Guru Nanak Sakhi । जब कांशी के पंडितों ने सतगुरु नानक से कहा कि आप किसकी पूजा करते हो ?

 

साध संगत जी, कलयुग में फैले हुए झूठ पाखंड और अधर्म और जुलम को मिटाने के लिए जब सतगुरु नानक ने पहली उदासी धारण की तो सुल्तानपुर लोधी से चलकर कुरुक्षेत्र हरिद्वार, दिल्ली, अलीगढ़, कानपुर और लखनऊ आदि कई स्थानों से होते हुए लोगों को अकाल पुरख से जोड़ते हुए और लोगों को सच्चा उपदेश देते हुए शिवरात्रि के महान त्यौहार के दिन सम्मत 1563 विक्रमी में काशी की धरती में भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ चरण पाए और सतगुरु नानक बाहर एक रमणीक बाग में बने हुए एक थड़ें पर विराजमान हुए तो भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से सवाल किया कि हे गुरु जी !

ये सुंदर बाग किसका है ? कौन इसका मालिक है ? तो भाई मरदाना जी के इस प्रश्न को सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि इस सुंदर बाग का मालिक करतार आप ही है लेकिन करतार ने जिसको भी इस भाग के मालिक होने का दर्जा दिया है वह खुद चलकर आपके पास आ जाएगा तो सतगुरु नानक ने कहा कि हे भाई मरदाना ! आप करतार से जुड़े और रबाब छेड़े तो भाई मर्दाना ने सत्य वचन कह कर रबाब बजाना शुरू कर दिया तो जब भाई मरदाना जी ने रबाब बजाना शुरू किया तो रबाब में से सत करतार सत करतार की आवाज आने लगी तो ऐसी ध्वनि से वह सारा भाग भी गूंज उठा, मानो की आकाश में उड़ रहे पंछी भी उस ध्वनि को सुनकर मंत्रमुग्ध हो गए हो तो ऐसी दिव्य ध्वनि को सुनकर वहां से गुजरने वाले लोग सतगुरु की दिव्यता को जानने लगे और आकर सतगुरु को माथा टेकने लगे, रास्ते में आने जाने वाले लोग सतगुरु की शरण में जाने लगे तो इतनी देर में पंडित गोपाल शास्त्री भी सतगुरु के पास आए तो सतगुरु के दिव्य रूप को देखकर पंडित गोपाल शास्त्री जी भी सतगुरु की दिव्यता से बहुत प्रभावित हुए और जैसे ही वह सतगुरु के और नजदीक गए उनको सत करतार की धुन एक रस सुनाई दी जिसे सुनकर वह गुरु चरणों से जुड़ गए तो उसके बाद जब गुरु कीर्तन समाप्त हुआ और सतगुरु ने अपनी आंखें खोली तो सतगुरु की नजर पंडित जी पर पड़ी जब सतगुरु ने अपनी नजर उन पर डाली तो वह सतगुरु की अपार दिव्य दृष्टि से निहाल हो गए वह मस्त होकर सतगुरु के चरणों पर गिर पड़े और लेट कर सतगुरु को प्रणाम करने लगे तो ऐसे बहुत समय तक पंडित जी ऐसे विस्माद होकर सतगुरु के चरणों पर लेटे रहे

तो सतगुरु नानक ने अपने दोनों हाथ पंडित जी के कंधों पर रखे और उन्हें उठाया तो ऐसे काफी समय तक उनके बीच वचन विलास और प्रेम की बातें होती रही तो उसके बाद पंडित जी ने सतगुरु नानक से प्रश्न किया कि हे गुरु जी ! आप पूजा किस तरह करते हो, किसकी पूजा करते हो ? आपके पास तो माला, तुलसी आदि कुछ भी नहीं है तो सतगुरु नानक का इशारा पाकर भाई मरदाना ने रबाब को बसंत हिडोल राग में बजाया और सतगुरु नानक ने अपने मुख्य से यह वचन कहे :

सालग्राम बिप पूज मनावो, सुक्रत तुलसी माला
राम नाम जप बेड़ा बांधों, दया करो दयाला

जिसका अर्थ हैं कि पंडित जी आपका सालगराम का पूजना और तुलसी की माला पहनना आदि, कलर की पेली को सींजन आदि या कच्ची गिर रही दीवार पर चूना लगाने समेत है ऐसा कर कर जन्म क्यों गवा रहे हो और अगर इस संसार सागर से पार होना चाहते हो तो सुच्चजी कीरत और राम नाम का बेड़ा बांधों जिससे कि आप इस भवसागर से पार हो सकेंगे तो सतगुरु के ऐसे वचन सुनकर पंडित जी ने शंका की और कहा कि गुरु जी अगर हमारे सालगराम और तुलसी कलरा सीज़न जैसे हैं तो आपके हिसाब से सफल सिंचन कौन सा है तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने फिर वचन किए :

