Guru Nanak Sakhi । जब सज्जन ने सतगुरु नानक को खाने में जहर देकर मारने की कोशिश की तो क्या हुआ ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी की है जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ सैदपुर की यात्रा के लिए गए थे और उन्होंने सज्जन ठग की सराव में विश्राम किया था तब आप जी ने सज्जन ठग को क्या उपदेश दिया आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी आज की साखी शुरू करने से पहले आज की शिक्षा है परमात्मा सारे संसार का मूल है और वह हर एक युग में मौजूद है यानी कि वह भूतकाल में भी था वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगा और उस परमात्मा के गुणों का किसी ने भी अंत नहीं पाया है और वह हर जीव में एक रस व्यापक है साध संगत जी सभी धर्मों ने परमात्मा को इस तरह बताया है जैसे जंगल में चंदन का पौधा होता है और उसकी संगत से साधारण वृक्ष भी चंदन बन जाते हैं वैसे ही वह परमात्मा सभी जीवो का मूल है सभी जीवन का आधार है उस की संगत में साधारण मनुष्य भी गुणवान बन जाता है हे परमात्मा ! तूं पारस है मैं तेरी संगत से सोना बन गया हूं तू दया का घर है और भक्त नामदेव जी कहते हैं कि मैं सदा स्थिर रहने वाले प्रभु में लीन हो गया हूं और जो परमात्मा का नाम जपते हैं उनमें भी उस प्रभु परमेश्वर जैसे गुण पैदा हो जाते हैं जिस प्रकार पारस को रगड़ने से लोहा भी सोना बन जाता है साध संगत जी एक बार सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ सैदपुर की यात्रा के लिए दक्षिण की ओर निकले और गांव दर गांव होते हुए सतगुरु एक ऐसी जगह पहुंचे जहां पर एक सराय बनी हुई थी और उस सराय के एक तरफ मस्जिद थी और दूसरी तरफ मंदिर था और उस सराय के अंदर बहुत सारे कमरे थे और उस सराय के नजदीक एक कुआं था और वह ऐसा लग रहा था जैसे कि उसे छिपाया गया हो तो साध संगत जी जब सतगुरु नानक ने उस सराय के अंदर पांव रखा तो अंदर से दो नौकर निकल कर बाहर आए तो उन्होंने सतगुरु नानक का विनम्रता पूर्वक सम्मान किया और हाथ जोड़कर उनको प्रणाम किया और उनमें से एक नौकर सतगुरु नानक को कहने लगा कि आप महापुरुष लगते हैं आपके चेहरे का तेज देखकर लगता है कि आप एक बड़े महापुरुष हैं तो इतने में दूसरा नौकर भी सतगुरु नानक की प्रशंसा करने लग गया और वह दोनों सतगुरु नानक को सराय के अंदर आने के लिए कहने लगे और कहने लगे कि यह सराय आपकी ही है आप अंदर आए और यहां आकर विश्राम करें तो ये सुनकर भाई मरदाना जी सोचने लगे कि गुरु जी ने आज तक सराय में निवास नहीं किया लेकिन आज पता नहीं सतगुरु यहां पर क्यों आए हैं उनकी क्या लीला है उनकी लीला वही जाने तो साध संगत जी सतगुरु से भला कौन सी बात छिपी रह सकती है तो उन्होंने भाई मरदाना जी के अंदर चल रही बातें पढ़ ली और सतगुरु ने कहा कि मर्दाना चिंता मत करो सभी घर ईश्वर के घर है अगर यह नहीं है तो बन जाएगा तो साध संगत जी सतगुरु उस सराय के अंदर चले गए और उनको एक अच्छा कमरा दिया गया और उनको विश्राम करने के लिए कहा गया तो जब सतगुरु सराय के अंदर विराजमान हो गए तो वह दोनों नौकर वहां से चले गए और उसके कुछ देर बाद लंबा चौड़ा आदमी सतगुरु के पास आकर सतगुरु को प्रणाम करता है और कहता है कि आपका मेरी इस सराए में स्वागत है यह भगवान का घर है मेरी इस सराय को अपना समझे और मेरी यह सराय संतों और फकीरों के लिए सदा ही खुली है और उनकी सेवा कर मै प्रसन्न होता हूं तो इतने में ही वह दो नौकर भी आ गए उनके हाथ में गर्म पानी का कटोरा था तो उन्होंने सतगुरु नानक को कहा कि