साध संगत जी, जब सतगुरु नानक भाई मर्दाना और भाई बालाजी के साथ मक्का पहुंच गए वहां जाकर सतगुरु नानक ने एक शब्द का उच्चारण किया और भाई मरदाना जी ने रबाब छेड़ा, तो सतगुरु नानक के मुख्य से निकले हुए शब्द को सुनकर आसपास के लोग बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने यह माना कि यह कोई बहुत बड़े महात्मा है कोई महापुरुष है तो वहां पर भी सद्गुरु नानक की प्रसिद्धि बढ़ गई और बहुत लोग आप जी के पास अपनी भेट लेकर आते हैं और संगत कर निहाल होते है, शब्द की धुन सुनकर वहां पर सभी निवासी, मक्का निवासी, हाजी सभी सतगुरु नानक के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए और सतगुरु नानक भाई मरदाना को कहने लगे कि हे मरदाने ! जिसको देखने के लिए तू जहां आया है जा जाकर ! उसको देख, तो जब भाई मरदाना जी सतगुरु की आज्ञा पाकर मक्का के अंदर गए तो दरवाजे पर बैठे मजहरों ने कहा कि आगे जाने का हुक्म नहीं है तो भाई मरदाना जी ने कहा कि मैं तो मुसलमान हूं मुझे आगे क्यों नहीं जाने दिया जाएगा मुझे आगे जाने की आज्ञा दें, मैं दर्शन कर वापस आ जाऊंगा लेकिन मजहरों ने कहा कि नहीं तू यहां पर ही खड़ा होकर दर्शन कर ले आगे जाने का हुक्म नहीं है या फिर तेरी आंखों पर पट्टी बांध देते है और फिर तू आगे जा सकता है क्योंकि आगे जाकर देखने की आज्ञा नहीं है तो ये सुनकर भाई मरदाना जी वापस सतगुरु नानक के पास आ गए और उन्होंने अपनी सारी वार्तालाप सतगुरु नानक को बताई कि वह पर मजहरों ने मुझे आगे नहीं जाने दिया, मैंने उनसे आगे जाने की आज्ञा मांगी लेकिन उन्होंने मुझे आगे नहीं जाने दिया और वह मुझसे कह रहे हैं कि अगर तुझे आगे जाना है तो हम तेरी आंखों पर पट्टी बांध देते हैं फिर तू आगे जा सकता है क्योंकि आगे जाकर देखने की आज्ञा नहीं है तो भाई मरदाना जी सतगुरु से कहने लगे कि गुरु जी ! अगर मैं अंदर आंखों पर पट्टी बांधकर गया तो मैं अंदर जाकर क्या देखूंगा, अब आपके साथ आया हूं अगर अब भी मैं अंदर जाकर दर्शन नहीं कर सका तो फिर और कौन मुझे दिखाएगा, तो भाई मरदाना जी के वचन सुनकर सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को एक माला दे दी और सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी से कहा कि सतनाम का जाप करता हुआ तूं अंदर चला जा, तुझे कोई नहीं देखेगा और ना ही तुझे कोई रोकेगा तो गुरुजी की आज्ञा मानकर भाई मरदाना जी सतनाम का जाप करते हुए काबे के मंदिर अंदर बिना किसी रोक-टोक के चले गए, तो उन्होंने वहां पर देखा कि वहां पर पत्थर की एक बहुत बड़ी मूरत वहां पर रखी हुई थी और कुछ नहीं था वह देखकर भाई मरदाना जी चुपचाप सतगुरु नानक के पास आ गए और कुछ नहीं बोले, तो सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी से कहा हे मरदाने ! तूं वहां पर गया था तो क्या देख कर आया है तो भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से कहा कि हे गुरु जी मैं आपकी आज्ञा पाकर वहां गया था लेकिन मैंने वहां जाकर देखा कि वहां पर एक बहुत बड़ा पत्थर है पत्थर की मूरत है और कुछ नहीं था तो वह मुझे आंखों पर पट्टी बांधने के लिए क्यों कह रहे थे ऐसा क्यों गुरु जी ! यह स्थान जिसकी बहुत महानता है यह कैसे बना यह सब आप मुझे बताएं ताकि मुझे भी इसके बारे