साध संगत जी, हम जो साखियां आपको सुनाते हैं वह हमारे सतगुरों का इतिहास है हमारे गुरुओं ने हमें जो संदेश देना चाहा है उसको आपके सामने रखने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर भी हम में से कुछ लोग ऐसे हैं जो साखियों पर शंका करते हैं और प्रशन करते हैं साध संगत जी, अगर हमारी सुनाई हुई साखियों पर कोई प्रश्न करता है या फिर जिसके मन में कोई शंका आ जाती है तो ऐसा होने पर हमारे काम को पूरा नहीं माना जाता इसलिए हम वही साखियां और उपदेश आपके सामने रखते हैं जो इतिहासिक हैं और जिनका संबंध उन स्थानों से है जो आज भी मौजूद है, यहां बैठकर हमारे संत महापुरुषों ने उस अकाल पुरख की बंदगी की है उसके नाम का जप किया है, तो आइए आज की यह साखी बड़े ही प्रेम और प्यार से सरवन करते हैं ।
साध संगत जी, जब सतगुरु नानक के पिता ने सतगुरु नानक को खरा सौदा करने के लिए 20 रुपए दिए थे और उन्हें दूसरे गांव जाकर खरा सौदा करने के लिए कहा था तो सतगुरु ने उन 20 रुपयों का भोजन कुछ साधु महापुरुषों को करवा दिया था और जब ऐसा हुआ तो सतगुरु नानक को इस बात की खबर पहले ही हो गई थी कि अगर पिता मेहता कालू को इस बात की खबर हो गई कि मैंने उन 20 रुपयों का भोजन साधु महापुरुषों को करवा दिया है तो वह मुझे डांटेंगे तो सतगुरु नानक इसी बात के डर से एक जंगल में चले गए थे, सतगुरु घर नहीं गए एक जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए और जिस पेड़ के नीचे सतगुरु नानक बैठे थे वह पेड़ एक तंबू की तरह था और जिस स्थान पर वह पेड़ था आज वहां पर गुरुद्वारा तंबू साहिब जी बना हुआ है और यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के ननकाना साहिब में स्थित है, साध संगत जी सतगुरु नानक बचपन से ही मोह माया और दुनियादारी से दूर रहा करते थे और उनका ऐसा स्वभाव देखकर सतगुरु के घर वाले बहुत चिंता में रहते थे सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी तो बहुत चिंता में रहते थे कि पता नहीं मेरा लड़का ऐसा क्यों है वह दूसरे लड़कों जैसा क्यों नहीं है तो एक दिन सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी ने सतगुरु नानक को अपने पास बुलाया और कहा की हे नानक ! तू मेरा एकलौता लड़का है और मेरी आंखों का तारा है तेरे कारण मैं बहुत चिंता में रहता हूं मैं तेरे लिए बहुत चिंतित हूं क्योंकि तू दूसरों से अलग है मैंने तुझे जितने भी काम करने के लिए कहा है तूने मुझे मायूस ही किया है लेकिन मुझे टुझसे बहुत उम्मीद है कि तू एक दिन बहुत अच्छा व्यापारी बनेगा और अपनी कुल का नाम रोशन करेगा क्योंकि इस बार मुझे तुझ से बहुत उम्मीद है तो सतगुरु नानक ने अपने पिता मेहता कालू जी की बातें बहुत ध्यान से सुनी और सतगुरु नानक की माता भी वहां मौजूद थीं, उन्होंने ने भी सतगुरु को इसी प्रकार समझाया तो सतगुरु ने जवाब दिया पिता जी आप उदास और मायूस होते हैं लेकिन मेरे हाथ में कुछ भी नहीं है जो भी हो रहा है वह तो ईश्वर की रजामंदी से हो रहा है अगर कोई बात आपको बुरी लग रही है तो उसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूं इसके पश्चात आपने मुझे जैसा भी आदेश दिया है मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसका अच्छी तरह से पालन हो तो सतगुरु नानक के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें लगा कि मेरा बेटा अच्छे रास्ते पर है और उन्होंने सतगुरु नानक को शाबाश दी और कहा कि जाओ बेटा दूसरे शहर में जाओ मैं तुम्हें 