साध संगत जी आज की साखी है कि जब सतगुरु नानक की मुलाकात मकधम नामक फकीर से हुई थी और मकधम फकीर ने अपनी अलौकिक शक्तियों का इस्तेमाल सतगुरु नानक के सामने किया था तब सतगुरु ने मकधम को क्या उपदेश दिया आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी एक बार मकधम नामक फकीर समुंदर के किनारे रेत पर बैठा हुआ था उसके चेहरे पर खुशी थी और आंखों में ध्यान था और उसमें अलौकिक शक्तियां थी और वह समुंदर के किनारे पर बैठकर मिट्टी से खेल रहा था उसका खेल वैसा नहीं था जैसे कि बच्चे खेलते हैं वह अपनी अलौकिक शक्तियों के साथ मिट्टी के बवंडर बना रहा था जोकि गोल गोल घूम रहे थे जिससे कि उसकी आकांक्षाओं का पता चल रहा था वह अलौकिक शक्तियां हासिल कर सबसे शक्तिशाली बनना चाहता था और वह ध्यान को केंद्रित करने की कोशिश करता था और अलौकिक शक्तियों को हासिल करने की कोशिश कर रहा था ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा अलौकिक शक्तियों का ज्ञान हासिल हो सके वह समुंदर के किनारे मिट्टी पर जिस कालीन पर बैठा हुआ था वह उसे अपनी शक्ति से इधर-उधर कर रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे कि वह जमीन पर विशे कालीन पर सवारी कर रहा हो तो एक दिन सतगुरु नानक उस समुद्री तट पर पहुंचे जहां पर मकधम अपनी अलौकिक शक्तियों का प्रदर्शन कर रहा था तो मकधम फकीर ने जब सतगुरु नानक को देखा जब सतगुरु नानक की मुलाकात मकधम फकीर से हुई तो वह सतगुरु नानक के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ और बड़े ही आदर और सम्मान से उसने सतगुरु नानक से कहा कि आपका स्वागत है आप मुझे संत दिखाई देते हैं और संतों को घूमना पसंद होता है कृपया मेरे साथ चलिए मैं आपको समुंदर के भ्रमण पर लेकर चलता हूं तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि मकधम यहां पर तो मुझे कोई नाव दिखाई नहीं दे रही तो हम समुंदर के भ्रमण पर कैसे जाएंगे तो उसने सतगुरु नानक से कहा कि आप नहीं जानते मैं अलौकिक शक्तियों का मालिक हूं और मैं जिस कालीन पर बैठा हुआ हूं वह भी कोई आम कालीन नहीं है इसमें भी अलौकिक शक्तियां हैं जब यह समुंदर में जाएगी तो यह नाव का रूप धारण कर लेगी तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि मकधम जब तुम समुंदर में घूम रहे थे तो वहां पर तुमने कुछ देखा था तो ये सुनकर मकधम ने कहा कि हां मैंने देखा था समुंदर के बीच में मैंने एक मस्जिद को देखा था तो सतगुरु नानक ने कहा कि तुम उस मस्जिद में जाओ मैं यहां पर ही तुम्हारा इंतजार करूंगा जब तुम वहां पर जाकर वापस आओगे तब मैं तुमसे बात करूंगा तो यह सुनकर मकधम ने कहा कि ठीक है जैसा आप कहते हैं मैं वैसा ही करता हूं तो इतना कहते ही मकधम अपनी कालीन पर बैठकर समुंदर का भ्रमण करता हुआ मस्जिद में जाने के लिए चला गया तो सतगुरु नानक समुद्र के किनारे पर बैठ गए समुंदर के शांत और मोहक वातावरण में ईश्वर के ध्यान में लीन हो गए तो कुछ देर बाद मकधम वापस आया और उसने सतगुरु नानक को प्रणाम किया तो सतगुरु नानक ने मकधम से पूछा कि अब बताओ तुम्हारी समुंदर की यात्रा कैसी रही तो उसने कहा कि मैं जब वहां पर पहुंचा तो वहां पर 20 मुस्लिम फकीर अल्लाह की इबादत कर रहे थे और जब उनकी इबादत खत्म हो गई तो मैंने उनको प्रणाम किया और वहां पर 21 थालियां भोजन की लगी हुई थी तो सभी फकीरों समेत मैंने भी भोजन किया तो जब अगली सुबह हुई वह फकीर मुझे छोड़कर वहां से चले गए तो उसके बाद मैने देखा कि वहां पर एक पानी का जहाज गुजर रहा है तो मैने देखा कि वह जहाज तो पानी में डूब रहा है तो वह सोचने लगा कि मुझे इसे डूबने से बचाना चाहिए अपनी अलौकिक शक्तियों से इस जहाज को डूबने से बचाना चाहिए तो उसने अपनी अलौकिक शक्तियों से उस डूबते हुए जहाज को बचा लिया और अल्लाह को याद किया तो उसके बाद वह 20 फकीर फिर अल्लाह की इबादत करने आए