साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है और आज की इस साखी को शुरू करने से पहले आज की शिक्षा पर नजर डालते हैं आज की शिक्षा उन लोगों के लिए है जो लोग संतों और महापुरुषों की निंदा करते हैं ऐसे लोगों को सतगुरु वाणी में फरमान करते हैं जो कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंग 280 में दर्ज है सतगुरु फरमाते हैं की हे भाई ! जो संतों और महात्माओं की निंदा करता है उसका रूप बिगड़ जाता है और उस निंदा करने वाले व्यक्ति को करतार की दरगाह में सजा मिलती है सतगुरु फरमान करते हैं कि संत का निंदक कभी सुखी नहीं रहता उसकी कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती और वह इस जगत में अपना जीवन भोगकर निराशा में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है हे भाई ! जैसी उस व्यक्ति की नियत होती है वैसा ही उसका स्वभाव बन जाता है संत का निंदक कभी भी संतुष्ट नहीं हो पाता, संतों की निंदा करने वाले व्यक्ति की प्यास कभी नहीं मिटती और उसके पाप कर्म बढ़ते जाते हैं जिनके नीचे वह दबा चला जाता है और ऊपर बोझ बढ़ता जाता है और उसके किए हुए बुरे कर्मों की कमाई को कोई मिटा नहीं सकता हे नानक ! इस भेद को वह सच्चा प्रभु अकाल पुरख ही जानता है, साध संगत जी, उदाहरण के तौर पर जिन्हें हम प्यार करते हैं जिन्हें हम चाहते हैं जिन्हें हम अपना मानते हैं हम उनकी कितनी परवाह करते हैं कितना उनका आदर करते हैं उनका ख्याल रखते हैं और उनके खिलाफ कोई बुरा शब्द नहीं सुन सकते ऐसे ही वह करतार, वह एक ओंकार, वह अकाल पुरख भी अपने चाहने वालों के खिलाफ कुछ नहीं देख सकता क्योंकि जितना प्यार संत महात्मा उस प्रभु परमात्मा से करते हैं उससे कहीं ज्यादा प्यार वह मालिक वह परमात्मा उनको करता है इसलिए वह हर पल उनकी संभाल करता है उनके खिलाफ बोलने वालों को अपनी दरगाह में सजा देता है ।
साध संगत जी एक नगर में एक राजा हुआ करता था जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी, हर चीज उसके पास थी उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी, राज पाठ की कोई कमी नहीं थी लेकिन वह एक बात को लेकर बहुत दुखी रहता था क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था तो वह हर पल परमात्मा के आगे यही अरदास करता था कि हे भगवान तूने मुझे सब कुछ दिया, किसी चीज की कमी नहीं रहने दी लेकिन मेरा कोई पुत्र नहीं है मैं आपसे केवल एक पुत्र की मांग करता हूं, तो राजा बार-बार परमात्मा के आगे पुत्र की मांग करता रहता तो उसे लगा कि मेरी यह मांग पूरी नहीं होगी तो वह एक तांत्रिक के पास गया और उस तांत्रिक ने राजा को नरबलि देने के लिए कहा और कहां कि अगर तुम नरबलि दोगे तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी तो पुत्र प्राप्ति के मोह में पड़कर राजा नर बलि देने लगा तो 1 दिन सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ उस नगर में पहुंच गए सतगुरु नानक का दिव्य रूप देखकर और उनके दिव्य कीर्तन को सुनकर लोग उनके पास आने लगे, लोगों की भीड़ सतगुरु के पास लगने लगी उस नगर के सभी नगर वासी राजा के कर्मों से बहुत दुखी थे क्योंकि राजा हर रोज किसी न किसी की बलि देता था तो सभी नगर वासी डर के साए में जी रहे थे और डर डर कर रह रहे थे तो जब सतगुरु नानक वहां पर गए और लोगों की भीड़ सतगुरु के पास लग गई तो नगर वासियों ने सतगुरु के आगे अरदास की वह हाथ जोड़कर सतगुरु नानक से कहने लगे की हे महाराज ! आप संत महापुरुष हो हम अपना दुख आपको बताने आए हैं हम इस नगर में बहुत दुखी हैं क्योंकि राजा पुत्र प्राप्ति के लिए रोजाना