डेरे का लंगर खाने वाली संगत बाबा जी की ये लीला जरूर सुने


गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी हजूर महाराज जी के समय की है साध संगत जी जब भी हम गुरु घर जाते हैं वहां पर जाकर सेवा करते हैं सत्संग सुनते हैं उसके साथ ही हम गुरु घर का लंगर भी खाते हैं इस साखी में हमें गुरु घर के लंगर की अहमियत के बारे में पता चलेगा ।

ये साखी एक सत्संगी की सच्ची कहानी है ,साध संगत जी संगत को बार-बार कहा जाता है कि जितनी जरूरत है उतना ही लंगर लीजिए यह गुरु घर का लंगर है इसे व्यर्थ मत कीजिए यह बार-बार संगत को कहा जाता है क्योंकि गुरु घर का लंगर हर किसी के नसीब नहीं होता वह जीव बहुत ही भागों वाले होते हैं जो गुरु घर का लंगर खाते हैं गुरु घर की सेवा करते हैं क्योंकि यह सब मालिक के हुक्म से ही होता है मालिक ही उन्हें वहां भेजता है संगत की सेवा करने के लिए हमें प्रेरित करता है हम अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते जो भी होता है उसके हुक्म से ही होता है
साध संगत जी यह बात उन दिनों की है जब स्टेशन पर कुछ सत्संगीयों की सेवा लगी हुई थी वहां पर कुछ काम चल रहा था जिसके कारण कुछ सत्संगी भाई वहां पर सेवा कर रहे थे तो उनका लंगर भी वहां पर ही आ जाता था क्योंकि स्टेशन से लंगर की ओर जाना मुश्किल होता था तो इसीलिए उनका लंगर स्टेशन पर ही पहुंचा दिया जाता था ताकि उन्हें कोई मुश्किल ना हो बाबा जी की संगत को कोई परेशानी ना हो तो साध संगत जी ऐसे ही उन सत्संगी भाइयों ने सेवा के दौरान स्टेशन के पास ही एक पेड़ के नीचे बैठकर गुरु घर का लंगर खाया ,लंगर खाने के बाद रोटी के कुछ टुकड़े वहां पर गिर गए और वह सेवादार लंगर खाकर वहां से चले गए वापस अपनी सेवा में लीन हो गए । साध संगत जी यह बात उस सत्संगी ने खुद संगत के बीच सतगुरु के सामने कही थी सतगुरु का सत्संग चल रहा था और वह सत्संग में खड़ा होकर कहने लगा कि हे सच्चे पातशाह ! मुझे आपसे एक अर्ज करनी है कृपया मुझे मेरी बात कहने दे सतगुरु ने कहा कि सत्संग के बाद कह देना फिर उसे बिठा दिया गया लेकिन कुछ देर बाद वह फिर खड़ा हो गया और कहने लगा सतगुरु मुझसे रहा नहीं जाता मुझे मेरी बात कहने दे ,तो सतगुरु ने कहा था कि चला ले जेडी तू बंदूक चलानी है तो उसने उस समय संगत को कहा था की ये जो आपके सामने बैठे हैं यह कोई इंसान नहीं है यह रब है यह मैंने खुद महसूस किया है मैं आपको अपनी बात बताता हूं पिछले जन्म में मैं एक चील था और डेरा ब्यास के पास मेरा ठिकाना था और वही रहता था एक दिन मैंने देखा कि जमीन पर कुछ रोटी के टुकड़े पड़े हुए हैं तो मैं वहां पर गया और मैंने वह रोटी के टुकड़े खाए जो कि डेरा ब्यास के लंगर के थे और उसके बाद ही मेरी मृत्यु हो गई और मुझे यह मनुष्य जन्म मिल गया यह बात मुझे अंतर्ध्यान होकर पता चली कि मैं पिछले जन्म में एक चील था, हे गुरु प्यारी संगते यह खुद रब है यह कहते नहीं है यह खुद ही रब है मेरी बात मानो ! जब मुझे मनुष्य जन्म मिला तो मुझे सतगुरु ने नामदान की बख्शीश भी कर दी उसके बाद मैं समझ गया था कि जो मैंने डेरे का लंगर खाया है यह सब उसी की वजह से है क्योंकि मुझ में ऐसी कोई भी ताकत नहीं है कि मैं गुरु तक पहुंच सकूं यह सब सतगुरु ने किया क्योंकि जो कोई भी गुरु घर का लंगर खा लेता है सद्गुरु उसका पार उतारा