जो कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है

जिसका अर्थ है कि पंडित जी सफल सिंचन तो सुच्चजी करनी में है, हर कथा का हल्ट माल और टिंडा बनाओ और इस हल्ट को चलाने के लिए अपना मन जोवो अर्थात तुम्हारे मन के अंदर करनी करने की उमंग हो और ऐसी उमंग में से एक खेड़ा और एक रस उत्पन्न होगा और उस अमृत से अंतर भरपूर हो जाएगा और ऐसे अंतर भरपूरों का साईं, दिलों का मालिक आपको अपना बना लेगा और जब आप उस मालिक के हो गए तो आपके अंदर से काम क्रोध लोभ मोह और अहंकार जैसे सभी विकार दूर हो जाएंगे और यह आपके गोले होकर रह जाएंगे जो आपके अमृत को लूट कर ले जाते हैं आपके सेवक होकर रह जाएंगे जैसे सफाई के लिए घास फूस को उखेड़ दिया जाता है और सिर्फ फसल की संभाल की जाती है ऐसे ही आपके अंदर का काम और इच्छाएं अमृत रूपी फसल की संभाल और क्रोध रूपी जड़ी बूटियां गलत वासनाओं का नाश करने लग जाएगी इस तरह काम करो कीरत करो, दुष्ट शक्तियां भी आपकी सेवा में लग जाएगी जब आप अपने अंतर में ऐसे सफाई करेंगे तो आप सुखी जीवन पाएंगे और आपकी इस प्रकार की की हुई कीरत कभी भी व्यर्थ नहीं जाएगी तो सतगुरु नानक के मुख्य से यह वचन सुनकर पंडित जी की तसल्ली हो गई और वह सतगुरु नानक से बहुत प्रभावित हुए तो उसके बाद सतगुरु नानक ने इस पंक्ति के आखरी वचन कहे :

