गुरु प्यारी साध संगत जी आज इस वीडियो में हमें पता चलेगा कि जो नाम की कमाई करते हैं दिन रात नाम की कमाई में ही लीन रहते हैं उन्होंने क्या क्या देखा है क्या क्या जान लिया है जो कि हमारे लिए जानना बहुत ही जरूरी है साध संगत जी वैसे तो नाम की कमाई करने वाले संत महापुरुष चुप ही रहते हैं कभी-कभी उनकी मौज होती है तो अपने शिष्य को वह ज्ञान दे देते हैं जिसके काबिल हम नहीं भी होते, नाम की कमाई करने वाले महापुरुषों से ज्ञान प्राप्त होना एक बहुत ही सौभाग्य वाली बात होती है तो वीडियो को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
गुरु प्यारी साध संगत जी यह बातें एक कमाई वाले सत्संगी बुजुर्ग की है जो कि मेरे दोस्त के दादाजी हैं साध संगत जी वह बहुत ही कमाई वाले जीव हैं उनके परिवार वालों का कहना है कि यह दिन-रात नाम की कमाई में ही लीन रहते हैं भजन सिमरन में ही लीन रहते हैं इन्हें किसी और चीज से कोई लेना-देना नहीं इनका सारा समय भजन सिमरन में ही बीत जाता है खाने पीने की तरफ भी इनका कोई ध्यान नहीं होता, बस यह अपने कमरे में ही उस कुल मालिक की भजन बंदगी में लीन रहते हैं कभी-कभी यह थोड़ा सा बाहर आ जाते हैं लेकिन ज्यादा समय उस कुल मालिक की भजन बंदगी मैं ही बिताते हैं और ज्यादा किसी से वह बात भी नहीं करते, कुछ काम की बात हो तो ही बोलते हैं नहीं तो वह चुप ही रहते हैं, साध संगत जी ऐसे ही कभी-कभी दादा जी से बातें करने का मौका मिल जाता है और कभी-कभी वह अपनी मौज में होते हैं तो अपने कुछ अनुभव सांझा करने लग जाते हैं ऐसे ही उन्होंने कुछ बातें की, चर्चा कुछ मौत से संबंधित चल रही थी, की मौत के बाद मनुष्य का क्या होता है उसके साथ क्या-क्या होता है तो पहले तो उन्होंने बताया कि सच में हम मौत किसको कहते हैं मौत यह नहीं है कि कोई मर गया तो उसकी मृत्यु हो गई, असल में सच्ची मृत्यु उस दिन होती है जब हम उस कुल मालिक की याद में नाम की कमाई में लीन हो जाएं और हमें अपनी सुध बुध ही नहीं रहे, उस दिन हमारी सच्ची मृत्यु होती है ऐसे तो मरना जीना लगा ही रहता है हमारा आना जाना लगा ही रहता है और लगा ही रहेगा इस मृत्यु को हम मृत्यु नहीं कह सकते, असल में सच्ची मृत्यु वही है जब हमारी सूरत नाम के रंग में रंग जाए और हमें अपनी सुध बुध ही ना रहे और हमारा मन बिल्कुल शून्य हो जाए शांत हो जाए तब हमारी सच में मृत्यु होती है वैसे तो हम देखते ही हैं कि दुनिया में कितने लोगों की मृत्यु रोजाना होती है लेकिन उनमें से कुछ भागों वाले जीव ही होते हैं जिनकी संपूर्ण मृत्यु हो जाती है जो उस कुल मालिक में जाकर मिल जाते हैं मौत के समय साधारण तौर पर हमारा शरीर शूटता है लेकिन मन तो हमारा वैसे ही होता है मन में तो वही सब कुछ पढ़ा होता है जो हमने इकट्ठा किया है उसकी मृत्यु होने इतनी आसान नहीं है हम जैसे ही अगले जन्म में जाते हैं या फिर अगली जुनी मैं जाती हैं फिर से वही सब कुछ दोबारा से शुरू हो जाता है क्योंकि मन हमारा नहीं मरा, मन