साध संगत जी जब सच्चे पातशाह ! सतगुरु नानक जब करतारपुर नगरी में आ गए उसके बाद सतगुरु वहां से कहीं नहीं गए जितनी देर सतगुरु करतारपुर नगरी में रहे तो वहां पर सतगुरु रावी दरिया में स्नान कर उसके किनारे पर परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे और सतगुरु कुछ समय धर्मशाला में भी व्यतीत करते थे सतनाम का कीर्तन होता था ।
जिसको सुनकर सुंदर प्रेम पैदा होता था परमात्मा का रस उत्पन्न होता था तो सतगुरु का एक प्यारा सिख संगत में हुआ करता था जो सद्गुरु से बहुत प्रभावित था लेकिन वह किसी भ्रम में पड़ गया और वह रूहानियत के इस अनूठे भेद को समझ ना सका उसने ऐसा समझा कि जब सतगुरु नानक रात के समय रावी दरिया में जाते हैं तो वहां पर जा रखकर सतगुरु जल के देवता का सिमरन करते हैं और मन इच्छित फल मांग कर प्राप्त करते हैं उन्होंने वरुण देवता की बहुत सेवा की है इसलिए उनमें इतनी करामाते हैं इतनी शक्ति बढ़ी है विशाल करामात उसी से प्राप्त की है और सारे जगत की बुराई खत्म कर दी है अब मैं भी उनका सिमरन करूंगा और मुझे भी करामाते प्राप्त हो जाएंगी अलौकिक शक्तियां प्राप्त हो जाएगी इस तरह दिल में सोच कर उसने यह समझा और जब रात बीत गई तो वह भी दरिया के किनारे चला गया तो जब वह दरिया के किनारे जा रहा था तो रास्ते में उसको एक व्यक्ति मिला जिसके हाथ में वीणा थी तो उसने उसको देखकर पूछा कि तुम कौन हो और इस वक्त कहां जा रहे हो और उसने कहा कि तू कोई चोर डाकू है तो यह सुनकर उसने उत्तर दिया मुझे चोर या डाकू ना समझो मुझे सभी दरियाओ का मालिक जानो मेरा नाम वरुण पहचानो ! मैं श्री गुरु जी की पूजा करने जाता हूं हर रोज उनके दर्शन कर वापस आता हूं तो ये सुनकर भाई सेदो ने कहा कि मैंने तो कुछ और ही सोचा था कि शायद गुरु जी आपकी सेवा करते हैं जिसके कारण उन्होंने इतनी करामाते पाई है उन्होंने सभी रिद्धि सिद्धियां आप से ही प्राप्त की है इस तरह मैंने सोच रखा था और मैं आपकी सेवा करने चला था लेकिन आपने मुझसे मिलकर सब कुछ समझा दिया है अब मै अपने मन को क्यों भर्मो में डालूं तो ये सुनकर वरुण देवता ने कहा कि श्री गुरु नानक जी को आप गुणों की खान समझें उन्होने जगत के कल्याण के लिए और जगत के उद्धार के लिए अवतार धारण किया है खुद करतार ने देह धारण की है आप श्रद्धा धारण कर भ्रमों में ना पड़े इसलिए आप उनके चरण कमलों की सेवा करें यह सुनकर भाई सेदो तुरंत वहां पर गए जहां पर सतगुरु नानक बैठे हुए थे और जब वह सतगुरु नानक के पास पहुंचे तो सतगुरु नानक को नमस्कार कर उनके पास बैठ गए तो जब सतगुरु नानक ने भाई सेदो को देखा तो सतगुरु ने कहा कि तुम रात के समय क्यों आए हो आप तो सुबह के समय आया करते थे तो यह सुनकर भाई सेदो ने अपनी सारी कहानी सतगुरु नानक को बताइ और कहां कि हे प्रभु जी मैं आपका भेद नहीं जान सका इसलिए मैं मूर्ख मत वाला भ्रमों में पड़ गया था अब जाकर मैंने आप की महिमा जानी है तो सतगुरु ने उसकी सारी बात सुनकर अपने कोमल मुख से सुंदर वचन कहे तो गुरु जी के वचन सुनकर उसके मन में श्रद्धा बढ़ गई और वह सतगुरु की सेवा करने लगा तो वह गुरु जी के शब्द लिखकर विचार करता था और प्रेम के साथ सुनता था सतगुरु नानक सदा ही धर्मशाला में बैठते थे विशाल प्रेम पूर्वक कीर्तन होता था, देशों और विदेशों से लोग सतगुरु के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके दर्शन करने आया करते थे और वह बड़े ही प्रेम प्यार से सतगुरु के सुंदर वचनों को सरवन करा करते, जो लोग अपनी कामनाओं को लेकर सतगुरु नानक से मिलने आते थे उनकी सभी कामनाएं पूरी होती थी और जो लोग इच्छाओं से रहित, कामनाओं से रहित होकर आते थे उनको ज्ञान