जरूर करते हैं इसलिए तो संगत को बार-बार कहा जाता है कि यह गुरु घर का लंगर है इसे व्यर्थ ना करें, इसे व्यर्थ ना करें,यह बात उन्होंने बहुत बार संगत के बीच कहीं उस समय बहुत सारी संगत के आंखों में आंसू भी आ गए थे । साध संगत जी इसीलिए तो फरमाया जाता है कि अब तो गुरु द्वारा नामदान की बक्शीश भी हो गई है सब कुछ हो गया है अब कमी हमारी तरफ से ही है जो हमें सतगुरु ने देना था हमें दे दिया है अब करनी करने की बारी हमारी है हम थोड़ी सी मेहनत करेंगे तो हमारा इस जन्म मरण के चक्कर से हमें छुटकारा मिल जाएगा सतगुरु हमें अपने साथ सचखंड ले जाएंगे हमें तो उस कुल मालिक का शुक्र करना चाहिए कि उसने हमें खुद अपने से मिला लिया खुद ही अपनी पहचान हमें करवा दी नहीं तो हमारी क्या औकात है कि हम गुरु की पहचान कर सकें सतगुरु हमारे कर्म नाम दान देते समय ही काट देते हैं जो भी बारी-बारी कर्म हमारे होते हैं वह तो गुरु घर का लंगर खाने से ही कट जाते हैं तो आप सोच सकते हैं कि जब सतगुरु नामदान की बख्शीश करते हैं तो हमारा पिछला जो भी हिसाब होता है उसे एकदम से साफ कर देते हैं और उस दिन से हमें एक और मौका उस कुल मालिक की भजन बंदगी करने का हमें देते हैं कि आज से दोबारा शुरू करो हमें पूरी तरह से निखार देते हैं अपना रंग हम पर छोड़ देते हैं और हमारी सारी मेल नामदान की बख्शीश के समय उतर जाती है हमारे सारे कर्म उस समय कट जाते हैं लेकिन यह बातें सतगुरु कहते नहीं हैं क्योंकि अगर वह यह सब बताने लग जाए तो हम में से कोई भी भजन सिमरन नहीं करेगा इसलिए सतगुरु कभी यह बातें कहते नहीं हैं और हमें केवल और केवल भजन बंदगी करने के लिए कहते हैं ताकि हम खुद पहचान कर सके खुद वहां तक पहुंच सके खुद जान सके उस मालिक से मिलाप कर सके, करने को सतगुरु बहुत कुछ कर सकते हैं अपनी एक दया मेहर की दृष्टि से ही हमारा पार उतारा कर सकते हैं लेकिन वह चाहते हैं कि उसके बच्चे खुद अपने पैरों पर खड़े हो खुद जाने खुद पहचान करें इसीलिए हमें ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन करने के लिए कहते हैं हमें बार-बार समझाते हैं कि यह मनुष्य जन्म बहुत ही अनमोल है यह बार-बार नहीं मिलना अभी अगर थोड़ी सी मेहनत कर ली जाए तो हमारा पार उतारा हो सकता है हमारा उस कुल मालिक से मिलाप हो सकता है हम फिर से अपने असल धाम सचखंड जा सकते हैं सतगुरु ने नामदान की बख्शीश कर हमारी जिम्मेवारी ली है इसीलिए हमें जोर देकर समझाते हैं कभी हमें प्यार से समझाते हैं और कभी-कभी हमें डांट कर समझाते हैं डांटने की आवश्यकता तब पड़ती है जब उनके बच्चे समझते नहीं उनका कहना नहीं मानते लेकिन जो उनके हुक्म की पालना करते हैं सतगुरु उनको किसी चीज की कमी नहीं रहने देते जैसे कि वह फरमाते हैं कि अगर नाम की कमाई की शब्द की कमाई की भजन सिमरन को पूरा समय दिया तो मालिक आपका परमार्थ भी सवार देगा और स्वार्थ भी बना देगा तो साध संगत जी हमें और क्या चाहिए सतगुरु ने खुद हमें चुना है खुद हमें नामदान की बक्शीश की है हमारी जिम्मेदारी ली है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि सतगुरु की याद में भजन सिमरन को पूरा समय दे ,उसके अच्छे बच्चे बनने की कोशिश करें । साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।

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