साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश सतगुरु नानक से मिलने आए तो सतगुरु नानक और उनके बीच क्या वचन हुए आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
एक दिन सुबह सुबह सतगुरु नानक पीपल के वृक्ष की छाया में बैठे हुए थे, सतगुरु नानक ने देखा की आसपास कुछ पशु भुखें है तो उन्होंने अपने कमला नाम के सेवक को खेतों में से चारा लाने के लिए कहा तो सतगुरु की आज्ञा पाकर वह खेतों की तरफ चल पड़ा है जहां पर उसने बहुत मात्रा में घास को देखा था तो जब वह खेतों में चला गया तो ब्रह्मा, शिव जी और इंदर देवता योगी का भेष धारण कर आ गए उन्होंने भाई कमला को जब खेत की तरफ जाते देखा तो उसका नाम लेकर उसकी पुकार लगाई तो वे उनके पास चला गया और उन्होंने एक कागज में विभूति डालकर भाई कमला को दी और वचन किए कि जाओ ! इसको जाकर सतगुरु नानक देव जी को दे देना और वह इसे देखकर कुछ वचन कहेंगे वह आकर हमें बता देना, अब जल्दी जाओ देर ना करो ! तो भाई कमला ने उनके चेहरे की तरफ नजर डाली तो वह हैरान हो गया वह अंदर ही अंदर बहुत शोभा पा रहा था क्योंकि जब उसने उनको देखा तो उसे लगा कि ये कोई साधारण मनुष्य नहीं लगते यह तो कोई महापुरुष दिखाई पड़ते है तो उनकी आज्ञा पाकर जब वह उस विभूति को सतगुरु नानक के पास लेकर जाने लगा उसे विचार आया कि सतगुरु ने मुझे चारा लाने के लिए भेजा था तो मैं ऐसे कैसे जा सकता हूं तो भाई कमला ने वचन किए कि मेरे गुरु ने मुझे चारा लाने के लिए कहा है तो मैं ऐसे खाली हाथ उनके पास नहीं जा सकता कृपया आप मुझे कुछ देर का समय दें में अभी चारा इकट्ठा कर लेता हूं और फिर आपका यह संदेश सतगुरु नानक को दे दूंगा तो भाई कमला के ये वचन सुनकर इंदर देवता ने थोड़े से घास को हाथ में लिया और उसे एक बड़े चारे की पोटली में परिवर्तित कर दिया और उसको भाई कमला के सिर पर रख दिया तो ऐसा चमत्कार देख भाई कमला बहुत हैरान हुए और अंदर ही अंदर यह भी सोच रहे थे कि ये कोई साधारण मनुष्य नहीं है क्योंकि इनके चेहरे का तेज इतना है जिसका पार नहीं पाया जा सकता तो उनकी आज्ञा पाकर भाई कमला सतगुरु नानक के पास गया तो जब सतगुरु नानक ने देखा यह तो बहुत जल्दी वापस आ गया है तो उसे इतनी जल्दी वापस आता हुआ देख सतगुरु ने भाई कमला को कहा कि हे भाई कमला तूं इतनी जल्दी वापस कैसे आ गया तूं किसी के खेत से चारा चोरी कर कर तो नहीं लाया, अगर ऐसा कर कर लाया है तो ये चारा पशुओं को मत डालना और इसे वही रख आओ जहां से लेकर आए हो तो ये सुनकर भाई कमला ने कहा नहीं सतगुरु ये चारा चोरी का नहीं है, मुझे जैसे यह मिला है मैं तो वैसे ही आपके पास लेकर आया हूं और यह चारा मुझे कैसे मिला है वह मैं आपको बताता हूं भाई कमला ने कहा कि गुरु जी जब मैं खेतों में चारा लेने गया था तो मुझे वहां पर 3 चमत्कारी योगी मिले और उनके चेहरे का तेज भी इतना था कि मुझसे देखा नहीं जा रहा था तो उन्होंने मुझे एक विभूति दी है और यह कहा है कि इसको श्री गुरु नानक देव जी को दे देना तो मैंने उनको कहा कि मेरे गुरु का मुझे चारा लाने का हुक्म है पहले मैं चारा इकट्ठा कर लेता हूं फिर मैं आपकी दी हुई विभूति सतगुरु नानक को दे दूंगा तो इतनी ही देर में उन्होंने चमत्कार से थोड़े से घास को एक बड़े चारे की पोटली में परिवर्तित कर दिया और मेरे सिर पर रख दिया और मुझे आपके पास भेज दिया तो गुरु जी यह वह विभूति है जो उन्होंने मुझे दी है तो जब भाई कमला ने उस विभूति को खोला तो सतगुरु जान जाते है कि ये तो शंकर महादेव की विभुति है और सतगुरु को यह संदेश प्राप्त हुआ की कमला ! हमारा संदेश लेकर आया है गुरु जी ने तीन बार ऐसा कहा, उसके बाद सतगुरु नानक ने भाई कमला