गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी बड़े महाराज जी के समय की है उस समय डेरा इतना विकसित नहीं हुआ था केवल थोड़े से लोग होते थे थोड़ी सी संगत होती थी तो वहां पर कुछ सेवादार थे जो तन मन से गुरु घर की सेवा करते थे जो सतगुरु का हुक्म होता था वह उस हुक्म की पालना करते थे क्योंकि उनका अपने सतगुरु से इतना प्रेम था की सतगुरु कोई भी हुक्म करते थे उसे निभाने में लग जाते थे क्योंकि वह अपने सतगुरु महाराज जी के हुक्म को सर्वप्रथम रखते थे उनके लिए और कोई काम इतना महत्वपूर्ण नहीं होता था जितना कि उनके लिए महाराज जी का हुक्म होता था सतगुरु लगभग 4 से 5 घंटे का सत्संग रोजाना करते थे उस समय इतनी देर तक सत्संग किया जाता था और सत्संग में सतगुरु केवल और केवल भजन सिमरन पर ज्यादा जोर देते थे संगत को हमेशा भजन सिमरन बिना नागा करने के लिए कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए समय निकालकर हमें मालिक की भजन बंदगी करनी है चाहे कितने ही काम क्यों ना हो, हमें समय निकालना ही है तो ऐसे ही वहां पर कुछ सेवादार ऐसे होते थे जिनसे भजन सिमरन तो नहीं होता था लेकिन वह सेवा तन और मन से गुरु घर की करते थे महाराज जी को भी यह बात पता थी कि मेरे कुछ बच्चे हैं जो भजन सिमरन ठीक से नहीं निभाते लेकिन सेवा तन मन से करते हैं जी जान से करते हैं महाराज जी उनको बार-बार समझाने की कोशिश भी करते थे कि भाई सेवा अपनी जगह है भजन सिमरन अपनी जगह है सेवा एक यरिया है उस मालिक तक पहुंचने का लेकिन भजन सिमरन के बिना बात नहीं बन सकती
सेवा करने से मन निर्मल होता है और जैसे ही मन निर्मल हो जाता है वैसे ही रूह की चढ़ाई हो जाती है इसलिए सेवा करने का हुक्म दिया जाता है ताकि भजन सिमरन में चढ़ाई करनी आसान हो जाए लेकिन अगर हम सेवा ही करते रहे और भजन सिमरन नहीं किया तो फिर हम आगे कैसे बढ़ पाएंगे तो इसीलिए हमें भजन भी करना है लेकिन उनमें से एक सेवादार था जो बहुत सेवा करता था लेकिन उससे भजन सिमरन नहीं हो पाता था महाराज जी ने उसे बहुत बार कहा था कि भाई तू बहुत अच्छा सेवादार है लेकिन भजन सिमरन भी कर लिया कर वह यही कहता था की सतगुरु मुझसे जितना हो सकता है मैं करता हूं बाकी जिम्मेदारी आपकी है बाकी सब आप जानते हैं मैंने अपने आप को आप पर छोड़ दिया है अगर आप मुझसे भजन सिमरन करवा सकते हो वह आपकी कृपा है तो जब उस भाई का मृत्यु का समय नजदीक आया तो वहां पर जो संगति थी वह उसके पास इकट्ठी हो गई क्योंकि वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था उसकी आवाज सुनकर संगत वहां पर इकट्ठी हो गई तो यह बात सतगुरु तक पहुंची, तो सतगुरु ने कहा उसे कहो नाम सिमरन का जाप करें जब यह बात का सनेहा उस तक पहुंचाया गया तो उसने कहा कि महाराज जी को यहां पर लेकर आओ मुझसे उठा नहीं जा रहा तो सेवादार फिर से महाराज जी के पास गया और महाराज जी से कहा कि महाराज जी वह तो आपको बुला रहा है लेकिन महाराज जी अंतर्ध्यान थे कुर्सी पर बैठे थे महाराज जी ने कहा कि मैं अभी थोड़ी देर में आता हूं आप उसे कहो कि नाम सिमरन का जाप करता रहे और उस सेवादार ने उस भाई को यही जाकर कहा कि महाराज जी ने कहा है नाम सिमरन का जाप करते रहो लेकिन वह बहुत तड़प रहा था तो उसकी तड़प देखकर सेवादार फिर से महाराज जी के पास गया और महाराज जी से कहा कि महाराज जी वह बहुत तड़प रहा है आपकी जरूरत वहां पर है तो महाराज जी ने कहा कि ,क्या मैं उसे काल के मुंह में जाने दूं,उसकी तड़प का मुझे पता है लेकिन उसने नाम की कमाई नहीं की , रूह की चढ़ाई नहीं हुई और उसका हिसाब किताब किया जा रहा है उसे दोबारा जन्म लेना पड़ेगा इसकी ही