वैसे का वैसा ही है सिर्फ हमारा शरीर छूटा है मन में जो पढ़ा हुआ है वह अभी वैसे का वैसा ही है लेकिन जो नाम की कमाई करते हैं शब्द की कमाई करते हैं उनका मन शांत हो जाता है शून्य हो जाता है और जब उनकी मृत्यु होती है उनका शरीर भी छूट जाता है मन से भी उनका छुटकारा हो जाता है और आत्मा उस कुल मालिक में जाकर मिल जाती है लेकिन अगर बात साधारण जीवो की की जाए तो उनका आना जाना लगा रहता है क्योंकि मन से छुटकारा मिल पाना इतना आसान नहीं है वह तो मालिक की कृपा हो तब ही हम इससे छुटकारा पा सकते हैं यह भ्रम की अंश है इसकी पहुंच केवल भ्रम तक है उससे आगे नहीं लेकिन हमें पारब्रह्म में जाना है उस कुल मालिक से मिलना है जैसे जैसे हम नाम की कमाई करते हैं वैसे वैसे हमारा शरीर छूटने लगता है, शरीर तीन तरह का होता है एक तो यह हमारा स्थूल शरीर है दो इसके पीछे और है जिसके बारे में हमें कोई अनुभव नहीं है क्योंकि हम वहां तक पहुंचे ही नहीं है हम तो स्थूल शरीर के बारे में ही जानते हैं और यह समझ लेते हैं कि अगर किसी का स्थूल शरीर छूट गया है तो उसकी मृत्यु हो गई है नहीं ऐसा नहीं है जब हम इन सभी शरीरों से छुटकारा पाएंगे तभी हमारी संपूर्ण मृत्यु होती है और हमारा आना जाना खत्म हो जाता है नहीं तो हमारा आना जाना लगा ही रहता है जैसे जैसे हम नाम की कमाई करते हैं हमारा स्थूल शरीर छूटने लगता है सूरत ऊपर चढ़ने लगती है और हमें तकलीफ भी होती है क्योंकि हमने पहले अभ्यास नहीं किया लेकिन जो अभ्यासी होते हैं उन्हें यह तकलीफ नहीं होती क्योंकि वह हर रोज ऊपर जाते हैं रोजाना उस मालिक की भजन बंदगी करते हैं सूरत को नाम से जोड़ते हैं, धुन को सुनते हैं उन्हें मृत्यु के समय किसी तरह की कोई भी तकलीफ नहीं होती, लेकिन जो साधारण पुरुष है उन्हें बहुत तकलीफ होती है जब सूरत सिमटकर ऊपर आ जाती है और हमारा स्थूल शरीर से छुटकारा होने लगता है इसीलिए तो कहा जाता है की नाम की कमाई के लिए समय निकालो, सूरत को नाम से जोड़ो, दोनों आंखों के बीच सुरत को लेकर आओ ताकि उस धुन को सुना जा सके और मृत्यु के समय हमें किसी तरह की भी कोई भी तकलीफ ना हो सके लेकिन हम बातों को सुन तो लेते हैं सत्संग सुन तो लेते हैं लेकिन उसे अमल में नहीं लाते और जब अंतिम समय आता है तब हमारी चीखे निकलती है क्योंकि सूरत सिमटकर ऊपर आती है जिसने जीते जी नाम की कमाई की है जिसने जीते जी मर कर देखा है वही एक सच्चा शिष्य है वही एक महापुरुष है, मैंने देखा है कि ऊपर कैसे देवी देवताओं की कतारें लगी है सभी उस कुल मालिक के आगे हाथ जोड़कर खड़े हैं उसके आगे फरियाद कर रहे हैं क्योंकि यह मनुष्य जामा हमें बार-बार नहीं मिलता यह बहुत ही अनमोल है यह बार-बार नहीं मिलेगा यह जामा हमें कुल मालिक की भजन बंदगी करने के लिए मिला है उससे मिलाप करने के लिए मिला है, ऊपर देवी देवताओं की कतारें लगी है वह हाथ जोड़कर खड़े हैं कि उन्हें भी यह मनुष्य जामा मिले ताकि वह भी मालिक की भजन बंदगी कर सके, नाम की कमाई