साध संगत जी आज की साखी है की मृत्यु का संदेश मिलने पर एक अभ्यासी को किन बातों का ख्याल रखना चाहिए तो आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी हमारे संत महात्माओं ने शुरू से ही हमें मालिक के भाने में रहने का उपदेश दिया है और उनके जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है और ऐसी बहुत सारी साखियां हमारे संत महात्माओं की है जो हमारा रूहानियत के इस मार्ग पर हमारा मार्गदर्शन करती हैं साध संगत जी ऐसी ही एक साखी मोहम्मद साहब की है साध संगत जी मोहम्मद साहब की जिंदगी का एक असूल था कि दिन भर जो भी उनके पास इकट्ठा होता था, खाने पीने का जो भी सामान उनके पास इकट्ठा होता था उनमें से अपनी जरूरत के मुताबिक लेकर बाकी सब कुछ वह जरूरतमंद लोगों में बांट दिया करते थे और रात को खाली होकर सोया करते थे वह कुछ भी अपने पास नहीं रखते थे दिन भर जो भी उनके पास आता था जो भी सामान इकट्ठा होता वह अपनी जरूरत जितना रखकर बाकी सब बांट देते यह उनकी जिंदगी का एक असूल था तो साध संगत जी जब मोहम्मद साहब का अंतिम समय आया तो उनकी पत्नी ने देखा कि इनकी तबीयत खराब रहती है तो एक दिन मोहम्मद साहब की पत्नी ने 5 दिनार लेकर अपने पास रख लिए ताकि रात के समय जब भी उनकी तबीयत खराब हो तो वेद को बुलाकर इनका इलाज किया जा सके या फिर कोई जड़ी बूटी लेकर आने की जरूरत पड़ जाए तो उसमें ये पैसे काम आएंगे तो साध संगत जी जब रात हुई तो मोहम्मद साहब को नींद नहीं आ रही थी वह बेचैन थे और वह अपनी पत्नी से कहने लगे कि मुझे लग रहा है कि मेरी जिंदगी का जो असूल मैंने बनाया हुआ था वह टूटने वाला है और मोहम्मद साहब अपनी पत्नी को कहने लगे कि मैंने आज तक कभी कल की फिकर नहीं की लेकिन आज मुझे डर लग रहा है कि घर में कहीं पैसे पड़े हुए हैं और मोहम्मद साहब ने अपनी पत्नी को कहा कि अगर घर में कहीं भी पैसे पड़े हुए हैं तो उसको जरूरतमंदों में जाकर दे दो तो मोहम्मद साहब की पत्नी यह सुनकर डर गई और वह सोचने लगी कि इनको कैसे पता चल गया तो वह मोहम्मद साहब से कहने लगी कि माफ करना मैंने कुछ पैसे इसलिए एक तरफ रख लिए थे क्योंकि अगर आपकी तबीयत रात को खराब हो गई तो उसमें काम आएंगे इसलिए मैंने यह पैसे बचा कर रख लिए थे तो यह सुनकर मोहम्मद साहब ने अपनी पत्नी को कहा कि जिस खुदा ने मुझे हर बार दिया, हर दिन दिया और इतने सालों तक देता आ रहा है क्या हम कभी भूखे रहे हैं ? क्या हमारी हर जरूरत पूरी नहीं हुई ? जो सुबह देता है और शाम को भी देता है क्या वह रात को नहीं देगा ? मोहम्मद साहब ने यह वचन अपनी पत्नी से कहें और उसके बाद आप जी ने कहा कि बाहर जाकर देखो कोई आया है तो जब मोहम्मद साहब की पत्नी बाहर गई तो उन्होंने देखा कि बाहर कोई जरूरतमंद खड़ा था और उसने मोहम्मद साहब की पत्नी को कहा कि मुझे 5 दिनारों की आवश्यकता है तो मोहम्मद साहब की पत्नी ने वह 5 दिनार उसको दे दिए तो उसके बाद मोहम्मद साहब ने अपनी पत्नी को कहा कि देखने भी वही आता है देने भी वही आता है हम तो चिंता खड़ी कर लेते हैं और फिर उसी चिंता में पड़कर पीड़ित होते हैं और उसके बाद मोहम्मद साहब ने कहा कि अब मैं खुदा के सामने सिर ऊंचा कर कर यह कह सकूंगा कि मेरा तो केवल तू ही एक सहारा था तेरे इलावा मैंने किसी और पर भरोसा नहीं रखा, साध संगत जी इस साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जिसका परमात्मा पर भरोसा होता है उसे किसी और पर भरोसा रखने की जरूरत नहीं होती लेकिन हमारा भरोसा तो इंश्योरेंस कंपनियों पर है हमारा भरोसा तो हमारे बैंक बैलेंस पर है हमारे परिवारों पर है सरकारों पर है साध संगत जी जिस समय मोहम्मद साहब की पत्नी ने वह 5 दिनार उस जरूरतमंद आदमी को दिए थे उस समय मोहम्मद साहब ने हंसकर कहा था कि अब समय आ गया है अब मैं बेफिक्र होकर जा सकता हूं तो मोहम्मद साहब ने चादर अपने मुंह पर ओढ़ ली और उसके बाद जब मोहम्मद साहब की पत्नी ने वह चादर मोहम्मद साहब के चेहरे से हटाई तो उन्होंने देखा कि वहां पर तो मोहम्मद साहब की लाश पड़ी हुई थी और वह जा चुके थे साध संगत जी जैसे वह 5 दिनारो ने ही मोहम्मद साहब को रोक रखा था जिसके कारण वह बेचैन थे साध संगत जी हम चाहते हैं कि हम सब चीजों से मुक्त हो जाएं लेकिन जो धन हम इकठ्ठा कर लेते हैं वह हमें बांध लेता है हमें मुक्त नहीं होने देता ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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