बग्ले और पुन हंसला होवे, जे तूं करे दयाला
प्रंवत नानक दासम दासा, दया करो दयाला

जिस तरह बगले नीच पुरुष भी उत्तम हंस बन जाते हैं लेकिन हे प्रभु ! यह तभी संभव हो सकता है जब तू दया करें मेरी दासों के दास नानक की तो यही विनती है कि हे मेहरबान प्रभु ! हम जीवों पर तूं दया दृष्टि रख, तो सतगुरु नानक के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर पंडित जी गदगद हो गए उनके अंदर से अज्ञानता का अंधेरा दूर हो गया, आत्मा निर्मल हो गई और वह सद्गुरु के पूर्ण श्रद्धालु और सेवक बन गए और प्रसन्न चित्त होकर विनती की कि हे जगत आधार गुरु जी आपने बहुत कृपा की है आपने इस कांशी को भाग लगा दिए हैं और अपने इस सेवक को निखार दिया है हे गुरु जी ! आप भी यहां पर कुछ समय रुक कर यहां के लोगों को उपदेश देने की कृपा करो जी, तो सतगुरु नानक ने पंडित गोपाल जी को धीरज देते हुए कहा कि हां पंडित जी हम यहां पर कुछ समय रहेंगे तो वहां से पंडित गोपाल जी आज्ञा पाकर अपने घर चले गए और घर जाकर उन्होंने अपने घर वालों को खुशखबरी सुनाई कि आज हमारे भाग को अच्छे भाग लगे हैं एक दिव्य स्वरूप प्रभु का रूप वहां पर आकर विराजमान हुए हैं जिनके दर्शन करने से तन मन निर्मल हो जाता है तो उनके मुख्य से ऐसे वचन सुनकर घर में से सभी लोगों ने आकर सतगुरु नानक के दर्शन किए और वहां पर मजूद संगत ने सतगुरु नानक के दर्शन किए, कीर्तन और वाहेगुरु के साथ जुड़ने के उपदेश सरवन किए तो इसी तरह उस भाग में हर रोज सत्संग होने लगा, दूर-दूर से संगत सतगुरु नानक के दर्शन करने और उनका उपदेश सरवन करने के लिए आने लगी और अगर कोई अपनी इच्छाओं को लेकर सतगुरु नानक के पास जाता था तो सतगुरु सभी पर अपनी दया मेहर की अपार नजर डालते थे और उन्हें वह खुशियां दे देते थे तो उस समय कांशी में सतगुरु नानक की जय जयकार होने लगी और उस समय पंडित चतुरदास नाम का एक महा ज्ञानी वहां पर रहता था जिसकी भारी मानता थी लेकिन उसको हाओमे का धीरज रोग लगा हुआ था और वह समझता था कि इस समय पूरे संसार में उस जैसा कोई भी महान ज्ञानी नहीं है उसने बहुत सारे विद्वानों के साथ शस्त्र अर्थ के साथ विजय प्राप्त की हुई थी उसकी तर्क भरी हुई दलील के आगे कोई भी टिक नहीं सकता था उसको अपने आप पर बहुत मान और अहंकार था वह किसी की शोभा मान और प्रतिष्ठा देखकर सहन नहीं कर सकता था और वह इसी घमंड में रहता था और इसी घमंड को लेकर वह सभी लोगों की निरादरी करा करता था तो जब उसने सुना कि काशी में एक ऐसे महापुरुष आए हैं जिनकी शोभा पूरे कांची में चारों तरफ फैली हुई है और जिनके पास श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई रहती है जिनके दर्शन करने के लिए संगत दूर-दूर से आती है उनके दर्शन करती है और उनसे उपदेश लेकर अपना जीवन सफल करती है तो सतगुरु नानक की ऐसी प्रसिद्धि देखकर वह विचार करने लगा कि ऐसा कौन आया है जिसकी सभी तरफ चर्चा हो रही है और सभी लोग उसके बारे में ही बातें कर रहे है और मुझे कोई भी याद नहीं कर रहा तो उसने अपनी विद्वता के ज्ञान से सतगुरु नानक को शस्त्र अर्थ में उलझा कर उन पर विजय प्राप्त करने का पक्का निश्चय किया और उन्हें अपमानित करने का विचार किया और वह यह सोच रहा था कि सतगुरु उसकी विद्वता के ज्ञान के उत्तर नहीं दे पाएंगे और लोग उनकी उपमा करनी छोड़ देंगे फिर इसकी अपनी मान्यता कम हो जाएगी तो ऐसे विचारों को लेकर पंडित चतुरदास अपने कई साथियों के साथ सतगुरु नानक के पास गया तो जब पंडित चतुरदास जी ने सतगुरु नानक के दिव्य स्वरूप को और चेहरे के नूर को देखा तो उसके हृदय से जन्म जन्मांतरों की मेल उतरनी शुरू हो गई सतगुरु नानक की एक दृष्टि से ही वह अपने आप को भूल गया, उसका मन शांत हो गया लेकिन अब भी कुछ कसर बाकी रह गई थी अभी अंदर अहंकार मौजूद था और वह सतगुरु नानक से कहने लगा कि हे महाराज जी ! मैं आप जी से प्रश्न उत्तर करने के लिए आया हूं अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं कुछ प्रश्न आपसे करूं, तो सतगुरु नानक कहने लगे, पंडित चतुरदास जी अगर आपने भी प्रश्न करने ही हैं तो इस भाग में एक कुत्ता है वह भी यहां का एक महा ज्ञानी पंडित था लेकिन अपने कुछ ऐसे कर्मों के कारण है अब कुत्ते की जून भोग रहा है आप अभी उसको यहां पर लेकर आए वह आपके सभी प्रश्नों के जवाब आपको दे देगा मैंने इन वाद विवादों के झगड़ों में नहीं पड़ना तो सतगुरु नानक के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर पंडित चतुरदास जी हैरान हो गए और सोचने लगे कि सतगुरु नानक उनसे मखौल कर रहे हैं और वह कहने लगे कि हे महाराज जी ये कैसे हो सकता है कुत्ता भी कभी किसी