कर सके, और जब जीव ऊपर जाता है जब उसकी मृत्यु हो जाती है तब ऊपर उसका हिसाब किताब होता है उसका हिसाब किताब उसके किए गए कर्मों के हिसाब से किया जाता है कि इसे आगे कहां जाना है, कौन सी जूनी में जाना है यह सब जीव के कर्मों पर निर्भर होता है लेकिन जो नाम की कमाई करके जाते हैं शब्द की कमाई करके जाते हैं जो धुन को सुनकर जाते हैं जिनकी पृथ्वी पर सूरत दिन-रात उस कुल मालिक से जुड़ी रहती है जब वह ऊपर जाते हैं जब उनकी मुक्ति हो जाती है वह मुक्त होते हैं वह महापुरुष होते हैं ऊपर सभी देवी देवता हाथ जोड़कर खड़े होते हैं उस महापुरुष का स्वागत करते हैं जिसने नाम की कमाई की होती है जिसने सूरत को नाम से जोड़ रखा होता है उनका उस के दरबार में स्वागत किया जाता है धूमधाम से स्वागत किया जाता है बहुत ही मान आदर के साथ उनका स्वागत किया जाता है क्योंकि वह महापुरुष होते हैं नाम की कमाई कर कर उसके दरबार में जाते हैं तो मालिक भी खुश होता है मालिक भी प्रसन्न हो जाता है और उन्हें अपनी शरण में ले लेता है उनका आना-जाना खत्म हो जाता है । लेकिन जिन्होंने नाम की कमाई नहीं की होती जिन्होंने जीवन में सुरत को नाम से नहीं जुड़ा होता उनका हाल बहुत ही बुरा होता है यमदूत उन्हें घसीट घसीट कर ले कर जाते हैं उनका हिसाब किताब किया जाता है बहुत सारी मुश्किलों का उन्हें सामना करना पड़ता है चीखें निकलती है और उस समय जीव को वहां पर पछतावा भी होता है कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ कर लिया उस समय वहां पर जीव बहुत ही पछताता है कि मैंने अपना मनुष्य जीवन व्यर्थ किया मैंने कोई पुण्य का कार्य नहीं किया मैंने नाम की कमाई नहीं कि, उस समय वहां पर जीभ रोता है चिल्लाता है कहता है कि मुझे एक मौका और दिया जाए लेकिन जैसे सृष्टि का नियम है, होता वैसे ही है जीव के कर्मों के आधार पर उसे अगला जन्म मिलता है उसे अगली जून में डाला जाता है इसलिए तो कहा जाता है कि भाई समय व्यर्थ मत गवाओ जब भी समय मिले नाम की कमाई में लगाओ शब्द की कमाई में लगाओ सुरत को नाम से जोड़ो, अगर इस समय हमने समय को संभाल लिया नाम की कमाई कर ली तब हमें वहां पर रोना नहीं पड़ेगा वहां पर हमारी चीखे नहीं निकलेगी हमें पछताना नहीं पड़ेगा वहां पर हमारा मान सम्मान के साथ स्वागत होगा, मालिक की शरण हमें मिलेगी हमारा आना जाना खत्म हो जाएगा हमें मुक्ति मिल जाएगी हमारे सभी दुख दूर होंगे और फिर उस नाम रूपी समुद्र में हमें जगह मिलेगी जहां पर केवल आनंद है महा आनंद है । साध संगत जी यह ज्ञान उन्होंने अपनी मौज में आकर हमसे साझा किया और हमें लगा कि इसे आप से भी सांझा किया जाना चाहिए ताकि उस कुल मालिक का संदेश सभी साध संगत तक पहुंच सके और हमारा इस जन्म मरण के चक्कर से छुटकारा हो सके । साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग 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By Sant Vachan
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