किसी न किसी की बलि चढ़ा देता है और हम सभी नगर वासी डर के साए में जी रहे हैं जाने कब किस की बारी आ जाए इसी डर में हम सभी नगर वासी जी रहे है हे महात्मा ! हमारी मदद करो ! हमारी मदद करो ! तो इतनी देर में, वहां पर राजा के सिपाही आ गए और वह नगर वासियों को कहने लगे की हे नगर वासियों रोज की तरह राजा को आज फिर बलि देनी है तो इतना सुनते ही वहां पर भगदड़ मच गई सभी वहां से भागने लगे लेकिन भाई मरदाना जी और सतगुरु नानक वहीं पर बैठे रहे तो राजा के सिपाहियों ने भाई मरदाना जी और सतगुरु नानक को पकड़ लिया और राजा के सामने पेश कर दिया तो जब सतगुरु नानक राज दरबार में गए तो राजा को लगा कि सिपाही आज इनको पकड़कर लाए है और वह सोचने लगा कि ये तो कोई फ़कीर दिखाई पड़ते है, तो सतगुरु नानक ने राजा से सवाल किया कि हे राजन ! तुम नरबलि क्यों देते हो ? तो राजा ने सतगुरु नानक से कहा कि मैं यह सब नहीं करना चाहता मुझे ऐसा करने का कोई शौक नहीं है क्योंकि भगवान ने मुझे सब कुछ दिया है लेकिन एक पुत्र नहीं दिया और यह सब मैं पुत्र प्राप्ति के लिए ही कर रहा हूं तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि तुम जिन लोगों को मार रहे हो वह सभी भगवान के पुत्र हैं उसकी संताने है तो तुम भगवान की संतानों को मारकर अपनी संतान कैसे प्राप्त कर सकते हो और सतगुरु नानक ने राजा को कहा कि हे राजन ! तुम 40 दिन तक थड़े पर बैठकर करतार का ध्यान करो तुम्हें पुत्र प्राप्ति होगी तो साध संगत जी जैसा सतगुरु नानक ने राजा को कहा था राजा ने बिल्कुल वैसा ही किया तो उसके कुछ दिनों बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई तो सतगुरु नानक से प्रसन्न होकर राजा ने गुरुद्वारे के लिए 20 एकड़ जमीन दे दी और यहां पर राजा ने सतगुरु नानक को जमीन दी थी आज वहां पर गुरुद्वारा थडा साहिब है और यह गुरुद्वारा उत्तराखंड के बागेश्वर में स्थित है, साध संगत जी आज की इस साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संत महात्मा हमें सही मार्ग दिखाने के लिए आते हैं वह तो जीवन में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आते हैं लेकिन कभी-कभी हम अपने मन के पीछे लग कर किसी चीज की प्राप्ति के लिए और उसके मोह में पढ़कर गलत रास्ते अपना लेते हैं जिससे कि दूसरों की हानि होती है और फिर हमें उसका हिसाब किताब करतार की दरगाह में देना पड़ता है और भारी दुख झेलना पड़ता है जबकि हम उस वस्तु को परमात्मा से सीधा मांग सकते हैं वह मालिक यानी जान है वह हमारे बारे में हम से ज्यादा जानता है उसको पता है कि किसको कितना देना है और कब देना है और क्या नहीं देना, क्योंकि उसे हमारे अच्छे और बुरे की अच्छी तरह खबर है वह हमें जो भी देता है हमें उसके लिए उसका शुक्र करना चाहिए और हम जो उससे मांगते हैं और अगर वह नहीं देता तो अवश्य ही उसके पीछे कोई राज जरूर है या फिर उसका अभी समय नहीं है लेकिन मालिक के भेजे हुए संत महात्मा अगर किसी से खुश होकर किसी को कुछ कह देते हैं तो वह करतार उसे पूरा जरूर करता है जैसे कि अक्सर फरमाया जाता है कि परमात्मा के लिखे हुए को संत छेड़ सकते हैं लेकिन संतो के किए हुए को परमात्मा नहीं छेड़ता क्योंकि वह अपने भक्तों और प्यारों से बहुत प्रेम करता है और वह उनका वचन जरूर पूरा करता है, इसलिए हमें भी अपने गुरु के आगे, संतो महापुरुषों के आगे अरदास करने की जरूरत है हमारी सेवा भावना को देखकर हमारी प्रेम भावना को देखकर वह हमारी झोलियां जरूर भरते हैं ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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