"हरि गुण गावो सदा सोभाई, मन चिंदे संगले फल पावो
जीके संग सहाई "
जो हरि परमेश्वर हमेशा ही शोभनिक है उसके गुणों को गाना चाहिए भाव उसका हमेशा जस करते रहना चाहिए उसका फल यह मिलेगा की मन इच्छित सभी फल मिलेंगे और यह हमारी आगे भी सहायता करने वाला होगा,
"गुरु पूरे चरनी लाया"
साध संगत जी, जिज्ञासु कह रहा है कि मुझे पूरे गुरु ने अपने चरणी लगा लिया है "हरि संघ सहाई पाया" भाव जो परमेश्वर है वह अंग संग होकर सहायता करने वाला है और उसने हरि को साध संगत में प्राप्त कर लिया है साध संगत जी यहां पर सतगुरु के चरणों की बात आई है जो कि संसार भर को तारने वाले हैं यहां पर सतगुरु कबीर महाराज जी ने चरण कमलों को लेकर बहुत ही सुंदर तरीके से फरमान किया है कि नर्क और स्वर्ग से अपने गुरुदेव की कृपा के कारण बच गया हूं चरण कमलों की मौज में आदि अंत समाया रहूंगा ।
"कबिर सुर्ग नर्क ते मै रहैयो, सत्गुरु के प्रसाद
चरण कमल की मौज में रहो अंत और आदि"
चरण कमलों की मौज का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता और अगर कोई कहता है तो उसकी फिर शोभा नहीं क्योंकि चरण कमलों की मौज को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता और जिन्होंने चरण कमलों की मौज को देखा है आनंद लिया है वह लोक और परलोक में प्रमाणित होते हैं
"कबीर चरण कमल की मौज को कह कैसे अनुमान
केहवे को शोभा नहीं देखा ही परवान"
साध संगत जी सतगुरु नानक अपने घर राय भोए की तलवंडी जिसको आज ननकाना साहिब कहा जाता है वहां पर सतगुरु घर में पलंग पर विश्राम कर रहे थे सतगुरु को विश्राम करते हुए कुछ समय ही बीता था कि भोजन का समय हो गया तो माता तृप्ता जी को इस बात का बड़ा चाओ था कि मैं अपने पुत्र नानक को भोजन पका कर खिलाऊंगी और उसे अपने हाथों से खिलाऊंगी तो माताजी ने बड़े प्रेम और प्यार से भोजन तैयार किया और घर की दासी जिसका नाम तुलसा था जो कि इतिहास में आया है तो माता तृप्ता जी ने तुलसा को यह कह कर भेजा कि जाओ मेरे पुत्र को मेरे पास लेकर आओ ताकि ताजा भोजन जो मैंने प्रेम और प्यार से तैयार किया है उसको खिला सकूं तो जब माता तृप्ता की आज्ञा पाकर तुलसा दासी सतगुरु नानक के पास गई तो उसने देखा कि सतगुरु विश्राम कर रहे हैं साध संगत जी सोए हुए को जगाने के लिए दो प्रकार की रीत है अगर किसी छोटे व्यक्ति को जगाना हो तो उसकी बाजू पकड़ कर उसे जगा दिया जाता है और अगर किसी बड़े को जगाना हो तो पैरों को पकड़ कर आदर सम्मान के साथ जगाया जाता है तो इसी रीत के अनुसार तुलसा दासी ने सतगुरु नानक को जगाने के लिए सत्गुरु के चरण को पकड़ा तो सतगुरु के चरणों को पकड़ते ही एक चुंबक जैसी शक्ति ने तुलसा दासी के मन को प्रभावित किया उसके जन्मों-जन्मों के भाग जाग उठे तो वह सतगुरु को जगाने की बजाय उनके चरणों पर प्रणाम करने लगी और सतगुरु नानक के चरणों का अंगूठा मुख में डालकर रस में मंत्रमुग्ध हो गई साध संगत जी जो मिठास इस संसार के बड़े से बड़े, अच्छे से अच्छे और मीठे से मीठे पदार्थ में नहीं वह मिठास श्रद्धावान को गुरु चरणों से प्राप्त होती है तो ऐसे सतगुरु के चरणों ने तुलसा के कपाट खोल दिए तो क्या देखा गुरु जी अपने शिष्य के साथ संगला दीप में डूब रहे जहाज को कंधा देकर पार कर रहें हैं तो इतनी देर में सतगुरु नानक की माता, माता तृप्ता जी ने आवाज लगाई कि तुलसा इतनी देर लगा दी है तो तुलसा ने सतगुरु को बिना जगाए ही वहां से जाना ठीक समझा और वह वापिस आ गई तो जब वह माता तृप्ता जी के पास गई तो माता तृप्ता जी ने कहा कि मेरे लाल जी क्यों नहीं आए तुम्हे मैंने जगाने के लिए भेजा था तो तुलसा दासी ने कहा की माता जी अगर वह यहां पर होते तो मैं उन्हें जरूर जगा कर ले