में ज्ञान हो सके, मुसलमान कहते हैं कि मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिए तो गुरु जी यह मूर्ति पूजा नहीं तो और क्या है तो भाई मरदाना जी के ऐसे वचन सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि पार्वती के पति शिवजी का लिंग बहुत लंबे समय से यहां पर रखा हुआ था यहां पर पहले कोई मंदिर नहीं था और उजाड़ में रखा हुआ था यहां पर एक जालिम राजा हुआ, जो मुसलमानी मत का बहुत पक्का था तो जब उसने महादेव शिवजी के लिंग को देखा तो वह गुस्से में आ गया और उसने अपने नौकरों को आदेश दिया कि इसको कहीं दूर जाकर रख आओ तो राजा की आज्ञा पाकर नौकर इस लिंग को उठाने लगे तो वहां पर सभी तरफ आग लग गई सभी दुकानें, घर आग में जलने लगे तो राजा ने इसको शिवलिंग की क्रोपी का कारण समझ कर माफी मांगी और माथा टेका, तो उसके बाद रात के समय राजा के सपने में आकर लिंग ने कहा कि यहां पर एक सुंदर मंदिर बनवाओ और आंखें बंद कर कर अगर उस मंदिर के अंदर जाओगे तो सभी कार्य सिद्ध होंगे और अगर तू इस प्रकार नहीं करेगा तो बहुत दुख पाएगा तब राजा ने अगले दिन ही मंदिर के निर्माण का काम शुरू करवा दिया और मंदिर के संपूर्ण होते ही शिवलिंग को अंदर रख दिया इस लिंग को मंदिर के अंदर ही स्नान करवाया जाता है और जो स्नान का पानी बाहर आता है हाजी लोग उसको हाथ में लेकर अपना हज संपूर्ण करते हैं तो ये वचन सुनकर भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से कहा कि हे गुरु जी जब मैं बिना पट्टी के अंदर गया था तो मैं अंधा क्यों नहीं हुआ क्योंकि मैं तो बिना पट्टी के अंदर जाकर सब कुछ देख आया हूं तो भाई मरदाना जी के इस प्रश्न को सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि तेरे ऊपर करतार की कृपा है तेरा भ्रम निवृत हो चुका है तो इस तरह दिन बीत गया तो रात के समय सतगुरु नानक काबे की तरफ पैर कर के लेट गए हैं तो जब एक पहल रात रह गई तो जीवन मुला जोकि मंदिर के अंदर झाड़ू मारने आया था उसने सतगुरु नानक को काबे की तरफ पैर करते हुए, सोते हुए देखा तो उसने गुस्से में आकर सतगुरु नानक को लात मारी और कहा कि तू कहां से आया है ? तू कौन है ? जो काबे शरीफ़ की तरफ पैर कर कर सोया हुआ है तो सतगुरु नानक ने शांति से प्रेम वचन कहे कि हम मुसाफिर हैं सफर कर कर थक कर हम यहां सोए हुए थे हमें कोई सुध नहीं थी कि पैर किस तरफ करने है इसलिए आप हमें अनजान समझकर गुस्सा ना करें और जिस तरफ खुदा का घर नहीं है उस तरफ हमारे पैर कर दे तो सतगुरु के ऐसे वचन सुनकर जीवन मुला ने गुस्से में आकर सतगुरु नानक के पैरों को पकड़ कर दूसरी तरफ किया तो उसने पाया कि काबा भी उसी तरफ आ गया है जिस तरफ सतगुरु नानक के पैर हैं जिस तरफ सतगुरु नानक के चरण है तो जब उसने देखा कि काबा गुरु जी के चरणों की तरफ आ गया है तो उसने हैरान होकर सतगुरु के चरण पकड़ कर फिर दूसरी तरफ कर दिए और उसने फिर पाया कि जिस तरफ सद्गुरु के चरण है काबा फिर घूम कर उसी तरफ आ गया है तो जीवन शर्मिंदा होकर सतगुरु नानक से कहने लगा की खड़े हो जाओ अब नमाज का समय है नमाज पढ़ो, तो जीवन की ये बात सुनकर, की नमाज का समय है नमाज पढ़ो, सतगुरु नानक ने वहां पर यह शब्द उच्चारण किया ।
"पंज निवाजा वक्त पंज, पंजा पजें नाओ