को कहां कि हे भाई कमला ! सिधरण नामक सिंह के घर जाओ उसको हमारे पास लेकर आओ तो सतगुरु नानक की आज्ञा पाकर भाई कमला उनके घर चला गया साध संगत जी गुरु अंगद देव जी के बाद भाई सिध्रण जी ही सतगुरु नानक की सेवा किया करते थे सतगुरु नानक के सभी वस्त्र वही साफ करते थे और उनके चरण कवलों को धोकर दिल में बहुत खुश होते थे और आप जी सतगुरु नानक की बहुत सेवा किया करते थे तो जब भाई कमला ने आप जी को गुरु जी का संदेश दिया तो वह तुरंत सतगुरु के पास चले आए और सतगुरु भाई सिधरन को लेकर वहां चले गए जहां वह योगी सतगुरु का इंतजार कर रहे थे तो जब सतगुरु वहां पर चले गए तो सतगुरु ने भाई सिधरन को एक तरफ बिठा दिया और सतगुरु उनसे मिलने चले गए तो जब सतगुरु नानक उनसे मिले तो वह सतगुरु के दर्शन कर प्रफुल्लित हुए और फिर उन्होंने बहुत उस्तत की, मन वचन कर्म करके सतगुरु नानक की प्रशंसा की और कहने लगे कि गुरु जी आप सुंदर सुखों के घर हो, मुक्तिदाता हो, सभी लोगों को मुक्ति प्रदान करने वाले हो, आप ही संसार को जन्म देने वाले, पालने वाले और नाश करता हो आपकी सदा ही जय हो आपने ही पहले 52 रूप शरीर धारण किया था आपके जगत में हजारों नाम है लेकिन आप फिर भी अनाम हो यह सारा ब्रह्माण्ड ही आपका स्वरूप है चांद और सूरज आपके दो नैन है जो भी मनुष्य आपका ध्यान करता है वह भवसागर में नहीं पड़ता उसकी मुक्ति हो जाती है और सभी तरह के बंधनों का नाश होता है और आप सभी तरह से निर्लेप रहते हो अपने सेवकों की अज्ञानता का नाश करते हो हमारा आपको कोटि कोटि प्रणाम है आप एक रस नाम के भंडार हो और अज्ञान का नाश करने वाले हो इस तरह उन्होंने आपकी सुंदर प्रशंसा की और ब्रह्मा जी ने इस तरह कहा कि आपने अपना शरीर श्री गुरु अंगद देव जी में डाल दिया है और आपको जो अच्छा लगा है उसको स्थापित कर दिया है जगत के जाप के लिए आपने सच्चा नाम प्रकट किया है अब आप भी हमारे साथ सचखंड चलें तो यह वचन सुनकर सतगुरु ने उनकी बात मान ली और उनको इस बात की हामी भर दी, तो सतगुरु की हां को सुनकर वह वहां से चले गए और उसके बाद सतगुरु नानक भाई सिधरण के पास गए और उनको अपने साथ लेकर एक खेत में चले गए और वहां जाकर सतगुरु नानक ने वचन किए कि सिधरन सुनो ! मुझे यहां लाकर मेरे ऊपर लकड़ियां डाल देनी है अगर कोई मुझे दूसरी जगह पर लेकर जाना चाहे उसे मना कर देना है मुझे इसी जगह पर लेकर आना है तो ये कहकर सतगुरु नानक भाई सिधरन के साथ नगर में आ गए, नगर में आकर पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए और वहां पर मौजूद संगत को सतगुरु नानक ने दर्शन दिए सतगुरु नानक अपने पास चार चादरें रखते थे दो चादरें घर में रहती थी और दो शरीर के ऊपर पहनते थे तो सतगुरु नानक ने भाई सिधरन को कहा कि जाओ जाकर कपड़े धो कर लेकर आओ तो गुरु जी की आज्ञा पाकर भाई सिधरन जी ने कपड़ों को अपने हाथ में लिया और उनको धोने के लिए चल पड़े, दिल में सेवा भावना लेकर उसने उन कपड़ों को अच्छी तरह से धोया और सुखआया तो जब भाई सिधरन वह कपड़े लेकर सतगुरु नानक के पास आए तो सतगुरु नानक ने भाई सिधरन को कहा कि इनको आप अंदर रख दो और अंदर साफ सफाई कर दो सभी तरफ अच्छी से सफाई कर दो, दिन बहुत कम रह गया है इसलिए देर ना करो तो सतगुरु की आज्ञा पाकर भाई सिधरन जी वहां पर चले गए जहां पर सतगुरु नानक विश्राम करते थे रात के समय गुरु नानक जहां पर रहते थे तो वहां पर जाकर भाई सिधरन जी ने सभी तरफ साफ सफाई कर दी और वापस सतगुरु नानक के पास आ गए जहां पर सतगुरु नानक विराजमान थे तो भाई सिधरन ने हाथ जोड़कर सतगुरु को कहा कि हे कृपानिधान ! मैंने वहां पर साफ सफाई कर दी है आप चल कर देख ले अगर कोई कमी रह गई हो