चर्चा और हिसाब किताब कॉल कर रहा था और उसे दोबारा जन्म देने की पूरी व्यवस्था हो गई थी लेकिन उसने मेरी संगत की सेवा की है और जो मेरी संगत की सेवा करता है उसे तो मैं हर हाल में सचखंड लेकर ही जाऊंगा फिर जो चाहे हो जाए इसलिए उसे अभी इतनी तड़प हो रही है क्योंकि उसकी पहले चढ़ाई नहीं हुई अब रूह ऊपर चढ़ रही है और उसे तकलीफ हो रही है इसीलिए तो मैं कहता हूं कि भाई जीते जी मर जाओ जीते जी उस मालिक से मिल जाओ ताकि मृत्यु के समय कोई तकलीफ ना हो उसके बाद महाराज जी उसके पास गए और महाराज जी ने उसके सिर पर हाथ रखा और उसकी चीखें बंद हो गई और उसने अंतिम सांस ली और वह मालिक को प्यारा हो गया साध संगत जी इसे कहते हैं पूरे गुरु की पहचान कि जब कोई पूरा गुरु अपने शिष्य की जिम्मेदारी लेता है तो उसे बीच रास्ते में नहीं छोड़ता जो कहता है वह करता भी है जब गुरु ने वचन दे दिया कि अब तुम मेरी जिम्मेवारी हो तो वह उसे हर हाल में सचखंड लेकर जाता है कुछ भी हो जाए वह अपने जीव को काल के इस जंजाल से मुक्त करवा ही लेता है यह पूरे गुरु की पहचान होती है वह अपने जीव को इस संसार में दोबारा नहीं लौटने देता, उसकी इसी जन्म में मुक्ति करवा देता है लेकिन सतगुरु की खुशी केवल और केवल हमारे भजन सिमरन में है, करने को तो सतगुरु बहुत कुछ कर सकते हैं लेकिन अगर वह ऐसा बोलने लग जाएं तो हम में से कोई भी भजन सिमरन नहीं करेगा हम तो उन पर ही निर्भर हो जाएंगे लेकिन सतगुरु चाहते हैं कि मेरे बच्चे खुद अपने पैरों पर खड़े हो ,खुद नाम की कमाई करें वह सब कुछ जान ले जो उनके जानने योग्य है कि वह मालिक की अंश है आत्मा मालिक की अंश है इसलिए सतगुरु कहते हैं कि जीते जी मर जाओ और जिसने जीते जी मर कर देख लिया होता है उसे फिर मृत्यु से किसी तरह का कोई भी डर नहीं रहता जैसे कि कबीर साहब फरमाते हैं " जिस मरने ते जग डरे ,मेरे मन आनंद मरने ही ते पाइए पूर्ण परमानंद" जिसने जीते जी मर कर देख लिया उसे मृत्यु से फिर भय नहीं रहता और कबीर साहब कहते है जिस मौत से दुनिया डरती है वह तो मेरे लिए आनंद का सागर है मेरे लिए तो वह परमानंद है यह वचन केवल और केवल पूर्ण संत महात्मा ही कह सकते हैं जिन्होंने जीते जी मर कर देखा है और वह शिक्षा अपने शिष्यों को भी देते हैं कि भाई नाम की कमाई करने में लगो जीते जी मर जाओ ताकि दोबारा आना जाना खत्म हो जाए जन्म जन्म का यह खेल खत्म हो जाए और मालिक से मिलाप हो जाए ,माया के इस खेल से छुटकारा मिल जाए साध संगत जी हमें भी बाबाजी के हुक्म की पालना करनी है उनके कहे गए वचनों का पालन करना है ।
सेवा करने से मन निर्मल होता है और जैसे ही मन निर्मल हो जाता है वैसे ही रूह की चढ़ाई हो जाती है इसलिए सेवा करने का हुक्म दिया जाता है ताकि भजन सिमरन में चढ़ाई करनी आसान हो जाए लेकिन अगर हम सेवा ही करते रहे और भजन सिमरन नहीं किया तो फिर हम आगे कैसे बढ़ पाएंगे तो इसीलिए हमें भजन भी करना है लेकिन उनमें से एक सेवादार था जो बहुत सेवा करता था लेकिन उससे भजन सिमरन नहीं हो पाता था महाराज जी ने उसे बहुत बार कहा था कि भाई तू बहुत अच्छा सेवादार है लेकिन भजन सिमरन भी कर लिया कर वह यही कहता था की सतगुरु मुझसे जितना हो सकता है मैं करता हूं बाकी जिम्मेदारी आपकी है बाकी सब आप जानते हैं मैंने अपने आप को आप पर छोड़ दिया है अगर आप मुझसे भजन सिमरन करवा सकते हो वह आपकी कृपा है तो जब उस भाई का मृत्यु का समय नजदीक आया तो वहां पर जो संगति थी वह उसके पास इकट्ठी हो गई क्योंकि वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था उसकी आवाज सुनकर संगत वहां पर इकट्ठी हो गई तो यह बात सतगुरु तक पहुंची, तो