पहला सच्च हलाल दोए, तीजा खेर खुदाए"
पांच नमाजे है और पांच उनके नाम है, पहला सच बोलना और दूसरा धर्म की किरत का खाना, तीसरा दान करना, चोथा अपनी नियत को साफ रखना और पांचवा परमेश्वर की सिफत सलाह करनी, इसके उपरांत नेक कामों का कलमा पढ़ कर मुसलमान कहलाने का हकदार होता है बाकी सब झूठी बातें हैं आप जी के वचन सुनकर जीवन मुला ने कहा कि हे काफ़िर तूं क्यों कुफर बोल रहा है तुझे अल्लाह और उसके रसूल का कोई पता नहीं है और वह सतगुरु नानक से कहने लगा कि जाओ जहां से चले जाओ अगर यहां पर कोई और आदमी आ गया तो वह मुझे मार डालेगा तूने भेष तो हाजी जैसा कर लिया है लेकिन हाजी जैसी बातें तुझे नहीं आती तो इतनी देर में दिन हो गया और आसपास के लोग और मुलानी भी वहां पर इकट्ठे हो गए और उन्होंने जीवन मुला से सभी वार्तालाप जानी और फिर सतगुरु नानक से सवाल किया कि आप जी ने मक्का की तरफ पैर क्यों किए थे क्योंकि कोई मुसलमान ऐसा नहीं करता आप हिंदू हो या मुसलमान ? आप कहां से आए हो तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने वहां पर शब्द उच्चारण किया ।
"मेहर मसीत सिदक मुस्ला, हक हलाल कुरान
सरम सुन्नत सील रोज्जा, हो हो मुसलमान"
जिसका अर्थ है कि दया की मसीत, सिद्ध भरोसे का मुसला हक हलाल खाना कुरान, लज्जा दी सुन्नत शीलता का रोज़ा रखे, तब मुसलमान होता है तो यह वचन सुनकर रुकनुद्दीन काजी ने कहा कि आप खुदा को या उसके पैगंबरों को मानते हो या नहीं ? तो सतगुरु नानक ने कहा कि खुदा के दरबार के आगे बहुत पीर पैगंबर है जो हाथ जोड़कर खुदा के सामने खड़े है उनकी गिनती कौन कर सकता है क्योंकि वह बेअंत है, वह तो भूले भटको की रहनुमाई करने आते हैं और भटकी हुई आत्माओं को सत्य का मार्ग दिखा कर परमेश्वर का मार्ग दिखा कर उसकी दरगाह में निवास करते हैं जो पखवादी होते हैं वह नरक को जाते हैं तो ऐसे वचन सुनकर काजी और हाजी सतगुरु नानक से पूछने लगे कि हिंदू बड़ा है या मुसलमान ? तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि हिंदू और मुसलमान दोनों के शरीर पांच तत्वों से ही बने हैं आंख, नाक, कान आप सभी के एक समान है कोई भी किसी से भिन्न नहीं है सभी एक समान दिखते हैं और सभी के अंदर एक जैसी प्रक्रिया हो रही है लेकिन देश विदेशों के भेद के कारण मूर्ख लोग पखवादी होकर एक दूसरे से झगड़ते हैं लेकिन जो नाम के साथ अपनी लिव लगाते हैं उनको बहुत बढआयी मिलती है उनके साथ और भी संसारियों का उद्धार हो जाता है फिर चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, अमल के बिना वह नर्कों की तरफ जाते है, राम ही रहीम है, अल्लाह ही अकाल पुरख है जिसको खुदा कहते हो वह ही एक ओंकार है इनका मूर्ख लोग भेद नहीं जानते और आपस में झगड़ते रहते हैं तो सतगुरु नानक के ऐसे वचन सुनकर वहां पर मौजूद काजी और हाजी सभी सतगुरु नानक को खुदा का रूप समझ कर उनके चरणों में गिर पड़े और विनती कर कर सतगुरु नानक को कुछ समय वहां पर ही रखा, तो ऐसे सतगुरु नानक कुछ समय वहां पर रहे और उसके बाद संसार के कल्याण के लिए भाई मरदाना जी के साथ आगे चल पड़े तो साध संगत जी यहां पर आज के इस प्रसंग की समाप्ति होती है जी, प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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