साध संगत जी, आज की साखी सतगुरु नानक देव जी और भाई मरदाना जी की है जब भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से पूछा था कि सतगुरु मैंने बहुत बार देखा है कि जब भी कोई आपके लिए उपहार लेकर आता है कोई भेट आपके लिए लेकर आता है तो आप उसको स्वीकार नहीं करते और इंकार कर देते हैं और मेरे मन में इसी बात को लेकर शंका बनी हुई है कि आप ऐसा क्यों करते हैं आखिर गुरु की खुशी किस में है गुरु को कैसे खुश किया जाता है ? तो भाई मरदाना जी का जवाब देते हुए सतगुरु नानक ने क्या वचन किए थे आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी एक बार सतगुरु नानक भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ यात्रा करते हुए एक नगर में एक स्थान पर जा पहुंचे और वहीं पर सतगुरु ने अपना डेरा जमा लिया तो कुछ देर बाद भाई मरदाना जी को भूख लगी तो भाई मरदाना जी का चेहरा देखकर सतगुरु नानक ने कहा हे मरदाने ! जाओ पास के एक गांव में जाओ वहां पर खत्री नाम का एक व्यक्ति रहता है जब तुम उसके पास जाओगे तो वह खुद ब खुद चल कर तुम्हारे पास आ जाएगा और 36 प्रकार के भोजन तुम्हारे सामने रखेगा वह किसी की जात पात नहीं पूछता वह तो सिर्फ सेवा भावना से लोगों की सेवा करता है और सतगुरु नानक कहने लगे कि हे मरदाने ! जब तुम वहां जाओगे तो वह तुम्हारा बहुत ही आदर और सम्मान करेगा तो सतगुरु की आज्ञा पाकर जब भाई मरदाना जी उससे मिलने चल पड़े तो जब भाई मरदाना जी उसके गांव पहुंच गए तो जैसा जैसा सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को कहा था वैसा ही हुआ तो जब भाई मरदाना जी उसके पास गए तो उसने कहा कि हमारे अच्छे भाग की आप जैसे महात्मा हमारे गांव में पधारे है तो उसने भाई मरदाना जी का बहुत ही आदर और सम्मान किया और उनको भोजन करवाया, भोजन में उसने भाई मरदाना जी के सामने बहुत सारे पकवान रखें और भाई मरदाना जी ने भोजन किया तो भोजन के बाद उसने बहुत सारे उपहार और वस्त्र भाई मरदाना जी को दिए तो वह सब लेकर भाई मरदाना जी खुशी-खुशी सतगुरु नानक के पास आए और जब सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी के पास वह उपहार और वस्त्र देखें तो सतगुरु ने मुस्कुराकर पूछा कि हे मरदाने ! यह क्या लेकर आए हो तो भाई मरदाना जी ने कहा कि गुरु जी गांव वालों ने आपके लिए सम्मान पूर्वक कपड़े और उपहार भेजे हैं तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि हे मरदाने ! ये सब वस्तुएं और उपहार हमारे किसी काम के नहीं है तो उसके बाद भाई मरदाना जी ने कहा कि गुरु जी फिर मैं इनका क्या करूं तो सतगुरु ने कहा इन्हें फेंक दो तो सतगुरु की आज्ञा पाकर भाई मरदाना जी ने वह वस्त्र और उपहार फेंक दिए और उसके बाद भाई मरदाना जी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था वह उलझन में थे और ऐसी उलझन में उन्होंने गुरु जी से पूछा कि गुरु जी जो भगत आपको भेंट स्वरूप उपहार और वस्त्र देते हैं उनमें से आपको कुछ प्राप्त होता है या नहीं क्योंकि आप तो कुछ भी नहीं लेते आपको अगर कोई उपहार देता है कोई खुशी से सम्मान पूर्वक कुछ भेंट देता है तो आप इंकार कर देते हैं तो आप ऐसा क्यों करते हैं, आपकी ख़ुशी किस में है, गुरु को कैसे खुश किया जाता है ? कृपया इस पर मुझे विस्तार से समझाएं