आती तो ये सुनकर माता जी घबरा गए और उन्होंने तुलसा दासी को पूछा इतनी जल्दी वह कहां पर चले गए तो यह सुनकर तुलसा दासी ने कहा कि संगलादीप में एक डूब रहे जहाज को निकालने के लिए उसे सहारा दे रहे हैं तो माताजी को इन बातों ने बहुत हैरान कर दिया और वह सोचने लगी कि मेरा पुत्र इतनी जल्दी वहां पर कैसे चला गया और दूसरा अगर वह चला गया तो दासी को कैसे पता चला कि संग्लादीप में डूब रहे जहाज को बचाने के लिए समुद्र में गए हैं तो माताजी रोटी छोड़कर तीनों लोगों के मालिक पुत्र रूप में प्राप्त हुए सतगुरु नानक के पास गए तो माता जी को गुस्सा तो तुलसा दासी पर भी बहुत आया लेकिन उससे ज्यादा सतगुरु नानक पर आया और सतगुरु नानक को उन्होंने बाजू से पकड़कर जगा दिया तो जब सतगुरु नानक माता तृप्ता जी के साथ रसोई में बैठकर भोजन कर रहे थे तब एक रोटी थाली में थी और एक तवे पर थी और सतगुरु नानक ने अपनी माता तृप्ता जी की आंखों में से आंसू निकलते देखें तो सतगुरु ने रोटी को छोड़कर माताजी से पूछा कि माताजी दुखी होने का कारण बताएं तो सतगुरु नानक की माता ने कहा कि पुत्र और लोगों ने तो मजाक बनाना ही था लेकिन अब तेरी ऐसी विर्ती के कारण घर के नौकर भी मजाक बना रहे हैं यह तुलसा कह रही थी कि तेरा पुत्र समुंदर में डूब रहे जहाज को बचाने के लिए समुंदर में गया था तो यह सुनकर सतगुरु कहने लगे कि माता जी इस कमली के कहने पर आप भरोसा कर बैठे हो, इतना कहने की देर थी कि तुलसा संसार मैं कमली कहलाने लगी लेकिन सुरत ऐसी ऊपर उठी कि वह जितना समय इस संसार में रही उतना समय वह आत्मिक आनंद को जीती रही तो ये सब देखकर सतगुरु नानक की बहन बेबे नानकी जी ने एकांत में सतगुरु से कहा की छोटी सी गलती के कारण आपने उसको इतनी बड़ी सजा क्यों दी ? उसका इतना ही गुनाह था कि उसने बता दिया और बेबे नानकी जी सतगुरु नानक से कहने लगी कि वीर जी यह बताओ कि आप उस समय समुंदर में नहीं थे तो ये सुनकर गुरु जी कहने लगे बहन जी यह सब तो ठीक है लेकिन रब्बी भेद बाहर प्रकट नहीं करने चाहिए तो बहन नानकी ने तुलसा के लिए वास्ता पाया तो सतगुरु नानक ने कहा कि बहन जी मैंने इसको संसार के कमलों जैसा नहीं बनाया जबकि सुरत को ऊंचा कर चौथे पद की प्राप्ति करवा दी है साध संगत जी इसलिए सतगुरु अर्जन देव जी गुरु के चरण कमलों का महात्म बताते हैं कि जब शिष्य को गुरु ने अपनी चरणी लगा लिया तो उसे सहज ही परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है जिसको पूरे गुरु ने अपने चरणी लगा लिया उसको कोई भी तकलीफ और दुख नहीं आता वह जहां भी जाते हैं वही सुख पाते हैं क्योंकि जब परमात्मा को प्राप्त कर लिया तो हर जगह सुख ही सुख है क्योंकि प्रभु ने कृपा कर अपने स्वरूप में मेल लिया है इसलिए जो हरि परमेश्वर सदा ही शोभनिक है उसके गुणों को सदा ही गाना चाहिए ऐसे आप मन चित सभी फल पा लेंगे और यह आपकी आगे भी सहायता करने वाला होगा और जो परमात्मा है वह हमारे प्राणों का आसरा है हमने संत जनों के चरणों की धूल ग्रहण की है अथवा जिनके प्राणों का आसरा नारायण है उनके चरणों की धूल ग्रहण की है मेहर धारण कर स्वामी ने अपनी सिफत सलाह की दात बक्शी है दिन रात उसके नाम का सिमरन करने से प्राणी गर्भ में दोबारा प्रवेश नहीं करता और जिसको सिरजनहार स्वामी देता है केवल वही प्रभु के अमृत रस को अनुभव करता है मौत का दूत उसके नजदीक नहीं आता और गुरु की शरण से शिष्य को आनंद प्राप्त होता है, साध संगत जी आज के प्रसंग की यहीं पर समाप्ति होती है प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों कि क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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