सतगुरु ने कहा उसे कहो नाम सिमरन का जाप करें जब यह बात का सनेहा उस तक पहुंचाया गया तो उसने कहा कि महाराज जी को यहां पर लेकर आओ मुझसे उठा नहीं जा रहा तो सेवादार फिर से महाराज जी के पास गया और महाराज जी से कहा कि महाराज जी वह तो आपको बुला रहा है लेकिन महाराज जी अंतर्ध्यान थे कुर्सी पर बैठे थे महाराज जी ने कहा कि मैं अभी थोड़ी देर में आता हूं आप उसे कहो कि नाम सिमरन का जाप करता रहे और उस सेवादार ने उस भाई को यही जाकर कहा कि महाराज जी ने कहा है नाम सिमरन का जाप करते रहो लेकिन वह बहुत तड़प रहा था तो उसकी तड़प देखकर सेवादार फिर से महाराज जी के पास गया और महाराज जी से कहा कि महाराज जी वह बहुत तड़प रहा है आपकी जरूरत वहां पर है तो महाराज जी ने कहा कि ,क्या मैं उसे काल के मुंह में जाने दूं,उसकी तड़प का मुझे पता है लेकिन उसने नाम की कमाई नहीं की , रूह की चढ़ाई नहीं हुई और उसका हिसाब किताब किया जा रहा है उसे दोबारा जन्म लेना पड़ेगा इसकी ही चर्चा और हिसाब किताब कॉल कर रहा था और उसे दोबारा जन्म देने की पूरी व्यवस्था हो गई थी लेकिन उसने मेरी संगत की सेवा की है और जो मेरी संगत की सेवा करता है उसे तो मैं हर हाल में सचखंड लेकर ही जाऊंगा फिर जो चाहे हो जाए इसलिए उसे अभी इतनी तड़प हो रही है क्योंकि उसकी पहले चढ़ाई नहीं हुई अब रूह ऊपर चढ़ रही है और उसे तकलीफ हो रही है इसीलिए तो मैं कहता हूं कि भाई जीते जी मर जाओ जीते जी उस मालिक से मिल जाओ ताकि मृत्यु के समय कोई तकलीफ ना हो उसके बाद महाराज जी उसके पास गए और महाराज जी ने उसके सिर पर हाथ रखा और उसकी चीखें बंद हो गई और उसने अंतिम सांस ली और वह मालिक को प्यारा हो गया साध संगत जी इसे कहते हैं पूरे गुरु की पहचान कि जब कोई पूरा गुरु अपने शिष्य की जिम्मेदारी लेता है तो उसे बीच रास्ते में नहीं छोड़ता जो कहता है वह करता भी है जब गुरु ने वचन दे दिया कि अब तुम मेरी जिम्मेवारी हो तो वह उसे हर हाल में सचखंड लेकर जाता है कुछ भी हो जाए वह अपने जीव को काल के इस जंजाल से मुक्त करवा ही लेता है यह पूरे गुरु की पहचान होती है वह अपने जीव को इस संसार में दोबारा नहीं लौटने देता, उसकी इसी जन्म में मुक्ति करवा देता है लेकिन सतगुरु की खुशी केवल और केवल हमारे भजन सिमरन में है, करने को तो सतगुरु बहुत कुछ कर सकते हैं लेकिन अगर वह ऐसा बोलने लग जाएं तो हम में से कोई भी भजन सिमरन नहीं करेगा हम तो उन पर ही निर्भर हो जाएंगे लेकिन सतगुरु चाहते हैं कि मेरे बच्चे खुद अपने पैरों पर खड़े हो ,खुद नाम की कमाई करें वह सब कुछ जान ले जो उनके जानने योग्य है कि वह मालिक की अंश है आत्मा मालिक की अंश है इसलिए सतगुरु कहते हैं कि जीते जी मर जाओ और जिसने जीते जी मर कर देख लिया होता है उसे फिर मृत्यु से किसी तरह का कोई भी डर नहीं रहता जैसे कि कबीर साहब फरमाते हैं " जिस मरने ते जग डरे ,मेरे मन आनंद मरने ही ते पाइए पूर्ण परमानंद" जिसने जीते जी मर कर देख लिया उसे मृत्यु से फिर भय नहीं रहता और कबीर साहब कहते है जिस मौत से दुनिया डरती है वह तो मेरे लिए आनंद का सागर है मेरे लिए तो वह परमानंद है यह वचन केवल और केवल पूर्ण संत महात्मा ही कह सकते हैं जिन्होंने जीते जी मर कर देखा है और वह शिक्षा अपने शिष्यों को भी देते हैं कि भाई नाम की कमाई करने में लगो जीते जी मर जाओ ताकि दोबारा आना जाना खत्म हो जाए जन्म जन्म का यह खेल खत्म हो जाए और मालिक से मिलाप हो जाए ,माया के इस खेल से छुटकारा मिल जाए साध संगत जी हमें भी बाबाजी के हुक्म की पालना करनी है उनके कहे गए वचनों का पालन करना है ।
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