लेकिन उस दिन उनके लिए भोजन नहीं आया और वह फिर मकधम को वहीं पर छोड़ कर चले गए तो थोड़ी देर बाद वह मस्जिद हिलने लगी जैसे कि वहां पर भूकंप आ गया हो तो मकधम ने कहा कि हे अल्लाह ! ये क्या हो रहा है ऐसे लग रहा है जैसे कि भूकंप आया है और यह मस्जिद दहने वाली है और वह सोचने लगा कि मुझे जल्द से जल्द इस मस्जिद को बचाना होगा तो मकधम ने फिर से फरियाद की और मस्जिद ढहने से बच गई तो उस रात फिर वह 20 फ़कीर अल्लाह की इबादत के लिए आए लेकिन उस रात फिर भोजन उनके लिए नहीं आया तो उनमें से एक फकीर ने कहा कि हम में से किसी ना किसी से जरूर कोई ना कोई पाप हुआ है जिससे कि भोजन नहीं आ रहा है हम में से किसी ना किसी ने कुछ जरूर किया है जिससे कारण भोजन नहीं आ रहा है तो उसके बाद वह कहने लगे कि अल्लाह जो करता है हमें वह स्वीकार करना चाहिए तो उस समय मकधम भी वहां पर मौजूद था और उसने वह सारी बातें सुनी और वह उन फकीरों को कहने लगा कि मुझसे कुछ चीजें हुई है शायद मेरी वजह से ऐसा हो रहा है तो उस फकीर ने कहा कि तुमसे ऐसा क्या हुआ है तो उसने कहा कि मैंने एक डूबती हुई नाव को बचाया है वह समुंदर में डूब रही थी और मैंने अपनी अलौकिक शक्तियों की मदद से उस नाव को डूबने से बचाया है और यह मस्जिद भी डूब रही थी यहां पर भूकंप आया था तो इस मस्जिद को बचाने के लिए भी मैंने अपनी अलौकिक शक्तियों की सहायता ली और इस मस्जिद को ढहने से बचा लिया तो वह फकीर कहने लगा कि यह सब तुमने किया है तुम कौन हो ? तो मकधम ने कहा कि मेरा नाम मकधम है और मैं एक धार्मिक गुरु हूं तो ये सुनकर फकीर ने कहा कि ओ भले आदमी यह स्थान किसी राजा जा किसी धार्मिक गुरु के लिए नहीं है राजा और धार्मिक गुरु का स्थान तो संसार में है यहां पर नहीं उसका स्थान तो मोह माया में है अल्लाह में नहीं और वह फकीर कहने लगा कि धार्मिक गुरुओं और राजाओं में घमंड होता है और यहां पर घमंड होता है वहां पर ईश्वर कभी नहीं आ सकता तो यह सुनकर मकधम बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अपनी कालीन पर बैठ कर वापस जाने का फैसला लिया और जब वह अपनी कालीन पर बैठा तो उसने देखा की कालीन चल नहीं रही है तो उसने कहा कि ऐसा क्यों हो रहा है और वह अपनी कालीन पर 8 घंटे बैठा रहा परंतु वह कालीन बिल्कुल भी इधर-उधर नहीं हुआ शाम हो चुकी थी तो उसके बाद वह 20 फकीर फिर मस्जिद में पहुंचे और अल्लाह की इबादत करने लगे तो मकधम भी फिर उन्हीं के पास चला गया तो जब उनमें से एक फकीर ने देखा तो उसने कहा कि अब तक तुम यहां से क्यों नहीं गए हो तो मकधम ने कहा कि मेरा कालीन आगे नहीं बढ़ रहा है पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ आज पता नहीं ऐसे क्यों हो रहा है मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है यह पानी पर एक ही स्थान पर जम गया है तो ये सुनकर उस फ़कीर ने कहा कि तुम किस के चेले हो तो मकधम ने कहा कि मुझे यहां पर गुरु नानक ने भेजा है तो उस फकीर ने कहा कि तुम उन्हीं का ध्यान करो वह तुम्हारी सहायता करेंगे तो मकधम ने सतगुरु नानक से कहा कि इस प्रकार मैंने आपका ध्यान किया और मैं यहां आपके पास वापस आ गया तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि ओ मकधम तुमने कुछ देखा तो ये सुनकर मकधम ने कहा कि आप तो सब कुछ जानते हैं आपकी वजह से ही मैं यहां वापस आ पाया हूं तो सतगुरु कहने लगे कि जब इंसान मोह माया में फस जाता है तो वह ईश्वर को भूल जाता है हंस का दिमाग चील में बदल जाता है तो ये सुनकर मकधम ने कहा कि गुरु जी मुझे बताएं कि मेरे साथ जो हुआ यह सब क्यों हुआ तो सतगुरु नानक कहने लगे कि मकधम तुम किस राह पर चल रहे थे तुम ने घोर तपस्या की इतनी क्रियाआएं की इतने दिनों तक तुम भूखे रहे और अपने शरीर को कष्ट दिया यह सब तुमने अपनी एकाग्रता को बढ़ाने के लिए और अलौकिक शक्तियों को हासिल करने के लिए और अपने