और सुख प्राप्त होता था तो ऐसे ही सदा ही करतारपुर में बहुत भीड़ रहा करती थी और संगत को भोजन करवाने के लिए लंगर चलता रहता था तो साध संगत जी एक दिन एक आदमी सतगुरु के पास आया सतगुरु करतार की मौज में बैठे हुए थे तो उसने सतगुरु नानक से सवाल किया कि मैं सिख बनु या फिर फकीरी करूं या फिर ग्रस्त धर्म को हृदय में धारण करूं जिस तरह आपकी आज्ञा होगी मैं वैसा ही करूंगा कृपया आप इस पर विस्तार पूर्वक मुझे समझाएं कि मैं क्या करूं मैंने आपकी बहुत महिमा सुनी है इसलिए मैं आपके पास आया हूं तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि पहले आप हमारा हुकमनामा लेकर यही पास के गांव में जाएं यहां पर हमारा एक सिख रहता है यह हुकमनामा लेकर आप उसके घर जाएं और जब आप उसके घर जाओगे तो उनसे 200 रूपए ले लेना और जब वह 200 रूपए दे देगा तब ही उसके घर का भोजन ग्रहण करना फिर जब तुम वापस आओगे तो इसका जवाब हम तब ही तुम्हें देंगे तो हुकमनामा लेकर और सतगुरु की आज्ञा पाकर वह जल्दी ही चला गया और वह उसके घर जा पहुंचा तो जब वह उसके घर पहुंचा तो वह जिस सिख का घर था वह बहुत गरीब था उन्हें कभी-कभी ही भोजन प्राप्त होता था और उस घर में वह सिख और उसकी भली स्त्री रहती थी और तीसरी उनके घर में एक लड़की भी थी जो उसकी बेटी थी तो जब उसने वह हुकुमनामा उसको दिया तो हुकमनामा लेते ही उसने बड़े ही प्रेम और प्यार से उसको अपने घर में पनाह दी बड़े ही आदर और सम्मान के साथ पलंग पर बिठाया और उसके चरणों को धोया और उसके बाद कहा कि कृपया भोजन ग्रहण करेंगे आप बहुत दूर से आए हैं और रास्ते की थकावट दूर करें तो उस सिख ने उसको वचन कहे कि गुरु जी का हुक्म है कि भोजन तब तक ग्रहण नहीं करना जब तक पूरा धन 200 रूपए नहीं ले लेते, पूरा धन लेने के बाद ही भोजन को ग्रहण करना है यह सुनकर वह सिख चुप हो गया और बड़ी चिंता में पड़ गया और सोचने लगा कि पैसे कहां से दूं और क्या करूं और मेरी यह सिखी कैसे कायम रहे क्योंकि घर में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसको बाजार में बेचकर धन प्राप्त कर लूं तो उसकी लड़की के बदले 1 शाह 500 रूपए देने के लिए तैयार था लेकिन उसको पाप का धन पहचान कर सिख पैसे ग्रहण नहीं कर रहा था तो जब दो घड़िया बीत गई तो उसकी पत्नी ने कहा कि आप चिंता क्यों करते हैं जो भी हमारे पास है वह सतगुरु ने ही दिया है आप हमारी लड़की को बेचकर अभी 200 रूपए ले ले और यह धन सतगुरु को दे दे अगर हम यह धन अपने लिए लेते तो हमें पाप लगना था लेकिन उपकार करने में कोई भी दोष नहीं है आप तुरंत यह काम करें और सिखी के प्रण को कायम रखें तो अपनी स्त्री की सलाह को सुनकर और उसकी अच्छी सलाह को मानकर मन में विचार किया और वह उस शाह के पास गया और उसने उसको कहा कि आप मुझे 200 रूपए देकर मेरी बेटी से शादी कर ले और उसे स्वीकार करें तो यह सुनकर शाह ने कहा कि आप इससे अधिक धन मुझसे ले ले और अपनी गरीबी को दूर करें और शंका रहित होकर सुखी जीवन व्यतीत करें तो ये सुनकर सिख ने कहा कि मुझे और पैसे नहीं चाहिए जितने मांगे गए हैं केवल उतने ही चाहिए इस तरह कह कर उसने 250 रूपए ले लिए और घर जाकर उस सिख को दे दिए तो इस तरह उसने 200 रूपए सतगुरु को दे दिए और बाकी के 50 रूपए उस सिख को भेट कर दिए तो उसके बाद उस सिख ने भोजन ग्रहण किया और वह भोजन ग्रहण कर बहुत प्रसन्न हुआ और उनको नमस्कार कर वह सतगुरु की तरफ चल पड़ा तो जब वह रास्ते में जा रहा था तो दोपहर का समय था तो उसने रास्ते में एक साधु को देखा तो वह उसके पास जाकर बैठ गया और वह बहुत थक गया था तब उसके पास एक बहुत बड़ा अमीर शाह व्यक्ति आया तो उस कृपालु शाह ने उनको साधु संत समझा और