गुरु प्यारी साध संगत जी सतगुरु ऐसे ही संगत में बैठे हुए थे संगत से कुछ बातें कर रहे थे सतगुरु बहुत ही खुश दिखाई पड़ रहे थे और बहुत सारी संगत उनके दिव्य स्वरूप को देखकर बहुत आनंदित हो रही थी और अपने-अपने प्रश्न उनके आगे रखकर उनसे सवाल पूछ रही थी किसी को कुछ पूछना था कोई नाम सिमरन के बारे में पूछ रहा था कोई अपने कारोबार के बारे में पूछ रहा था लेकिन जैसे कि आप जानते हैं कि जो पूर्ण संत महात्मा होते हैं वह दुनिया की बातों में ज्यादा रुचि नहीं रखते वह सबसे ज्यादा महत्व संत मंत को देते हैं रोहानियत को देते हैं तो जो संगत अपने नाम सिमरन के बारे में अपने अभ्यास के बारे में सतगुरु से सवाल पूछ रही थी सतगुरु उसके उत्तर बहुत ही अच्छी तरह से दे रहे थे लेकिन हममें से कुछ ऐसे भी होते हैं जिनका रोहानियत की तरफ ध्यान कम होता है और दुनिया में ज्यादा होता है अपने कारोबार में ज्यादा ध्यान देते हैं रोहानियत को तो वह एक कार्रवाई समझते हैं तो उस समय एक अभ्यासी ने सतगुरु से पूछा की सतगुरु मैं नाम सिमरन करने की कोशिश करता हूं लेकिन मेरा मन नाम सिमरन में नहीं लगता बार-बार मुझे बाहर की तरफ दौड़आता रहता है इसमें कोई ना कोई विचार चलते रहते हैं इसलिए मेरा मन नाम सिमरन में नहीं लगता और साथ ही मेरी सेहत भी ठीक नहीं रहती मुझे कुछ शारीरिक रोग है जिनकी वजह से मैं बीमार रहता हूं तो शायद कभी मुझे ऐसे भी लगने लगता है
कि शायद मैं अपने स्वास्थ्य के कारण नाम सिमरन में मन नहीं लगा पाता ,कृपया मेरी यह शंका दूर करें कि मेरा मन नाम सिमरन में क्यों नहीं लगता इसमें इतने विचार इतने ख्याल क्यों आते हैं यह विचार तब ही आते हैं जब मैं भजन सिमरन पर बैठता हूं नाम की कमाई करने बैठता हूं तब ही यह विचार एक फिल्म की तरह मेरे दिमाग में चलने लग जाते हैं तो मैं इन से जूझता रहता हूं इनको हटाने में लगा रहता हूं और जितना मैं इनको दूर करने की कोशिश करता हूं उतने ही और बढ़ते रहते हैं और बढ़ जाते हैं जिनसे मुझे बहुत परेशानी होती है और मेरा सिमरन करने का बिल्कुल भी मन नहीं करता मैं उठ जाता हूं तो उस समय सतगुरु ने पहले सारी बात सुनी उसके बाद जवाब दिया कि हमें नाम सिमरन रोजाना करना है बिना नागा करना है चाहे कुछ भी हो जाए हमें एक समय तय करना है जिस समय हमें नाम सिमरन पर बैठना है और जैसे-जैसे हम निर्धारित किए गए समय पर बैठना शुरु करेंगे तो यह मन अपने आप लगना शुरू हो जाएगा हमें एक समय तय करना होगा कि मुझे इस समय नाम सिमरन पर बैठ जाना है तो धीरे-धीरे मन अपने आप उस आदत में ढलना शुरू हो जाएगा फिर यह अपने आप नाम सिमरन पर बैठना शुरू कर देगा ,पहले पहले तकलीफ होती है पहले पहले बहुत मुश्किलें आती हैं तो सबसे पहले हमें एक समय निर्धारित करना होगा और हमें जब नाम सिमरन पर बैठ जाना है तो हमें मन की तरफ ध्यान नहीं देना, इसको छोड़ देना है इसकी तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना ,यह जो करता है इसे करने देना है क्योंकि अगर हम विचारों को हटाने लग जाते हैं विचारों को दूर करने लग जाते हैं तो उसे और बढ़ जाते हैं तो हमें सिर्फ और सिर्फ नाम सिमरन का जाप करना है और करते जाना है और देखते जाना है कि यह मन क्या क्या कर रहा है लेकिन मन के मामले में दखलंदाजी नहीं करनी इसे जो करता है इसे करने दे, इसे अपना काम करने दे आप अपना काम करें आप नाम सिमरन का जाप करें और धीरे-धीरे आप पाएंगे कि मन बिल्कुल शांत होने लगा, विचार कम होने लगे और एक स्थिति ऐसी भी आ जाती है जब कोई विचार नहीं रहता