नाम लेने के 3 दिन बाद लड़के के साथ हुआ कुछ ऐसा ! जिसे सुनकर सब हैरान रह गए । जरूर सुने

साध संगत जी यह साखी हम सत्संगीओं के लिए सुननी बहुत ही जरूरी है जो रोहानियत से जुड़े हुए हैं जो उस कुल मालिक से जुड़े हुए हैं
साध संगत जी यह बात उन दिनों की है जब हमने इतनी तरक्की नहीं की थी जब सीधे-साधे लोग हुआ करते थे जिनमें बहुत ही प्रेम और प्यार होता था और वह एक दूसरे की मदद करते थे तब ना कोई मोबाइल हुआ करता था ना ही इंटरनेट हुआ करता था,क्योंकि आजकल के समय में हमें जिस चीज के बारे में जानना होता है उसको हम इंटरनेट पर सर्च कर लेते हैं लेकिन उस समय ऐसा नहीं होता था अगर किसी के मन में कोई प्रश्न पैदा होता था तो वह उससे पूछने के लिए उसका जवाब जाने के लिए गुरु को खोजते थे किसी पूर्ण संत महात्मा को ढूंढते थे जो उसका जवाब उन्हें दे सके, अगर किसी ने किसी को कुछ कहना होता तो पत्र लिखे जाया करते थे उस समय एक गांव में एक बहुत ही पहुंचे हुए संत रहते थे जिनका आश्रम उस गांव में था संगत वहां जाया करती थी उनका सत्संग सुना करती थी और सभी गांव वाले उनका बहुत ही मान आदर करते थे क्योंकि वह कुल मालिक से जुड़ी बातें करते थे और उस मालिक का रूप थे उनकी सूरत निरंतर मालिक से जुड़ी रहती थी गांव वालों को कभी भी कोई परेशानी होती जा कोई मुसीबत आ जाती तो वह उनके पास जाते थे और वह उनकी मुसीबत को दूर कर देते थे क्योंकि साध संगत जी जो मालिक से जुड़े होते हैं जो पूर्ण संत महात्मा होते हैं वह कुछ भी कर सकते हैं उनके मुख्य से निकला एक एक शब्द अनमोल होता है वह मालिक का रूप होते हैं ,साध संगत जी ऐसे ही उस गांव में एक छोटा सा परिवार था जिनका एक बेटा था वह भी अक्सर उस महात्मा के पास जाया करता था उनका जो बेटा था वह जन्म से ही कुछ अलग था उसकी बातें किसी को समझ में नहीं आती थी और उसका उस महात्मा से बहुत ही प्रेम था प्यार था वह अक्सर उनके पास जाया करता और महात्मा का भी उससे बहुत प्रेम था क्योंकि जो मालिक से जुड़े होते हैं उनका प्रेम अपने आप एक दूसरे के प्रति बन जाता है मालिक खुद अपने प्यारों को एक दूसरे से मिलवा देता है साध संगत जी वह लड़का अक्सर उस महात्मा की सेवा किया करता उनके आश्रम में ही रहता उस लड़के की मां यह सब देखकर बहुत ही परेशान होती थी कि मेरा लड़का ऐसा क्यों है यह सबसे अलग क्यों है यह किसी के साथ खेलता भी नहीं इसे क्या बात है एक दिन उसने यही बातें उस महात्मा से की, की सद्गुरु मेरा बेटा ऐसा क्यों है यह और बच्चो जैसा क्यों नहीं है यह खेलता भी नहीं है और बस चुप सा रहता है बस आपकी सेवा में लीन रहता है इसे आप से ही लगाओ है आपसे ही प्रेम है कृपया मुझे बताएं ऐसा क्यों है उस समय पहले तो महात्मा मुस्कुराए और फिर उन्होंने कुछ देर चुप रहने के बाद उस माता को कहा कि आपका बालक कोई साधारण बालक नहीं है यह उस कुल मालिक का ही रूप है इसे यह जन्म इसलिए लेना पड़ा क्योंकि इसकी बंदगी पिछले जन्म में पूर्ण नहीं हुई थी कुछ यात्रा रह गई थी बस वह थोड़ी सी यात्रा पूरी होनी थी जो कि पिछले जन्म में नहीं हुई इसलिए इसे यह जन्म लेना पड़ा इसलिए इसकी स्थिति ऐसी है कि यह ज्यादा किसी से बातें नहीं करता, चुप रहता है और ऐसे सेवा में लीन रहता है अब इस जन्म में इसकी वह जात्रा पूरी होगी और यह कुल मालिक का रूप हो जाएगा यह कोई साधारण आत्मा