उनके आगे अच्छे पकवान लाकर रख दिए तो वह उन भेटों को वहां पर रखकर वहां से चला गया और उसके बाद वहां पर एक राही आ गया तो उसने उनके सामने पड़ा दोशाला छीन लिया और आगे चल पड़ा लेकिन संत ने कुछ नहीं बोला, उस शाह और चोर को बराबर समझा, देने वाले को भला नहीं कहा और लेने वाले को बुरा नहीं बताया जब वह दोषाला उसके पास आया तो उसने किसी प्रकार की खुशी नहीं कि जब उससे किसी ने वह दोषाला खो लिया तो उसने किसी प्रकार का दुख नहीं मनाया तो वह सिख वहां पर बैठकर सभी तमाशा देख रहा था और उसके बाद वह उठकर सतगुरु नानक की तरफ चल पड़ा तो चलते चलते शाम हो गई और आस पास कोई भी गांव नहीं था बल्कि जंगल था तो उसने एक वृक्ष के नीचे आराम करना ठीक समझा और उस वृक्ष के ऊपर दो पंछियों का निवास था तो जब चार घड़ी की रात बीत गई तो नर पंछी मादा पंछी को कहने लगा कि हमारे घर मेहमान आया है इसको उपहार देना चाहिए तो ऐसा विचार कर उन्होंने उड़ान भरी और अपनी चोंच में अग्नि को धारण कर उस सिख के पास लाकर रख दिया और छोटी-छोटी लकड़ियों को इकट्ठा कर एक तरफ रख दिया और जब सिख ने आग जलाई तो उसके बाद मादा पंछी उसमें गिर पड़ा और इस तरह नर पंछी भी उसमे गिर पड़ा तो ये सारा दृश्य देखकर वह गुरुजी की तरफ चल पड़ा और जब वह सतगुरु नानक के पास पहुंचा तो उसने वह धन सतगुरु नानक के आगे रख दिया और हाथ जोड़कर प्रणाम किया तो सतगुरु ने कहा कि आपको अब यकीन हो गया है जो आपने पूछा था तो यह सुनकर वह सिख ने कहा कि मुझे कुछ भी समझ नहीं आया कृपया मुझे विस्तार पूर्वक समझाएं तो ये सुनकर सतगुरु ने कहा जिसके घर तू गया था उस सिख का सभी कुछ गुरु का था और उसने अपनी लड़की को बेच कर धन लाकर तुझे दिया, सिख होकर अगर मन में लालच ना आए तो उस सिख जैसे बनो और परम गत पाओ और अगर तू फकीरी करनी चाहता है तो दिल में खुशी और गमी को छोड़ दो और रास्ते में तुमने एक संत को देखा था उस जैसी वृत्ति को अपनाओ, पदार्थ को पाकर वह खुश नहीं हुआ था और पदार्थ के जाने से वह दुखी भी नहीं हुआ अगर तू ग्रस्त धर्म धारण करना चाहता है तो उन पंछियों जैसा अपना आप बनाओ अतिथि के लिए उन्होंने दुख नहीं विचारा है बल्कि एक पल में ही अपना शरीर छोड़ दिया, यह तीनों ही अच्छे हैं आप उस तरह करें जैसा आपका दिल चाहता है तो ये सुनकर वह सिख धीरज खो बैठा और घबरा गया और उसने इन तीनों में से किसी भी अवस्था को धारण करना अपनी समरथा में नहीं माना और हाथ जोड़कर सतगुरु नानक से कहने लगा कि मेरे लिए यह तीनों ही बहुत कठिन है मैने ये तीनों ही कठिन जाने हैं मुझसे तो एक भी नहीं होना है और वह हाथ जोड़कर सतगुरु नानक से कहने लगा कि वे धन्य है और जब तक मुझसे यह हो नहीं पाएगा तब तक मैं आपकी शरण में हूं पापियों को तारना आपका धर्म है जगत के सभी लोग कह रहे हैं कि आप अपवित्रों को भी पवित्र करने आए हो तो आप कृपा धारण कर मेरी गति करें मैं बहुत बड़ा असमर्थ हूं तो उसकी ऐसे बातें जब सतगुरु ने सुनी तो सतगुरु ने मुख से वचन किया धर्म की कृत करो, दिल का सारा घमंड दूर करो मन को नीवा कर सिखों की सेवा करो और धीरे-धीरे तुम्हारी गति हो जाएगी तो सतगुरु के ऐसे वचन सुनकर वह उस तरह ही करने लगा, तो उसने सेवा के साथ बहुत प्रेम डाल लिया और सतनाम का सिमरन करा करता था और निरंकार से लिव लगने के कारण बुद्धि भी सुंदर हो गई और गुरु जी की कृपा से मुक्ति भी प्राप्त हो गई और जगत के जन्म मरण के कष्ट से उसको छुटकारा मिल गया इस प्रकार उपदेश देकर सतगुरु ने बहुत जीवो का उद्धार किया तो साध संगत जी आज के प्रसंग की यही पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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