक नहीं तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।


बुखारा का बादशाह इब्राहिम अदम को परमार्थ का शौक हुआ वह फकीरों की तलाश में रहने लगा लेकिन ऐसो आराम की जिंदगी भी जीता रहा , उसकी सेज सवा मन फूलों से तैयार होती थी एक दिन उसने अपने दो मंजिला मकान के ऊपर 2 आदमी घूम रहे दिखे , उसने पूछा भाई ! कौन हो ? उन्होंने कहा हम सारवान है , उसने पूछा कैसे आए हो ? कहने लगे कि हमारा ऊंट खो गया है तो बादशाह ने कहा कभी उठ महलों की छत पर आते हैं ? जवाब मिला कभी परमात्मा भी सवा मन फूलों की सेज पर मिलता है इतनी बात कहकर वह दोनों अलोप हो गए और बादशाह बेहोश हो गया जब उसे होश आया तो उसकी सोच ने पलटा खाया और परमात्मा की तलाश में अपने मुल्क के फकीरों के पास जाने लगा लेकिन तसल्ली ना हुई, हिंदुस्तान में आया ,बहुत ढूंढा फिर भी तसल्ली ना हुई आखिर काशी जा पहुंचा कबीर साहिब के आगे ,कि मुझे अपना शिष्य बना लो कबीर साहब ने कहा कि तू बादशाह मैं गरीब जुलाहा तेरा मेरा गुजारा कैसे होगा ? अर्ज की बादशाह बनकर तेरे द्वार पर नहीं आया एक गरीब भिखारी बन कर आया हूं ,खुदा के लिए मुझे बख्श लो , औरतें नरम दिल होती हैं जो कि कबीर साहिब जी की पत्नी थी सिफारिश की तो उसे रख लिया बादशाह नालियां बांटने का काम करने लगा एक दिन माई लोई ने कबीर साहेब को कहा कि यह बादशाह और हम गरीब जुलाहे है जो हम खाते हैं वही खा कर चुप रहता है इसको कुछ दो ! कबीर साहिब ने कहा कि अभी इसका हृदय निर्मल नहीं हुआ, माइ ने कहा कि क्या फर्क है आप ऐसा क्यों कह रहे है, रूखी सूखी खाकर यह हमारी सेवा करता है हुक्म मानने से इनकार नहीं करता इसका हृदय कैसे निर्मल नहीं, कबीर साहिब कहने लगे ऐसा करो घर का कूड़ा करकट लेकर छत पर चढ़ जाओ मैं इसको बाहर भेजता हूं जब यह जाने लगे तो इसके सिर पर डाल देना और पीछे हटकर कान लगाकर सुनना कि क्या कहता है, क्या बोलता है, माई ऊपर गई तो कबीर साहिब ने कहा बेटा मैं बाहर कुछ भूल आया हूं उसे अंदर ले आओ, बादशाह बाहर गया माई ने सिर पर कूड़ा डाल दिया और बादशाह गुस्से में बोला अगर होता बुखारा जो करता सो करता ,माइ ने आकर कबीर साहिब को बताया कि ऐसा कहता था कबीर साहिब ने कहा कि मैंने जो तुझसे कहा था कि अभी हृदय साफ नहीं है, हुआ नाम के काबिल नहीं हुआ है, 6 साल और बीत गए 1 दिन कबीर साहिब ने कहा कि अब बर्तन तैयार है माइ ने कहा कि मुझे तो कुछ फर्क दिखाई नहीं देता जैसा पहले था वैसा ही अब है कबीर साहिब के घर साधु महात्मा आते रहते थे कई बार ऐसा मौका आता कि खाने-पीने को कुछ नहीं होता था तो चने खाकर ही सो जाना पड़ता था माइ ने कहा कि जिस तरह पहले हमारे हुकुम से इनकार नहीं करता था अब भी उसी तरह है जो कुछ हम देते हैं वही खा लेता है कबीर साहिब ने कहा कि अगर तू फर्क देखना चाहती है तो पहले तू घर का कूड़ा करकट ले गई थी अब और गंदगी बदबू वाली गली सड़ी चीजें इकट्ठी करके ले जा ,जब गली से निकले इसके सिर पर डाल देना, माई ने ऐसा ही किया जब बादशाह बाहर निकला तो माई ने जो गंदगी थी उसके सिर पर डाल दी बादशाह खुश हुआ उसका मूह लाल हो गया , कहने लगा शाबाश डालने वाले तेरा भला हो यह मन अहंकारी था इसका यही इलाज था माइ ने आकर कबीर साहेब को