ये जीवन चार दिनों का खेल है और इस खेल में हमारा कोई भी सच्चा साथी नहीं बन सकता क्योंकि देह के छूट जाने के बाद हमारा किसी से कोई संबंध नहीं रहता ।
अंत समय न धन-दौलत, सगे-संबंधी, राजपाट आदि किसी की कोई सहायता नहीं कर सकते और न ही मायावी जगत की कोई भी चीज साथ जा सकती है, मायावी जगत का मोह जीव को 'जन्म-मरण' के चक्कर से बांधकर रखता है, केवल परमात्मा की 'सच्ची-भक्ति' (नाम-भक्ति) द्वारा ही मनुष्य 'जन्म-मरण' के दुखदाई चक्कर से छुटकारा प्राप्त कर सकता है और परमात्मा से मिलाप कर सकता है ।
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