वाहेगुरु शब्द का सिमरन करने से क्या होता है ? जानिए इस विडियो में

 

साध संगत जी आज की साखी है की वाहेगुरु सिमरन को या गुरु मंत्र को बार-बार क्यों बोलना पड़ता है बार-बार क्यों सिमरना पड़ता है जोकि एक प्रश्न करता का प्रश्न है और यह प्रशन उन्होंने ज्ञानी जी से किया था जब वह संगत को सत्संग फरमा रहे थे तो उन्होंने हिम्मत की और ज्ञानी जी से प्रश्न किया की वाहेगुरु को बार-बार क्यों सिमरना पड़ता है बार-बार क्यों बोलना पड़ता है यह तो रिपीटेशन कहलाती है और रिपीटेशन एक दोष है साहित्य की दुनिया में और ज्ञान की दुनिया में यह एक दोष माना गया है तो उसका ऐसा प्रश्न सुनकर ज्ञानी जी ने क्या वचन किए आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी जब एक प्रशन करता ने ज्ञानी जी से यह प्रश्न पूछा कि वाहेगुरु शब्द को बार-बार क्यों सिमरना पड़ता है बार-बार क्यों बोलना पड़ता है यह तो एक रिपीटेशन कहलाती है और ज्ञान की दुनिया में यह एक दोष है जो चीज हम रिपीटेशन में करते हैं वह ज्ञान की दुनिया में दोष माना गया है और उसने और हिम्मत करके यह कहा की ज्ञानी जी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में भी रिपीटेशन है जो बात एक पंक्ति में कही गई है वह दूसरी पंक्ति में और तीसरी पंक्ति में और उसके बाद चौथी पंक्ति में भी वही बात कही गई है और उसके बाद उसने फिर कहा कि ज्ञानी जी आप का सत्संग भी एक रिपीटेशन ही है आपके सत्संग में भी बहुत रिपीटेशन होती है तो जब उसने यह प्रशन ज्ञानी जी के आगे रखे तो आप जी ने बहुत सुंदर तरीके से उन प्रश्नों का जवाब दिया और आप जी कहते हैं कि आज का पढ़ा-लिखा मनुष्य वाहेगुरु को बार-बार सिमरने में बार-बार जपने में शर्म महसूस करता है और आप जी ने उसके प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि हमारा जीवन ही रिपीटेशन पर खड़ा है श्वास अंदर जा रही है और फिर बाहर आ रही है फिर अंदर जा रही है और फिर बाहर आ रही है हमारा पूरा जीवन रिपीटेशन पर खड़ा है और अगर आप यह कहते हो कि रिपीटेशन एक दोष है तो आप श्वास को अंदर लीजिए और फिर बाहर मत निकालिए फिर देखिए क्या होता है इस शरीर की मृत्यु हो जाएगी ऐसे ही आत्मा का जीवन भी रिपीटेशन पर खड़ा है गुरु मंत्र बार-बार ना दोहराया जाए तो जमीर मर जाएगी गुरु मंत्र को बार-बार ही जपना है वाहेगुरु शब्द को बार-बार ही बोलना है तो यह सुनकर उस प्रश्न करता ने फिर सवाल किया कि मेरी ज़मीर तो नहीं मरी और मैं जपता भी नहीं तो आप जी ने उसके इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा की मुर्दा भी कभी कहता है कि मैं मर गया हूं तो आप जी का यह जवाब सुनकर उसने कहा कि आप मुझे मुर्दा कह रहे हैं आप यह कैसी बात कर रहे हैं तो आप जी ने कहा कि आप कहते हो की रिपीटेशन दोष है ज्ञान की दुनिया में साहित्य की दुनिया में रिपीटेशन दोष है लेकिन मैं कहता हूं कि रिपीटेशन ही जीवन है आप बार-बार पानी पीते हो, बार बार खाना खाते हो, अपने परिवार के साथ बैठकर वही दुनियावी बातें बार-बार करते हो जो बातें आज की वही बातें कल भी करते हो तो अगर आप बार-बार पानी पी रहे हो, खाना खा रहे हो और बार-बार वही बातें रिपीट कर रहे हो उसमें आपको रिपीटेशन दिखाई नहीं देती लेकिन वाहेगुरु शब्द को बार बार जपने में आपको पुनरुक्ति दिखाई पड़ती है ? तो आप जी ने फरमाया कि सृष्टि में सब कुछ बार-बार ही तो हो रहा है हर रोज सूर्य उदय होता है और फिर हर रोज छिप जाता है हर रोज दिन होता है और हर रोज रात होती है तब आप क्यों नहीं कहते कि बार-बार रात क्यों हो रही है बार-बार दिन क्यों हो रहा है तो ऐसे ही प्रभु का सिमरन भी बार-बार ही करना पड़ेगा, गुरु मंत्र को बार-बार सिमरना पड़ेगा, प्रभु के गुणों को बार-बार दोहराना पड़ेगा तब जाकर उसकी प्राप्ति होती है उस के दर्शन होते हैं उसका ज्ञान होता है और आप जी ने वाणी में से फरमान किया :

" बार बार हरि के गुण गावो, गुर गम भेद सो हरि का पावो"

इस पंक्ति का उच्चारण कर आप जी कहते हैं कि बार-बार जो इस सृष्टि में हो रहा है यह जो बार-बार दिन होता है और बार-बार रात हो जाती है यह सब आपको कबूल है लेकिन गुरु मंत्र को बार-बार सिमरना, वाहेगुरु को बार-बार सिमरना कबूल नहीं ? आप जी कहते हैं कि जितना समझदार और सियाणा मनुष्य होगा उतना ही वह शंका से भरा होगा और शंका का रूहानियत के इस मार्ग पर कोई स्थान नहीं है क्योंकि शंका सुरत को ऊपर नहीं चड़ने देती शंका सुरत के मार्ग में रोड़ा बनती है क्योंकि शंका सुरत को प्रभु की तरफ और गुरु की तरफ नहीं जाने देती और आप जी कहने लगे कि ऐसे प्रश्नों से हमें बचकर ही चलना है क्योंकि ऐसे प्रशन हमें गुरु की तरफ जाने ही नहीं देते प्रभु के मार्ग में आगे बढ़ने ही नहीं देते और ऐसे प्रशन करने वाले बेचैन रहते हैं उनको शांति नहीं मिलती, प्रभु की प्राप्ती नहीं होती और आप जी ने कहा कि सिमरन के बिना प्रभु के गुण जीवन के अंदर प्रवेश ही नहीं करते, जीवन विरान हो जाता है, इसलिए गुरु मंत्र को वाहेगुरु को बार-बार ही सिमरना पड़ेगा और जब हमारी सुरत वाहेगुरु का सिमरन करते हुए ऊपर उठनी शुरू होगी तो इसको प्रभु की प्राप्ति होगी सुरत को ऊपर उठाने के लिए सिमरन बहुत जरूरी है सिमरन के बिना प्रभु प्राप्ति नहीं होती उसके गुण हमारे अंदर प्रवेश नहीं कर सकते, तो साध संगत जी आज की साखी की यहीं पर समाप्ति होती है साखी सुनाते हुई अनेक भूलों कि क्षमा बक्शे जी ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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