बताया कि जी अब तो वैसे कहता था कबीर साहिब ने कहा मैं जो तुझसे कहता था कि अब कोई कसर बाकी नहीं है, हृदय नाम के काबिल हो गया है, साध संगत जी, कबीर साहिब जैसा संत सद्गुरु और बादशाह बुखारा जैसा शिष्य ,फिर और क्या चाहिए था जैसे ही कबीर साहिब ने उसे नाम दिया उसकी रूह ऊपर चढ़ गई फिर कबीर साहिब ने कहा जा ! अब जहां मर्जी जाकर बैठ जा तेरी भक्ति पूरी हो गई, साध संगत जी जैसे कि आपने साखी में सुना कि कैसे कबीर साहब ने बादशाह बुखारा की परीक्षा की उसको पहले नाम के काबिल बनाया ,नाम दान देने से पहले उसको उसके काबिल कबीर साहब ने बनाया और फिर जाकर उसे नामदान की बख्शीश की और अगर हम इस समय देखें तो हमारे सतगुरु हमारे बाबाजी कितने दयालु हैं कितने दयावान है जो हमारी परख नहीं करते कि हमने क्या किया है हम क्या पीछे कर कर आए हैं , क्या हमारे कर्म है, वह अपनी दया मेहर से हमारे किए गए पिछले सारे कर्म काट देते हैं वह हमारे किए गए कर्मों पर गौर ना करते हुए हमें नामदान की बख्शीश करते हैं, अपने गले से लगाते है, वह यह नहीं देखते कि यह जीव पीछे क्या क्या कर कर आया है उसे अपनी शरण दे देते हैं वह तो हमारी इतनी परीक्षा भी नहीं लेते आप देख लीजिए उस समय जब कोई संत सद्गुरु अपने किसी शिष्य को नाम दान देता था तो उसकी कितनी परीक्षा ली जाती थी फिर जाकर उसे नामदान की बख्शीश होती थी तो हम समझ सकते हैं कि नाम कितनी बड़ी दौलत है जो ऐसे ही दी नहीं जा सकती यह केवल पूर्ण संत महात्माओं के पास मिलती है और इतनी आसानी से नहीं मिलती उनकी सेवा करनी पड़ती है उनके हुक्म में रहना पड़ता है उनकी साध संगत की सेवा करनी पड़ती है इसके बिना गुरु की खुशी प्राप्त नहीं की जा सकती आप इतिहास देख लीजिए अपने गुरु के लिए हमारे संत महात्माओं ने क्या-क्या नहीं किया उनकी खुशी के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं किया अपनी आंख तक निकाल कर दे दी गुरु साहब ने पानी धोया लेकिन अगर हम अपनी तरफ देखें तो हमने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया और ना ही कर सकते है, लेकिन फिर भी सतगुरु बाबा जी हम पर कृपा कर कर हमें नामदान की बख्शीश कर देते हैं कितनी आसानी से हमें नाम दान मिल जाता है लेकिन फिर भी हमें उसकी कदर नहीं है हम उनके हुक्म की पालना नहीं करते उनके हुक्म को हम नहीं मानते ,वह हमें कितना समझाते हैं कि भाई भजन सिमरन करो उन्होंने तो अपनी तरफ से पहल कर दी है सतगुरु ने अपनी तरफ से जो देना था हमें दे दिया अब हमारी बारी है हमें कर कर दिखाना है बनकर दिखाना है  साध संगत जी नाम बहुत बड़ी दौलत है जिसको पाकर फकीर बादशाही को ठोकर मार देता है नाम की कमाई कोई मजाक नहीं है गुरु नानक साहब 11 साल पत्थरो कि सेज पर रहे गुरु अमरदास जी ने 12 साल पानी धोया है, हिर्दे जितना निर्मल होता है नाम उतनी ही जल्दी असर करता है , साध संगत जी हम आपके लिए ऐसी ही रूहानी साखियां लेकर आते रहते हैं ऐसी साखियां रोजाना पाने के लिए और रूहानियत से जुड़े रहने के लिए नीचे E- mail डालकर Website को सब्सक्राइब कर लीजिए ,ताकि आपको आने वाली साखी की Notification मिल सके ।
राधा स्वामी जी

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