20 रुपए देता हूं इसका खरा सौदा करकर आओ और उसको यहां पर लाकर मुनाफा कुमाऊं लेकिन एक बात का ख्याल रखना सौदा करते वक्त इस बात का ध्यान रखना कि हमें मुनाफा हो सके, जाओ दूसरे शहर जाओ और बाला को भी साथ ले जाओ इससे तुम्हें मदद मिलेगी और तुम यह सब आसानी से कर पाओगे तो सतगुरु नानक खरा सौदा करने के लिए भाई बालाजी के साथ निकल पड़े तो जब सतगुरु नानक भाई बालाजी के साथ खरा सौदा करने के लिए चल पड़े तो जिस रास्ते से होते हुए सतगुरु नानक और भाई बालाजी जा रहे थे उस रास्ते में एक बाग था और उस बाग में बहुत बड़े-बड़े पेड़ थे जिन पेड़ों पर कुछ साधु महापुरुष बैठे हुए थे कोई उल्टा लटका हुआ था कोई एक पाव पर खड़े होकर तपस्या कर रहा था और कोई बैठकर जप कर रहा था तो उनमें से एक मुखिया साधु भी थे तो सतगुरु नानक उनके पास चले गए और सतगुरु नानक ने वचन किए की हे महापुरुष ! यहां पर इतनी ठंड है और आप निर्वस्त्र है क्या आप यह सब अपनी मर्जी से कर रहे हैं या फिर आप किसी मजबूरी से यह सब कर रहे हैं और यहां पर तो कोई भोजन का प्रबंध भी नहीं दिखाई दे रहा तो सतगुरु नानक के ऐसे वचन सुनकर उस साधु ने कहा कि हे बालक ! हम भी तुम्हारी तरह थे हम भी किसी परिवार के सदस्य थे लेकिन हमने जाना कि यह सब मोह माया है यहां पर कुछ भी सत्य नहीं है तो इन्हीं बातों को लेकर हमने अपने परिवार का त्याग कर दिया दुनियादारी का त्याग कर दिया और हम यहां पर अपनी तपस्या के लिए आ गए ताकि तपस्या कर सत्य को जान सके, उसके भेद को खोला जा सके तो उनके मुख्य से ऐसे वचन सुनकर सतगुरु नानक कहने लगे कि आप इतने दिनों से यहां पर भूखे रह रहे हैं ? तो उन्होंने कहा हे प्रिय बालक हम भिक्षा में लिया हुआ खाना नहीं खाते हम वही खाते हैं जो ईश्वर की तरफ से हमें आता है हम किसी से मांगते नहीं है अगर मिल जाता है तो ठीक ! अगर नहीं मिलता है तो ईश्वर की मर्जी समझकर भूखे रहकर उसकी भक्ति करते हैं और आज हमारा भूखे रहने का सातवां दिन है अगर ईश्वर की मर्जी होगी तो वह हमें खाना भेज देगा तो उनके ऐसे वचन सुनकर सतगुरु नानक का मोम जैसा दिल पिघल गया और सतगुरु विचार करने लगे की ये 7 दिनों से भूखे हैं और यह किसी से भोजन मांगेंगे भी नहीं, क्यों ना किसी पास के गांव में जाकर इनके लिए भोजन का प्रबंध किया जाए ताकि इनको भोजन करवाया जाए तो सतगुरु नानक ने उस मुखिया साधु महापुरुष से कहा की हे संत जी ! अगर मैं आपके लिए भोजन लेकर आऊं तो आप भोजन करेंगे तो सतगुरु नानक के मुख्य से यह वचन सुनकर वह साधु महापुरुष कहने लगे हे बालक ! अभी यह पैसे तुम्हारे पिता ने तुम्हें दिए होंगे तुम हमारी चिंता मत करो हमें हमारे हाल पर छोड़ दो तो उनकी ऐसी बातें सुनकर सतगुरु नानक का दिल पसीज रहा था और सतगुरु विचार करने लगे की ये कितनी निष्ठा से परमात्मा में ध्यान लगाए बैठे हैं और 7 दिनों से भूखे बैठे हैं कि ईश्वर इन के लिए भोजन भेजेगा तो मै इन्हें भूखा छोड़कर कैसे जाऊं, मनुष्य की चार सबसे बड़ी पीड़ा है पहली पीड़ा अपनो से बिछड़ना, दूसरी भूख, तीसरी बीमार शरीर और चौथी मौत का इंतजार तो सतगुरु नानक ने अपनी जेब से 20 रुपए निकाल कर साधु महापुरुष के चरणों पर रख दिए और कहा कि यह पैसे मुझे आज ही मिले हैं कृपया आप इन्हें स्वीकार करें और भोजन ग्रहण करें तो सतगुरु नानक के ऐसा करने पर साधु महापुरुष ने कहा कि अभी तुम बालक हो लेकिन तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है तुम्हारे पिता ने अवश्य ही ये पैसे तुम्हें किसी और