मेरे मन में इसी को लेकर शंका बनी हुई है कि आप ऐसा क्यों करते हैं तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी की ये शंका एक शब्द बोल कर दूर की जो कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंग 164 में दर्ज है जिसका अर्थ है हे हरि ! मुझे अपने उस सेवक से मिला जिस से मिलने से सारे दुख दूर हो जाए और अंदर आत्मिक आनंद पैदा हो जाए और सतगुरु कहने लगे मां खुशी मनाती है जब उसका पुत्र कोई अच्छी चीज खाता है और मछली पानी में नहा कर प्रसन्न होती है और गुरु को खुशी मिलती है जब उसके शिष्य को कोई भोजन करवाता है अथवा उसकी सेवा करता है जैसे गाय को अपने बछड़े से मिलकर खुशी मिलती है और जैसे इस्त्री को खुशी मिलती है जब उसका पति घर आता है वैसे ही परमात्मा के सेवक को तभी खुशी मिलती है जब वह परमात्मा की सिफत सलाह गाता है उसके नाम का गुणगान करता है उसके नाम का जप करता है, पपीहे को खुशी मिलती है जब मूसलाधार वर्षा होती है, माया के फैलाव को देखकर यानी अपने राज्य के विस्तार की सीमाओं को देखकर जैसे राजा खुश होता है वैसे ही प्रभु के दास को खुशी मिलती है जब वह प्रभु का नाम जपता है और एक मनुष्य को खुशी मिलती है जब वह धन कमाता है धन को अर्जित करता है परंतु गुरु के सिखों को खुशी तब मिलती है जब गुरु उसे अपने गले से लगा लेता है उसे मिलता है हे नानक ! परमात्मा के सेवक को खुशी मिलती है जब वह किसी गुरमुख के पैर चूमता है इस शब्द के माध्यम से सतगुरु नानक ने ये समझाने की कोशिश की है कि गुरु तब खुश होता है जब उसके सिख यानी कि शिष्य खुश हो और वह परमात्मा का नाम जपे गुरु के सामने धन दौलत माया की भेंट देकर गुरु को प्रसन्न नहीं किया जा सकता तो सतगुरु नानक के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर भाई मरदाना जी ने कहा सत्य वचन और उसके बाद सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ संसार के कल्याण के लिए अपनी अगली यात्रा के लिए निकल पड़े, तो साध संगत जी साखी के अंत में आज की शिक्षा है कि जो लोग मंदिर मस्जिदों और गुरुद्वारों में तो जाते है लेकिन परमात्मा का नाम नहीं जपते तो सतगुरू कहते है कि हे भाई ढूंढते ढूंढते मैंने प्रभु के नाम का अमृत ढूंढ लिया है और उस अमृत रूपी नाम ने मेरे तपते शरीर को ठंडा कर दिया है मेरे अंदर ठंडक कर दी है हे भाई लोग जंगलों पहाड़ों में अपने मन को मारने के लिए उसको शांत करने के लिए जाते हैं परंतु वह जो नाम रूपी अमृत है जो मन को शांत कर सके वह प्रभु के सिमरन के बिना नहीं मिल सकता गुरु की कृपा के बिना नहीं मिल सकता, मोह माया की तृष्णा और प्यास एक ऐसी आग है जिसने मनुष्य यहां तक कि देवताओं को भी नहीं छोड़ा परंतु प्रभु के नाम सिमरन ने अपने भक्तों को इस आग में जलने से बचा लिया है और ऐसे भक्त जिन्हें प्रभु के नाम और सिमरन ने बचाया है ऐसे लोगों के लिए यह संसार सुखों का समुंदर बन गया है और वह इस नाम रूपी अमृत को लगातार पी रहे हैं जो कभी खत्म नहीं होता और सतगुरु कबीर कहते हैं हे मेरे मन तू परमात्मा का सिमरन कर उसका नाम जप क्योंकि परमात्मा के नाम रूपी अमृत ने मेरी माया की प्यास को बुझा दिया है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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