Guru Nanak Sakhi । जब 100 सुंदर रानियों का सुख लेने वाले राजा की मुलाकात सतगुरू नानक से हुई ?

 

साध संगत जी आज की साखी है कि अगर कोई यह कहे कि उसके पास सभी वस्तुएं मौजूद हैं और वह इस संसार का परम सुख भोग रहा है उसके पास उसका राजपाट है और स्त्रियों का सुख भी वह भोग रहा है और वह कहे कि वह पूरी तरह से तृप्त है संतुष्ट है तो ऐसा नहीं हो सकता साध संगत जी आज की साखी इसी विषय पर आधारित है आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी एक बार गुरु नानक सच्चे पातशाह ! भाई मरदाना जी के साथ नदी के किनारे किनारे जा रहे थे और बहुत संगत सद्गुरु के दर्शन करने आई हुई थी सतगुरु के दर्शन कर निहाल हो रही थी और उस नगर का राजा भी सतगुरु के दर्शन करने आया हुआ था जब उस नगर का राजा सतगुरु के दर्शन करने आया तो उसने सतगुरु को देखा, सतगुरु के मुख्य पर उस रूहानी तेज को देखा और सतगुरु के चरणों पर प्रणाम कर बैठ गया और उसने सतगुरु नानक से वचन किए कि हे गुरु जी ! मेरे चित को शांति बक्शे मैं इस नगर का राजा हूं तो सतगुरु ने वचन किए की संगत की सेवा किया करें उनकी सेवा करने से चित को अपने आप शांति प्राप्त हो जाएगी तो सतगुरु का हुक्म पाकर वह साधु संतों की सेवा करने लगा जब भी उसे मौका मिलता वह साधु संतों की सेवा किया करता लेकिन अपने राजपाट में व्यस्त होने के कारण उसे शांति नहीं मिलती वह बेचैन रहता तो जब उसका अंतिम समय आया तो उसने हुकम किया कि मेरी जितनी भी रानियां है और उनमें से जो 100 सुंदर रानियां है जिनको मैंने जीता है वह सभी अच्छे अच्छे वस्त्र पहन कर मेरे पास आए और मैंने जितने भी युद्ध किए हैं और जितना भी माल धन मैंने इकट्ठा किया है उन सब का लेखा-जोखा किया जाए और मुझे बताया जाए कि मैंने कितना धन एकत्रित किया हुआ है तो उसके राज पाठ में उसके जीते हुए धन का हिसाब किताब लगाया गया और यह बताया गया कि उसका धन एक खरब और 10 अरब के करीब है और उसकी जीती हुई सभी वस्तुओं का विवरण उसे दिया गया तो जब उसे सब मालूम हुआ तो उसने यह महसूस किया कि मैंने इतना कुछ इकट्ठा किया इतनी रानियों को मैंने जीता लेकिन अब मेरा अंतिम समय नजदीक है अब सब छोड़ना पड़ेगा कुछ भी मेरे साथ नहीं चलने वाला, तो जब उसके नौकर उसका एकत्रित किया हुआ धन उसका जीता हुआ धन उसके पास लेकर आ रहे थे और जिस धन को उसने बहुत मार काट कर जीता हुआ था जब उसके नौकर वह धन उसके सामने लेकर आ रहे थे तो उसकी आंखों में से आंसू निकल रहे थे कि मैंने कितने लोगों को मार कर इस धन को जीता है लेकिन आज यही धन मेरे साथ नहीं जाने वाला और ना ही किसी प्रकार से यह मेरी सहायता कर सकता है तो वह जोर-जोर से रोने लग पड़ा तो उस समय उसके अच्छे भाग थे कि वहां पर सतगुरु आए हुए थे और सतगुरु ने उसे दर्शन दिए और वचन किए कि हे राजन ! यह जो भी तूने एकत्रित किया हुआ था इसमें से कुछ भी तेरा नहीं था तुझसे पहले यह किसी और का था और फिर तेरा हुआ क्योंकि तूने इसको जीतकर एकत्रित किया था अब आगे यह किसी और के पास चला जाएगा यह रानियां भी तेरी नहीं थी ये तो तेरे पूर्व के संजोग थे कि इनका संबंध तेरे साथ जुड़ गया था लेकिन अब वियोग के कारण अब तुझसे बिछड़ जाएंगी, तो सतगुरु महाराज जी के ऐसे वचन सुनकर उसको उस समय शांति प्राप्त हुई और वह मुक्ति को प्राप्त हो गया तो साध संगत जी बिना गुरु के और गुरु के उपदेश के यह जीव अपने जीवन को व्यर्थ गंवा रहा है साध संगत की सेवा कर कर इस प्राणी को अपने आप की प्राप्ति होती है और कल्याण होता है सतगुरु फरमाते हैं :

"जो किछ करना सो कर रहेया, अवर न करना जाएं"