काम के लिए दिए होंगे अगर तुमने यह पैसे हमें दे दिए तो तुम्हारे पिता तुम पर बहुत नाराज होंगे तुम कष्ट मत उठाओ ईश्वर हमारी रक्षा करेंगे तो ये सुनकर सतगुरु नानक मुस्कुराए और कहने लगे कि हमारे शरीर में कष्ट सहने की क्षमता होनी चाहिए और दिमाग को यह सिखाना चाहिए कि कैसे दूसरों से प्यार किया जाए, सेवा की जाए और जो होना है वह अवश्य होकर रहेगा लेकिन अच्छे कार्य करने का समय बार-बार नहीं आता आप इन पैसों से अपना और अपने साथियों का भोजन लें और ग्रहण करें तो सतगुरु नानक के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर वह साधु महापुरुष कहने लगे कि अगर तुम इतना ही कह रहे हो तो ठीक है लेकिन हम यह पैसे नहीं लेंगे तुम इन पैसों से भोजन की सामग्री लेकर आओ हम भोजन यहां पर ही तैयार कर लेंगे तो ये कह कर वह साधु अपने ध्यान में लीन हो गए और सतगुरु नानक भोजन की सामग्री लेने के लिए बाजार चले गए, भाई बाला जी ने सतगुरु नानक को बहुत मना किया लेकिन सतगुरु नानक ने भाई बाला की एक बात नहीं सुनी तो जब सतगुरु नानक भोजन की सामग्री उन साधु महापुरुषों के पास लेकर आए तो उन्होंने अपनी आंखें खोली और उन्हें आभास हुआ कि गुरु जी कोई आम बालक नहीं है और उन्होंने यह वचन कहे कि हे ईश्वर ! हे ईश्वर ! अब हमें आभास हो गया है अब आप यहां से जाएं भोजन हम पक्का लेंगे तो जब सतगुरु वहां से चले गए तो एक साधु ने मुखिया साधु से पूछा कि हे महाराज ! यह बालक कितना नरम हृदय और संत स्वभाव का है इसे तो हमारे साथ यहां होना चाहिए आपने उसे यहां से जाने के लिए क्यों कहा तो उन्होंने इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि यह बालक गुरुओं का गुरु है ईश्वर ने इसे लोगों के कष्ट दूर करने के लिए भेजा है वह हमारे उधार के लिए नहीं आया, दुनिया के उद्धार के लिए आया है तो इसीलिए यह अच्छा नहीं होता कि हम इस बालक से अपनी सेवा करवाते तो दूसरी और तलवंडी जाते हुए भाई बालाजी को सतगुरु ने कहा की बाला अब हम पिताजी को क्या बताएं पिताजी इस बात के लिए कभी राजी नहीं होंगे कि जो हमने किया वह एक खरा सौदा था तो भाई बालाजी ने सतगुरु से कहा कि जो आपने किया इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है मैंने तो आपको रोका था लेकिन आप मालिक हैं और मैं नौकर हूं इसलिए मैं आपको रोकने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकता था तो उसके बाद भाई बालाजी अपने घर की ओर चले गए और सतगुरु नानक अपने घर की ओर चल पड़े तो रात हो गई थी तो सतगुरु नानक ने विश्राम किया तो उसके बाद जब सुबह हुई तो सतगुरु नानक के माता-पिता को इस बात की खबर हुई कि भाई बाला तो अपने घर जा चुके हैं लेकिन उनके पुत्र नानक अभी तक घर नहीं लौटे हैं तो सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी सतगुरु नानक की माता को कहते हैं कि हे नानक की माता भाई बाला तो कल रात को ही अपने घर आ गया है लेकिन हमारा बेटा घर क्यों नहीं आया नानक ने बाला को अपने साथ क्यों नहीं रखा ? क्या उसकी और बाला की कोई लड़ाई हो गई या फिर वह गुम हो गया है तो उसके बाद भाई बालाजी को बुलाया गया और भाई बालाजी ने अपने साथ हुई पूरी घटना को बताया तो सभी लोग गुरु जी को ढूंढने के लिए सूखे तलाव की ओर गए और वहां पर सतगुरु नानक ईश्वर के ध्यान में लीन हुए बैठे थे तो सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी ने उनका हाथ पकड़ कर उनको खड़ा कर दिया और कहने लगे कि ओ नानक तुम कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकते मुझे बताओ कि जो पैसे मैंने तुझे व्यापार करने के लिए दिए थे वह कहां है मुझे बताओ जो पैसे मैंने तुझे खरा सौदा करने के लिए दिए थे वह कहां है ? तो सतगुरु ने कहा कि उन पैसों का साधु महापुरषों को भोजन कराकर मैंने खरा सौदा कर दिया है तो सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी को इतना क्रोध आया कि उन्होंने सतगुरु नानक पर हाथ उठा दिया तो सतगुरु नानक चुपचाप खड़े रहे लेकिन उनकी आंखों से आंसू टपक रहे थे तो इसी बीच राय भुल्ला को पूरी घटना का पता चला और उसने कहा कि मेरे राज मे यह क्या अनर्थ हो रहा है एक दिव्य आत्मा पर इतना अत्याचार हो रहा है जाओ अभी जाओ कालू और नानक को मेरे पास यहां लेकर आओ तो सतगुरु नानक अपने पिता के साथ वहां पर पहुंचे तो राय भुल्ला को सतगुरु नानक के दिव्य होने का आभास था तो राय भुल्ला ने सतगुरु नानक से कहा कि नानक मुझे क्षमा करना मेरे राज्य में तुम पर इतना अत्याचार हो रहा है और उसके बाद राय भुल्ला ने मेहता कालू जी को कहा कि हे कालू तुम बहुत ही निर्दई हो तुम्हें यह नहीं पता कि तुम्हारे घर संत पैदा हुआ है तुम्हें ईश्वर का जरा भी डर नहीं है उसके बाद मेहता कालू जी कहने लगे कि राय साहब आप मेरे मालिक है मैं आपसे बहस नहीं कर सकता मैंने नानक को व्यापार करने के लिए पैसा दिया था खरा सौदा करने के लिए पैसा दिया था अगर यह पैसा कमा कर दान में देता तो मुझे कोई आपत्ति नहीं थी परंतु इसने तो मेरे द्वारा दिया हुआ धन ही दान में दे दिया इसलिए मैं इस पर क्रोधित हुआ और इस पर हाथ उठाया तो ये सुनकर राय भुल्ला ने मेहता कालू जी को कहा कि तुमने नानक को पैसे व्यापार करने के लिए दिए थे खरा सौदा करने के लिए दिए थे लेकिन इसने उन पैसों का भोजन साधु महापुरुषों को करवा दिया और यह कहा जाता है कि अगर तुम दान करते हो तो उसका 10 गुना तुम्हे इस जन्म में दिया जाता है और उसका 70 गुना अगले जन्म में मिलता है तो इसीलिए जो नानक ने किया उससे खरा सौदा और कोई हो ही नहीं सकता उसके बाद राय भुल्ला ने मेहता कालू जी को कहा कि ये लो जो 20 रुपए तुमने नानक को दिए थे तो सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू कहने लगे कि मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूं तो राय भुल्ला ने कहा कि मैंने नानक से कर्ज लिया था वही चुका रहा हूं तो मेहता कालू जी कहने लगे कि परंतु नानक ने तो कभी कमाया ही नहीं तो आप उनसे कर्ज कैसे ले सकते हैं तो राए भुल्ला ने कहा कि नानक ईश्वर का रूप है मेरे पास जो कुछ भी है वह इसी की देन है तो इसके पश्चात सतगुरु नानक और मेहता कालू जी घर चले गए तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु नानक ने अपने पिता द्वारा दिए गए 20 रुपयों का खरा सौदा किया था और सतगुरु के इस कर्म से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें भी अगर किसी की सेवा करने का मौका मिले तो हमें कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए बढ़-चढ़कर जरूरत मंदों की सेवा करनी चाहिए सतगुरु नानक के किए हुए इस खरे सौदे से आज जगह जगह लंगर लगाए जाते हैं भूखों का पेट भरा जाता है क्योंकि हमारे गुरु का हमे उपदेश है कि जरूरतमंदों की सेवा करो, किरत करो, नाम जपो तो साध संगत जी आज की साखी यहीं पर समाप्त होती है जी साखी सुनाते हुए अनेक भूलों कि क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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