गुरु की कृपा धीरे धीरे अपना इतना रंग ले आती है कि गुरु अपने शिष्य को भी अपने ही समान बना देता है ।
हमारी कर्मो की गांठो को वह रोज़ एक एक कर खोलता रहता है, और हमे पता भी नहीं चलता हमारा कर्मो का सिलसिला अचानक समाप्त कैसे हो गया, युगो युगो से सतगुरु की दया अपने जीवों पर इसी प्रकार बरसती आ रही है और आज भी कुछ भाग्यशाली जीवो पर बरस रही है ।
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