तो मुझे बताएं मैं उसको ठीक कर देता हूं तो ये सुनकर सतगुरु नानक खड़े हुए और सुंदर बनाई धर्मशाला को देखने चल पड़े और भाई सिधरन पर खुश होकर आपने उनको आत्मज्ञान का आशीर्वाद दिया और उसके बाद सतगुरु नानक वहां पर आ गए यहां पर संगत सतगुरु नानक के दर्शन के लिए आई थी और वहां पर दिव्य कीर्तन चल रहा था और सभी तरह के पाप खत्म हो रहे थे सतगुरु नानक उस समय वहां पर विराजमान थे और करतार का कीर्तन सुन रहे थे अखंड रूप गुरु जी की समाधि लग गई थी जिससे कि पता चल रहा था कि गुरुजी अनुपम आनंद ले रहे है शरीर के सभी अंग अढोल थे जब ऐसे ही 8 घड़ियां बीत गई तो सतगुरु ने आंखें खोली और खुश होकर बोले कि आज हमारे जाने का बहुत अच्छा दिन है तो जब सतगुरु ने ऐसे वचन किए तो वहां पर मौजूद सतगुरु के सेवकों की आंखों में से आंसू आ गए और यह बात सभी तरफ फैल गई कि सद्गुरु नानक ने शरीर छोड़ने की बात कही है तो सभी लोग भागे भागे सतगुरु नानक के पास आ रहे थे और उनके दर्शन कर रहे थे सतगुरु के बारे में यहां यहां तक यह खबर पहुंच गई थी वहां वहां से लोग अपने सभी काम छोड़कर सतगुरु नानक के दर्शन करने आ रहे थे लेकिन सतगुरु नानक धर्मशाला में बैठे हुए थे और वहां पर बहुत बड़ी मात्रा में संगत की भीड़ लग गई थी और सभी लोग धन गुरु नानक ! धन गुरु नानक ! पुकार रहे थे गुरुजी के चेहरे पर लाली छाई हुई थी जैसे कि सूर्य उदय होने से पहले लाली बहुत शोभा देती है और सतगुरु के इर्द-गिर्द सिख सेवक थे और सतगुरु धीरज के साथ एक रस शांत बैठे हुए थे वहां पर मौजूद सभी संगत के अंदर वैराग्य भरा हुआ था उस समय सतगुरु नानक ने भाई सिधरन को हुक्म दिया कि हे भाई सिधरन जल्दी जाओ श्रीचंद और लख्मी दास को बुलाकर मेरे पास लेकर आओ तो सतगुरु की आज्ञा पाकर भाई सिधरन जी बाबा श्री चंद और लक्ष्मी दास जी के पास गए और उनको हाथ जोड़कर विनती की कि आज गुरुजी की ज्योति ज्योत समाने की घड़ी है और उन्होंने आप जी को अपने पास बुलाया है आप मेरे साथ चले देर ना करें तो भाई सिधरन के ऐसे वचन सुनकर उन्होंने कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है वह तो परमानंद में ही एकरस होकर बैठे हैं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता यह बात माननीय नहीं है तो यह सुनकर भाई सिधरन जी सतगुरु नानक के पास आ गए और जो कुछ भी उन्होंने कहा वह सब कुछ सतगुरु नानक को बता दिया वहां पर मौजूद संगत की आंखों में जल भर आया था और सतगुरु के दर्शन कर वह अंदर से वैराग्य से भरे हुए थे उस समय कीर्तन की धुन गूंज रही थी तो इतनी ही देर में माता सुलखनी जी भी सतगुरु के पास आ गए और उनकी आंखों में भी आंसू आ गए और सतगुरु के पास मौजूद सभी संगत रो रही थी तो जब सतगुरु नानक ने माता सुलखनी जी को अपने पास आते हुए देखा तो सतगुरु ने उनको प्रेम से जो वचन कहे वह है कि अगर आपके दिल में कोई अभिलाषा है तो बताओ, अंत समय मिलकर कुछ कहा नहीं बाद में ऐसी बात नहीं करनी ! तो सतगुरु के ऐसे वचन सुनकर वह बोले की हे कृपा निधान आपको जैसे अच्छा लग रहा है वैसे करें सब कुछ आपके हाथ में है आप तीनो लोकों के स्वामी हो और शरीर छोड़ना और धारण करना यह सब कुछ आपके हाथ में है तो माता सुलखनी जी की धीनता देखकर सतगुरु नानक ने बहुत ध्यान से उनके वचन सुने तो ऐसे सतगुरु नानक के आसपास मौजूद सभी सेवक धन गुरु नानक की पुकार कर रहे थे और सतगुरु की याद में आंसू बहा रहे थे, साध संगत जी आज के अध्याय कि यहां पर ही समाप्ति होती है जी, प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलो की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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