घंटों के माप-तोल में नहीं, अगर आप प्रेम, भक्ति और पूरी एकाग्रता के साथ एक घण्टा भी बैठें, तो वह उस पाँच घण्टे की बैठक से कहीं अच्छा है जिसमें आपका मन इधर-उधर भागता रहता है, तरह-तरह की सांसारिक समस्याओं और सुखों के बारे में सोचता रहता है, इसलिए हमें सारे खयालों को हटा कर पूरी तरह से एकाग्रचित्त होने की आदत डालनी चाहिए ।
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