सब विचार खत्म हो जाते हैं ऐसा इसलिए होता है कि हमने मन की तरफ ध्यान ही नहीं दिया इसे छोड़ दिया इसकी तरफ ध्यान हटा लिया, तो यह अपनी हरकतें करना बंद कर देगा, विचार आने बंद हो जाएंगे, मन बिल्कुल शांत हो जाएगा तब नाम सिमरन का जाप शुरू होगा और नाम धुन सुनाई पड़ेगी और जहां तक बात शरीर की है शरीर एक कपड़े जैसा है हमें इसकी परवाह किए बिना नाम सिमरन पर बैठना है चाहे कोई भी बात हो हमें उसकी याद में बैठना है बाकी जो भी रोग इस शरीर में होंगे वह अपने आप दूर हो जाएंगे क्योंकि जब हम नाम की कमाई करनी शुरू कर देते हैं नाम सिमरन करना शुरू कर देते हैं तब पूरी जिम्मेवारी मालिक की हो जाती है, मालिक हमारे अंग संग रहता है और जैसे कि जो दुख होते हैं वह हमारे पिछले ही किए गए कर्म है जिनका हिसाब किताब हमें भुगतना होगा चाहे रो कर भुगत ले या हंसकर, लेकिन भुगतना तो पड़ेगा ही और अगर हम नाम सिमरन पर ज्यादा ध्यान देने लगे मालिक की तरफ ध्यान देने लगे तो मालिक हमारे सारे कर्म काट देता है जैसे कि एक आग की चिंगारी लकड़ी के ढेर को नाश कर देती है ऐसे ही मालिक के नाम का जाप भी हमारे सारे कर्म काट देता है हमारे सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं हमें तो बस नाम सिमरन की तरफ ध्यान देना है और बाकी सब उस कुल मालिक पर छोड़ देना है उसके बाद जिम्मेवारी उसकी है फिर वह हमें दुख नहीं आने देता, खुद हमारी संभाल करता है जैसे कि एक फिल्म होती है उसमें हर एक को रोल दिया जाता है और यह सभी काम फिल्म निर्माता पर निर्भर करता है कि उसको किसे क्या काम देना है वह उसके ऊपर निर्भर करता है जो वह कहता है फिल्म में काम करने वाले लोगों को ऐसा ही करना पड़ता है ऐसे ही यह संसार भी उसकी एक फिल्म है यहां पर जो होता है उसके हुक्म से होता है उसके हुक्म के बाहर कुछ नहीं होता और जैसे-जैसे हम नाम सिमरन करते हैं वह हम पर खुश होकर हमारे सभी कर्म काट देता है और हमारे सभी दुख दर्द दूर कर देता है और उसकी कृपा हम पर अपार हो जाती है तो जब हम पर उसकी कृपा एक बार हो जाती है तो हमें और क्या चाहिए तो ऐसे ही हमें भी नाम की कमाई करनी में लगना है पूर्ण संत महात्माओं के संदेश को समझना है उनके बताए गए मार्ग पर चलना है और बिना नागा नाम सिमरन करना है साध संगत जी जो पूर्ण संत महात्मा होते हैं वह रोहानियत से जुड़े होते हैं मालिक से मिले होते हैं वह दुनिया से एक प्रकार से मुख मोड़ ही लेते हैं रहते इस दुनिया में ही हैं लेकिन यहां रहते हुए भी वह यहां के नहीं होते वह यहां के कीचड़ में गंदे नहीं होते उनकी रहनी सहनी हम जैसे आम इंसानों से अलग ही होती है उनका आचरण हमसे बहुत अलग होता है वह कम खाते हैं कम पीते हैं कम सोते हैं ज्यादा समय नाम सिमरन में देते हैं मालिक की भजन बंदगी में देते हैं वह आठ पेहर उस कुल मालिक की भजन बंदगी करते रहते हैं वह हमारे बीच होते हुए भी मालिक से जुड़े होते हैं लेकिन हमें लगता है कि यह हमारे जैसे हैं हमारे बीच खड़े हैं हम से बात कर रहे हैं लेकिन वह जब भी हम से बात कर रहे होते हैं तब भी वह मालिक से जुड़े होते हैं बेशक बात वह हमसे कर रहे होते हैं लेकिन उनके अंदर नाम सिमरन चलता रहता है नाम की कमाई उनके अंदर चलती रहती है क्योंकि वह उस स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं यहां पर जाकर हमें नाम का उच्चारण नहीं करना पड़ता नाम अपने आप चलने लग जाता है इसलिए उनके अंदर दिन-रात नाम चलता रहता है ।
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