नहीं है यह महात्मा है तो उस समय यह बातें सुनकर उसकी माता थोड़ी सी घबराई कि मेरा बेटा ऐसा कैसे हो सकता है मैं तो अपने बेटे को एक अच्छा व्यापारी बनाना चाहती थी लेकिन आप तो कुछ और ही कह रहे है, उस समय उस महात्मा ने कहा की माई ,नाम के व्यापार से ऊपर और कोई व्यापार नहीं है बाकी सब व्यापार इसके आगे फीके पड़ जाते हैं आप किस बात की चिंता कर रही है आपको किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है आपका बेटा आपके साथ आपकी पूरी कुल को तार देगा ,साथ संगत जी जैसे की बानी में भी फरमाया गया है कि अगर किसी कुल में अगर एक भी कोई नाम की कमाई करने वाला महात्मा पैदा हो जाता है तो वह अपनी पूरी कुल को तार देता है तो महात्मा ने कहा कि आपको किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है यह बात सुनते ही उस माता ने फिर उस महात्मा से कहा कि आप ऐसा करें कि आप इसको इन सब बातों से दूर ही रखें ,साथ संगत जी जैसे कि आप जानते हैं कि मताए नहीं चाहती कि उसका बेटा कोई संत महात्मा बने कोई फकीर बने , वह तो चाहती हैं कि उनका बेटा अच्छा डॉक्टर बने , इंजीनियर बने, या फिर कोई अच्छा व्यापारी बने, तो इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए उस माता ने उस महात्मा से यह बात कही, महात्मा फिर मुस्कुराए और कहा कि माता जो अंदर प्रफुल्लित हो रहा है उसको आप रोक नहीं सकती वह आज नहीं तो कल होकर ही रहेगा अगर बीज है तो उसे फिर पेड़ बनता ही बनता है हम जितनी कोशिश कर ले उसे नहीं रोक सकते तो ऐसे ही जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ उसने उस महात्मा से नाम की दौलत ली और अपनी आगे की यात्रा शुरू की और उस मंजिल को प्राप्त हुआ और कुल मालिक का रूप कहलाया उसकी आयु महज 15 वर्ष की थी जब उसे आत्मज्ञान प्राप्त हुआ फिर वह जो बोलता वह सत्य होने लगता कुछ भी होने वाला हो उसे पहले मालूम होता यह बात देख कर उसकी मां चिंता में पड़ गई कि यह सब कैसे जानने लगा इसे सब कैसे मालूम होता है कि आगे क्या होने वाला है वह फिर उस महात्मा के पास गई की सतगुरु उसे सब ज्ञात होता है जो भी होने वाला होता है वह पहले ही कह देता है और जो वह कह देता है वह होकर ही रहता है यह बात सुनकर वह महात्मा फिर से मुस्कुराए और उस माता से कहा की माता यह उस मालिक की लीला है जो उसके भक्त प्यारे बोलते हैं वह मालिक उसे पूरा करने में लग जाता है वह अपने भक्तों प्यारों के वचन को जाया नहीं जाने देता उनके वचन को पूरा करता है क्योंकि जैसे उसके वक्त उसे प्यार करते हैं वह उससे कहीं ज्यादा अपने भक्तों से प्यार करता है इसलिए ऐसा होता है साध संगत जी इस साखी से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि हम सभी यहां पर यात्री ही हैं अपनी अपनी यात्रा पूरा करने के लिए इस कर्मभूमि पर जन्म लिया है जैसे-जैसे यात्रा पूर्ण होती जाती है वैसे वैसे हम मालिक के नजदीक होते जाते हैं और जब हमारी बाजू कोई पूर्ण संत महात्मा पकड़ लेता है तो फिर मालिक अपने आप ही अपनी कृपा कर हमें उस यात्रा को पूरा करने का बल हमें देता है ,ताकत हमें देता है तो हमें भी नाम की कमाई में लगना है नाम की कमाई करनी है उसका हुक्म मानकर करनी है । साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके । 

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