नाम की प्रसिद्धि करने के लिए किया और सतगुरु नानक कहने लगे कि जितना प्रयास तुमने अपने आप को प्रसिद्ध करने के लिए किया और अलौकिक शक्तियों को पाने के लिए किया इतना प्रयास अगर तुम ईश्वर को पाने में लगाते तो तुम्हें ईश्वर की अनुभूति हो जाती और सतगुरु नानक कहने लगे कि तुमने अपने कालीन को पानी में तैरराकर क्या हासिल किया और सतगुरु कहने लगे कि तुमने उस समुंदर में डूबते हुए जहाज को बचाया वह डूब रहा था और तुमने उसको बचाया, अल्लाह के सामने फरियाद की और उसे डूबने से बचा लिया यह तो एक अच्छा कार्य है लेकिन उसके साथ ही तुम्हारे अंदर घमंड भी आ गया और फिर जब मस्जिद भूकंप से हिलने लगी तो तुमने उसको भी बचाया लेकिन उसके साथ घमंड भी आ गया और सतगुरु नानक ने कहा कि जब व्यक्ति कोई अच्छा कार्य करता है और उसके साथ उसको करने का जब उसके अंदर घमंड आ जाता है तो सब किए कराए पर पानी फिर जाता है और इन्हीं वजह से तुम्हारा कालीन पानी पर नहीं चल रहा था और सतगुरु नानक ने मकधम को कहा कि तुम किस राह पर चल रहे हो तुम्हारे अंदर घमंड ने अपनी खास जगह बना ली है अपने आप को इस मोह माया से ऊपर उठाओ अगर तुम प्रसिद्ध भी हो गए और बहुत बड़े संत भी बन गए तब भी क्या होगा यह संसार नश्वर है यहां पर हमेशा के लिए ना तो कोई रहा है और ना ही रहेगा, मृत्यु के बाद हर किसी को ईश्वर की अदालत में जाना है अगर तुमने इस नश्वर संसार में प्रसिद्धि हासिल कर भी ली तब भी तुम्हें ईश्वर के दरबार में प्रसिद्धि नहीं मिलेगी क्योंकि तुमने जीवित रहते हुए उसका नाम नहीं लिया इसलिए तुम्हारे लिए यही सही है कि तुम ईश्वर का नाम लो तो सतगुरु नानक के मुख से ऐसे वचन सुनकर मकधम के दिमाग की धूल साफ हो गई परंतु वह अभी भी समझ नहीं पाया था कि गुरु जी एक सच्चे गुरु है और वह सतगुरु नानक से कहने लगा कि मुझे ऐसा क्या करना चाहिए जिससे कि मुझे शांति मिले और आनंद मिले और मैं किस को अपना गुरु बनाऊं तो सतगुरु नानक कहने लगे कि यह बात तुम शेख भ्रम से पूछो कि उसका अध्यात्मिक गुरु कौन है तुम भी उसको अपना गुरु बना लो तो मकधम गुरु की तलाश के लिए निकल पड़ा और वह शेख भ्रम जी के पास पहुंचा जिन्हें लोग शेख फरीद भी कहा करते थे तो जब उसकी मुलाकात शेख भ्रम जी से हुई तो उसने कहा कि हे फकीर ! मैंने बहुत तपस्या की है बहुत क्रिया की है और मेरे पास बहुत सारी अलौकिक शक्तियां है लेकिन जब से वह 20 फकीरों ने और गुरु नानक ने कुछ ऐसी बातें कही है जिसे सुनकर मैं विचलित हो गया हूं गुरु नानक ने कहा कि हंस का दिमाग चील के दिमाग में बदल गया है और वह शेख ब्रम्ह से कहने लगा कि क्या मैं चील जैसा हूं तो ये सुनकर शेख भ्रम जी ने कहा कि मकधम तुम गुरु नानक के शब्दों को गलत तरीके से ले रहे हो उन्होंने कहा कि तुम हंस हो और चील जैसे बने हुए हो क्योंकि तुम्हारा रास्ता सही नहीं है तो ये सुनकर मकधम ने कहा कि आप सही कह रहे हैं गुरु नानक में बहुत शक्ति है तो यह सुनकर शेख भ्रम जी ने कहा कि यह बात तो सत्य है गुरु नानक एक बहती प्रेम और प्यार की नदी है तो उसके बाद मकधम ने कहा कि जब मैंने गुरु नानक से पूछा कि मैं किसको अपना गुरु बनाऊं तो गुरु नानक ने मुझे आपके पास भेजा तो यह सुनकर शेख भ्रम जी ने कहा कि मैं भी तुम्हारी तरह शक्तियों को हासिल करने की कोशिश में लगा हुआ था लेकिन गुरु नानक ने मुझे सही रास्ता दिखाया ईश्वर का रास्ता दिखाया, तुम भी उनके पास जाओ और उनके चरणों में लेट कर उनको प्रणाम करो तो ये सुनकर मकधम ने वैसा ही किया जैसा शेख भ्रम ने उसको कहा था तो जब मकधम ने गुरु नानक के चरणों पर माथा टेका तो सतगुरु ने उसे आशीर्वाद दिया और उसके बाद सतगुरु संसार के कल्याण के लिए अपनी अगली यात्रा के लिए आगे चल पड़े ।
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By Sant Vachan
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