साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ एक नगर में जा पहुंचे जिस नगर के नगरवासी अनजान लोगों को अपने नगर में नहीं आने देते थे लेकिन जब सतगुरु नानक वहां पर पहुंचे तो भाई झंडा ने कैसे सतगुरु नानक की सेवा की आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग श्रवण करते हैं ।
साध संगत जी जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ भाई झंडा के नगर में जा पहुंचे तो सतगुरु नानक ने उस नगर के एक वृक्ष के नीचे विश्राम किया और वहीं पर विराजमान हो गए तो नगरवासियों ने देखा कि हमारे नगर में कोई साधु महापुरुष आए हैं तो सतगुरु नानक को देख सभी उनको प्रणाम कर रहे थे तो जब भाई झंडा को इस बात की खबर हुई तो भाई झंडा भी उनके दर्शन करने आ गए और दर्शन कर घर जाकर भाई झंडा ने अपनी पत्नी को कहा कि हमारे गांव में 3 संत आए हैं अगर घर में कुछ खाने के लिए है तो मुझे दे दो मैं उनकी सेवा करना चाहता हूं साध संगत जी भाई झंडा बहुत गरीब व्यक्ति थे तो उनकी पत्नी ने कहा कि आज घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं है तो भाई झंडा ने कहा कि कोई बात नहीं, नगर वासियों से मांग कर उनकी सेवा कर दूंगा साध संगत जी भाई झंडा अक्सर साधु संत महात्माओं की सेवा किया करते थे उनकी सेवा के लिए अगर उनके घर कुछ भी नहीं होता था तो नगर वासियों से लेकर वह साधु संतों की सेवा किया करते थे उनके अंदर साधु संत महात्माओं के प्रति बहुत प्रेम था तो अपनी इसी आदत के कारण भाई झंडा ने सोचा कि वह इस बार भी नगर वासियों से मांग कर संतों की सेवा कर देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ जब वह नगर वासियों से मांगने गए तो नगरवासियों ने भाई झंडा को कुछ भी नहीं दिया क्योंकि सभी इस बात को मान रहे थे कि भाई झंडा संतों की सेवा के नाम पर अपने घर परिवार के लिए मांग कर लेकर जाता है और हर बार ऐसा ही करता है तो इसी बात को मानकर गांव वालों ने भाई झंडा को कुछ भी नहीं दिया तो इस बात को लेकर भाई झंडा और भी चिंता में पड़ गए कि अब क्या किया जाए तो जब भाई झंडा नगर वासियों से निराश होकर घर वापस जा रहे थे तो रास्ते में उन्होंने देखा कि कुश्ती का अखाड़ा लगा हुआ है और यह भी लिखा हुआ है कि इस कुश्ती जीतने वाले को ₹100 का इनाम दिया जाएगा और हारने वाले को ₹50 का इनाम दिया जाएगा तो उसको देखकर भाई झंडा के मन में ख्याल आया कि क्यों ना कुश्ती लड़ कर संतों की सेवा के लिए उनके भोजन के लिए पैसों का इंतजाम किया जाए तो अपने अंदर संतों महात्माओं की सेवा भावना को रखकर भाई झंडा कुश्ती के मैदान में चले गए और वहां पर मौजूद पहलवान से कुश्ती करने के लिए तैयार हो गए जो पहलवान उनके सामने अखाड़े में खड़ा था उसके पास भाई झंडा से कहीं ज्यादा शारीरिक बल था तो भाई झंडा को अपने सामने खड़ा देखकर पहलवान ने भाई झंडा से सवाल किया कि तुम कुश्ती क्यों लड़ रहे हो तुम तो पहलवान भी नहीं लगते फिर तुम क्यों इस अखाड़े में आए हो तो भाई झंडा ने पहलवान के इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि हमारे नगर में तीन संत आए हैं और मैं उनकी सेवा करना चाहता हूं लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है मैंने नगर वासियों से भी मदद