के प्रश्नों के जवाब दे सकता है ? तो सतगुरु की आज्ञा पाकर जब पंडित जी कुछ कदम चले तो उनको वहां पर एक कुत्ता बैठा हुआ नजर आया तो जब वह उस कुत्ते को लेकर सतगुरु नानक के पास गए और जब सतगुरु नानक की दृष्टि उस कुत्ते पर पड़ी तो सतगुरु की दिव्य दृष्टि पड़ते ही वह एक सुंदर रूप वाला विद्वान व्यक्ति नजर आने लगा, वहां पर मौजूद सभी पंडित हैरान हो गए और यह सोचने लगे कि ये कैसा अचरज चमत्कार हुआ है और सभी हाथ जोड़कर सतगुरु के आगे विनती करने लगे और पूछने लगे कि हे महाराज जी ! जय क्या कौतक है जब ये बाहर से आया था तो एक कुत्ते के रूप में आया था लेकिन जब से यह आपके सामने आकर बैठा है तो यह हमें एक विद्वान व्यक्ति जैसे लग रहा है कृपया हमें बताएं कि हम कहीं सपना तो नहीं देख रहे तो ये सुनकर सतगुरु नानक मन ही मन में मुस्कुराए और जवाब देते हुए कहने लगे कि यह सब आप इनसे पूछे यह आपको बताएंगे तो जब सतगुरु ने ऐसे वचन किए तो उन्होंने कहा कि किसी समय मैं भी काशी का एक महान पंडित था, मेरी भी यही दशा थी जब भी कांशी में कोई महान पुरुष योगी सन्यासी आता था तो मेरे इरखालू स्वभाव के कारण मैं उसे यहां पर टिकने नहीं देता था शस्त्र अर्थ के माध्यम से उनको निर्रसत करके उनको यहां से भगा देता था एक समय यहां पर एक महापुरुष आए उनके साथ प्रश्न उत्तर करते समय काफी समय व्यतीत हो गया लेकिन फिर भी मैं उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था तो उन महापुरषों के मुख से यह वाक्य निकल गए कि क्यों कुत्तों की तरह भोंक रहा है तो यह सुनकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मुझे श्राप मिल गया है तो उसके बाद मैंने उनसे खिमा मांगी लेकिन फिर क्या हो सकता था उन्होंने कहा कि अब तुझे कुत्ते की जून भोगनी पड़ेगी तो मैंने उनको कहा कि कृपया मुझे यह बताएं कि इस जून से मुझे कब छुटकारा मिलेगा और कब तक मुझे ऐसे ही रहना पड़ेगा कृपया इस पर प्रकाश डालें तो उन्होंने कहा कि कलयुग के समय श्री गुरु नानक यहां पर आएंगे और उनकी कृपा की दृष्टि तेरे ऊपर पड़ेगी तो फिर जाकर तेरा उद्धार होगा तो वह कहने लगा कि मैं इस शुभ घड़ी के इंतजार में था जो कि अब मुझे प्राप्त हुई है आप जल्दी करें आपको जो पूछना है पूछो मैं गुरु जी की कृपा से आपके सभी प्रश्नों के जवाब दूंगा यह कलयुग के अवतार श्री गुरु नानक देव जी है और यह कथा पंडित गंगाराम जी के मुख्य से सुनकर सभी पंडित सतगुरु नानक के चरणों पर गिर पड़े और विनती करने लगे कि हम आप की महिमा को नहीं जान सके कि आप कलयुग के अवतार हो और हमें दर्शन देने आए हो, कृप्या हमें बख्श दो आप अपनी कृपा का पात्र हमें बनाएं हमें शुभ उपदेश देने के योग्य बनाएं और अपनी अपार कृपा हम पर बरसाए जिसकी मदद से आगे चलकर हमारा भी पार उतारा हो सके तो उनके ऐसे वचन सुनकर सतगुरु नानक ने सत्य धर्म का उपदेश देते हुए कहा कि पंडित जी आप दिखावे मात्र के लिए यह कर्मकांड कर रहे हो और साधारण लोगों को भरम भूलेखें में डाल रहे हो इन कर्मकांड को करने से मुक्ति नहीं हो सकती जब तक कि आप वाहेगुरु का सिमरन करके ध्यान नहीं लगाते तो यह सुन कर पंडित चतुरदास जी कहने लगे कि हे गुरु जी ! कौन से क्रम दिखावे के है और कौन से कर्म सच्चे हैं तो उस समय सतगुरु नानक ने संस्कृति के पहले चार श्लोक उच्चारण किए जो आज श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में दर्ज है सतगुरु नानक के मुख्य से वह देवी और इस भवसागर को पार करने वाली दिव्य वाणी को सुनने की देर थी कि वहां पर मौजूद सभी निमृता और दया के साथ सतगुरु नानक के चरणों पर झुक गए और उनका मन निर्मल हो गया और उधर कुत्ते का स्वरूप धारण कर बैठे पंडित गंगाराम पर जब सतगुरु नानक की दृष्टि पड़ी तो उसने भी हाथ जोड़कर अंतिम नमस्कार की और उस रूप को भी त्याग दिया उस पंडित की जीवात्मा को सतगुरु नानक ने सीधा बैकुंठ धाम में भेज दिया यह नजारा देखती हुई वहां पर मौजूद सभी विस्माद दर्शक कहने लगे धन गुरु नानक ! धन गुरु नानक ! धन गुरु नानक ! तो पंडित गोपाल दास जी ने सतगुरु नानक के आगे हाथ जोड़कर विनती की कि हे गुरु जी आप जी के चरण पड़ने से ही यह बाग पवित्र हो गया है अब यह बाग मेरा नहीं रहा और अब इस बाग को मैं आप जी के चरणों में भेंट कर रहा हूं तो उस दिन से उस बाग का नाम गुरूबाग से प्रसिद्ध हो गया वह भाग गुरुद्वारा गुरु बाग जी के नाम से रेलवे स्टेशन से डेढ़ मील पर स्तिथ है, साध संगत जी, प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों कि शमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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