जब एक पहुंचा हुआ महात्मा रात के समय एक वैश्या के घर रात बिताने के लिए गया । Sant Vachan । जरूर सुने

गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी हजरत निजामुद्दीन औलिया जी के समय की है, साखी को पूरा सुनने की कृपलता करें जी ।

साध संगत जी गुरु नानक देव जी की वाणी है "तुझ बिन अवर ना जाना मेरे साहिबा गुण गावा नित तेरे" कहा जाता है कि हज़रत निजामुद्दीन औलिया के 22 शिष्य थे हर एक चाहता था कि गद्दी उसे मिले औलिया साहिब ने उनको परखना चाहा कि कौन सबसे योग्य और सच्चा शिष्य है एक दिन हज़रत साहब अपने शिष्यों को कहने लगे आओ आज शहर की सैर को चलें और वहां की चहल-पहल देखें वह बाजारों में घूमने लगे जिसने भी देखा कहने लगा कि आज पीर भी बाजारों में फिरता है और मुरीद भी , सभी बाजार पार करके आप वेश्याओं के बाजार में आ गए ,लोगों ने कहा कि आज पीर और मुरीद शहर के किस बाजार में घूम रहे हैं, लोग तरह तरह की बातें बनाने लगे, आप एक वैश्या के दरवाजे पर खड़े हो गए और अपने मरीदो से कहा कि तुम डरो मत, यहां खड़े रहो, कोई ना जाए, मुझे ऊपर कुछ काम है मैं काम करके वापस आ जाऊंगा यह कहकर कोठे पर चढ़ गए , कोठे वाली हाथ जोड़कर खड़ी हो गई, कहने लगी मेरे धन्य भाग आज मेरे घर महात्मा आए हैं मैं तो एबों पापों से भरी हूं , महाराज मेरे लिए क्या हुक्म है, आपने कहा कि हमें रात यहां ठहरना है हमें कोई अलग कमरा दे दो और तुम किसी और कमरे में आराम कर लो और अपने नौकर से कहो कि एक थाली में एक कटोरी दाल, दो चार फुलके और एक बोतल शरबत की ढक कर ले आए, उसने कहा जी सत्य वचन और ऐसा ही किया गया , नौकर सब चीजें उसी तरह ढक कर ले आया, नीचे शिष्यों ने कहा कि पीर की पीरी निकल गई अब शराब कबाब उड़ेगा, हाथ पर हाथ मार कर पहले एक गया फिर दूसरा गया फिर तीसरा, इसी तरह 21 चले गए एक बाकी रह गया, दाल रोटी किसे खानी थी और शरबत किसे पीना था आपको तो अपने शिष्यों की परख करनी थी जब सुबह हुई नीचे उतरे देखा कि सिर्फ अमीर खुसरो खड़ा है आपने पूछा बाकी कहां गए उसने कहा कि अमुक इस वक्त चला गया अमुक उस वक्त चला गया इसी तरह सब चले गए, पीर साहब ने पूछा कि तू क्यों नहीं गया वह बोला हजरत चला तो मैं भी जाता लेकिन आपके सिवा मुझे कोई जगह दिखाई नहीं दी मैं कहां जाता आपने हंसकर उसे गले लगा लिया और उसे गधी दे दी साध संगत जी जो कुल मालिक से जुड़े हुए महात्मा होते हैं उन्हें समझना इतना आसान नहीं होता उनके हर किए गए कार्यों में कोई ना कोई राज अवश्य होता है इसलिए हमारी बुद्धि उन्हें समझ नहीं सकती वह तो अगर उनकी कृपा हो तब ही हम उनकी रजा को समझ सकते हैं उनके बहाने को समझ सकते हैं नहीं तो हम नहीं समझ सकते जिन पर उनकी कृपा होती है उनकी दया रहती है उन्हें भी वह अपने जैसा ही बना लेते हैं उन्हें भी मालिक से जोड़ देते हैं उसकी बाजू मालिक के हाथ में पकड़ा देते हैं साध संगत जी फकीर देखते हैं कि कौन किस चीज के काबिल है और कौन नहीं अगर सभी सेवक ऐसे बन जाए तो यह दुनिया स्वर्ग बन जाए । साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके । 

Post a Comment

0 Comments