मांगी है लेकिन उन्होंने भी मेरी मदद नहीं की लेकिन मेरी सेवा करने की बहुत इच्छा है इसीलिए मैं यह कुश्ती हार कर उनकी सेवा के लिए भोजन का इंतजाम करना चाहता हूं तो जब पहलवान ने भाई झंडा की यह बात सुनी तो पहलवान का दिल भी पसीज गया तो उसने प्रेम से भाई झंडा को कुश्ती के लिए पुकारा और दोनों के बीच कुश्ती शुरू हो गई लेकिन कुछ ही देर बाद उस पहलवान ने जानबूझकर भाई झंडा से हार मान ली और भाई झंडा को संतों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया, साध संगत जी गुरु के आशीर्वाद से भाई झंडा ने जितना सोचा था उससे भी ज्यादा धन भाई झंडा को मिल गया था और पूरे नगर में यह चर्चा होने लगी कि भाई झंडा ने राजा के पहलवान को पटक दिया तो भाई झंडा ने तन और मन से सतगुरु नानक की सेवा की और अंतर्यामी सतगुरु नानक ने पहलवान के इस बलिदान को जानकर उसे भी भाई झंडा के साथ इस भवसागर से पार कर दिया उस पहलवान का नाम मस्कीन था तब सतगुरु नानक ने एक शब्द का उच्चारण किया जो शब्द श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंग 278 में दर्ज है और जिसका अर्थ है मस्कीन का अर्थ होता है गरीब जा नरम स्वभाव वाला व्यक्ति, सतगुरु नानक कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है हे नानक ! बड़े बड़े अहंकारी व्यक्ति अहंकार में गल जाते हैं यानी नष्ट हो जाते हैं, साध संगत जी उसके बाद सतगुरु नानक सभी को आशीर्वाद देकर संसार के कल्याण के लिए अपनी अगली यात्रा पर निकल गए, तो गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संतों की, की हुई सेवा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती संतों की की हुई सेवा का हमें कहीं गुणा अधिक फल मिलता है जिसके अंदर संतों की सेवा करने की भावना होती है उसकी हर इच्छा पूरी होती है उसके ऊपर मालिक की दया मेहर हर समय बरसती रहती है ऐसा व्यक्ति जीवन में हमेशा सुखी रहता है क्योंकि संतों की कृपा का हाथ उस पर होता है और गुरु अपने शिष्य को जल्दी ही इस मोह माया के जाल से छुटकारा दिलवा देता है भाव उसकी यात्रा आसान कर देता है जैसे कि उसकी बात जल्दी ही बन जाती है और वह माया के जाल से निकल जाता है इसलिए फरमाया जाता है कि भाई जब भी समय मिले सेवा के लिए समय जरूर निकालो क्योंकि गुरु घर की की हुई सेवा हमारा मार्ग आसान बना देती है और जब कोई गुरु की सेवा करता है तो गुरु खुश होकर उसकी झोलिया भर देता है और जिसने गुरु को खुश कर लिया उसने मालिक को खुश कर लिया इसलिए हमें भी अपने काम काजों में से थोड़ा समय निकालकर सेवा पर जरूर जाना चाहिए हमें सेवा के लिए समय जरूर निकालना चाहिए, क्योंकि पता नहीं गुरु ने कब खुश होकर क्या कह देना है और गुरु के कौन से वचन सत्य हो जाने हैं जिसकी वजह से हमारा जीवन तक बदल सकता है साध संगत जी सतगुरु नानक देव भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ जब कहीं जाते थे तो जिसने भी उनकी सेवा की है सतगुरु ने उनका उद्धार किया है उनको इस आवागमन के चक्कर से आजाद किया है संत महात्मा देखने में तो हमारे जैसे लगते हैं लेकिन वह देह रूप में परमात्मा होते हैं और संतों की की हुई सेवा ही परमात्मा की सेवा है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.