जिसका अर्थ है कि जो कुछ परमात्मा ने करना है वह कर रहा है और यहां पर कुछ भी उल्टा नहीं हो रहा उसकी मर्जी से सब हो रहा है क्योंकि सभी कोई उसके हुक्म के अंदर है उसके हुकम से बाहर कोई भी नहीं है साध संगत जी एक बार सद्गुरु के पास दो सिख झगड़ते हुए आए और आकर सतगुरु से कहने लगे कि सतगुरु जी हमें बताएं कि प्रारब्ध बड़ी होती है या फिर उधम बड़ा होता है तो ये सुनकर सतगुरु ने वचन किए कि भाई प्रारब्ध के कारण जीवन के लिए सभी सामान तैयार हो जाते हैं और उधम से प्राप्त हो जाते हैं सो प्रारब्ध होती है तो उधम भी आ जाता है और जब प्रारब्ध नहीं होती तब उधम भी नहीं किया जाता तो साध संगत जी एक साखी इसी पर आधारित है कि एक राजा बहुत बड़ा करनी वाला और उद्यमी था तो उसके घर एक कन्या का जन्म हुआ तो उसने उस समय पंडितों को अपने घर बुलाया अपने महल में बुलाया और बुलाकर पूछा कि पंडित जी इस कन्या के भाग्य देखकर बताएं कि इसके भाग कैसे हैं तो पंडितो ने देखकर बताया कि आपकी यह कन्या तो एक फंधक के घर रहेगी तो ये सुनकर राजा ने विचार किया कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता एक राजा की कन्या होकर यह ऐसे पुरुष से विवाह नहीं कर सकती तो ऐसा विचार कर उसने दूसरे प्रदेश के राज्य के पुत्र के साथ अपनी कन्या का विवाह पहले ही बांध दिया तो जब वह कन्या बड़ी हुई तो उसका समारोह राजा के महल में लगाया गया तो जब दूसरे परदेश का राजा अपने पुत्र को लेकर उस राजा के पास आया तो उसने देखा कि राजा ने अपनी कन्या के लिए एक समारोह किया हुआ है क्योंकि उसने अपनी कन्या का विवाह मेरे पुत्र से करना है और हमारे स्वागत के लिए ही उसने ऐसा किया हुआ है तो जब राजा ने उस समारोह को शुरू करने की इजाजत दी तो उसी समय एक गनीम वहां पर आया और उसने उस कन्या के साथ विवाह करने का दावा किया तो वहां पर सभी मौजूद थे और दूर-दूर से राजे राजा का निमंत्रण पाकर वहां पर आए हुए थे तो राजा ने उसकी यह बात सुनकर उसको राजा के पुत्र के साथ युद्ध करने के लिए कहा और जो जीता कन्या को उसी से विवाह करने के लिए कहा तो उनके बीच युद्ध हुआ और उस गनीम की जीत हुई तो दूसरे प्रदेश का राजा ये देखकर बहुत गुस्से में आ गया और उसने उसके राज पर हमला कर दिया तो राजा की रानी ने देखा कि अब हमला हो गया है तो उसने अपनी पुत्री को एक संदूक में डालकर बंद कर दिया ताकि वह जहां से सुरक्षित कहीं दूसरी जगह चली जाए ताकि उसके साथ कुछ गलत ना हो सके तो जब सैनिकों ने संदूक को देखा तो उन्होंने पाया कि इसमें अवश्य ही राजा का कोई खजाना होगा इसको हम रख लेते हैं और जीवन भर इस का आनंद लेंगे हमें काम करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी तो उन्होने उस संदूक को एक दरिया में फेंक दिया और यह सोचकर फैंका कि वह वहां से वापस उस संदूक को उठा लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ जैसे ही उस संदूक को दरिया में फेंका तो दरिया में मौजूद मगरमच्छ ने संदूक को टक्कर मारी और नीचे से उसको जोर से ऊपर की तरफ उछाला और वह दरिया के दूसरे किनारे पर जा गिरा तो दूसरी ओर से एक फंधक शिकार करता हुआ आ रहा था तो उसने उस संदूक को देखा और उसे खोला और पाया कि इसके अंदर कोई कन्या है और दया धारण कर उसने उसको उठाया और अपने घर ले गया और उसकी सेवा की और उसके साथ विवाह कर लिया तो साध संगत जी इस साखी से हमें यह प्रेरणा मिलती है और सतगुरु हमे यह फरमान करते हैं कि भाई यहां पर मनुष्य के हाथ में कुछ भी नहीं है जो करतार करता है वही होता है प्रारब्ध मुख्य है और उधम इसके पीछे चलने वाला है उधम तब ही भला होता है जब प्रारब्ध होती है बिना प्रारब्ध के उधम हानिकारक है तो साध संगत जी आज की साखी की यहीं पर समाप्ति होती है साखी सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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