हम आपके पांव को धुल देते हैं तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि नहीं मुझे यह पसंद नहीं कि कोई मेरे पाव धुले मैं ऐसे ही आराम में हूं तो उसके बाद सतगुरु नानक ने उस लंबे चौड़े आदमी जिसका नाम सज्जन था सद्गुरु उसे पूछते हैं कि श्रीमान आप कौन है तो जवाब देते हुए वह कहता है कि मैं सबका मित्र हूं तो ये सुनकर सतगुरु नानक कहते हैं कि सबका मित्र तो वह परमपिता परमेश्वर है तब सतगुरु के मुख से यह वचन सुनकर सज्जन कहता है कि मैं तो सब का नौकर हूं और मेरा नाम सज्जन है तो उसके बाद सतगुरु कहते है कि आगे क्या लगाते हो : दास, राम या लाल तो ये सुनकर उसने कहा कि मुस्लिम मुझे सज्जन शेख़ कहते हैं और हिंदू मुझे सज्जन राम कहते हैं वैसे मैं दोनों का सेवक हूं तो साध संगत जी इतने में ही भाई मरदाना जी सोचने लग गए कि इस सराए में कोई न कोई बात तो जरूर है क्योंकि इस सराए में सभी जगह डर का वातावरण है फिर चाहे ये सराय कितनी ही अच्छी क्यों न हो लेकिन यहां पर कुछ भी ठीक नहीं लग रहा, यहां पर कोई ना कोई गड़बड़ तो जरूर है तो उसके बाद सज्जन और उसके दोनों नौकर वहां से चले गए साध संगत जी जब सतगुरु उस सराय से बाहर आए तो उन्होंने देखा कि सज्जन नमाज पढ़ रहा है और उसके कुछ देर बाद ही वह मंदिर में पूजा कर रहा है तो उसके बाद सज्जन सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी के लिए भोजन लेकर गया तो भोजन को देखकर सतगुरु नानक ने कहा कि हमारा भोजन करने का मन नहीं है तो ये सुनकर सज्जन ने कहा कि आप मेरे मेहमान हैं और मेहमान भगवान के समान होते हैं अगर आप भोजन नहीं करोगे तो मुझे पाप लगेगा तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा तुम्हें पाप नहीं लगेगा लेकिन अगर तुम हमें भोजन करवा दोगे तो तुम्हें पाप लगेगा तो ये सुनकर सज्जन तुरंत बोला कि आप खाना क्यों नहीं खा रहें है आप अपने मन में किसी तरह की बात ना सोचे और कोई वहम ना करें मैं हिंदू हूं मस्जिद में तो मैं इसलिए गया था क्योंकि यहां का शासक मुस्लिम है और हमें उसे खुश रखना पड़ता है तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि सज्जन तुम्हें संतो की आज्ञा का पालन करना चाहिए और सतगुरु नानक भाई मरदाना जी को कहने लगे कि हे भाई मरदाना क्या आपको भूख लगी है तो भाई मरदाना जी ने कहा कि गुरु जी वैसे तो मुझे बहुत जल्दी भूख लग जाती है लेकिन आज पता नहीं क्यों मुझे बिल्कुल भी भूख नहीं है पेट में तनिक भी जगह नहीं है तो ये सुनकर सज्जन ने कहा कि ठीक है जैसी आपकी मर्जी और उसके बाद वह कहने लगा कि आप खाना तो नहीं खा रहे लेकिन आप दूध पी सकते हैं क्या मैं आपके लिए दूध लेकर आयूं तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि हमारा कुछ भी सेवन करने का मन नहीं है जाओ सज्जन ! जाकर आराम करो और सतगुरु ने कहा कि कभी-कभी मछली पकड़ने वाले के जाल में मगरमच्छ फस जाता है तो इतना सुनते ही सज्जन ने कहा कि आप अवश्य ही मेरे बारे में बुरा सोच रहे हैं और वह घबरा गया और उसके बाद वह अपने नौकरों से बातचीत करने लगा और उनसे कहने लगा कि आपको क्या लगता है कि यह इंसान कौन हो सकता है कोई सेठ है संत है या फिर कोई जासूस है तो ये सुनकर उनमें से एक नौकर बोला कि मेरे हिसाब से यह संत है और उन्होंने उपवास किया हुआ है और हमें उनके पास से कोई भी धन दौलत नहीं मिलेगी हम लोगों को उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए तो इतना सुनते ही दूसरे नौकर ने कहा कि नहीं नहीं तुमने देखा नहीं उनके चेहरे पर कितना नूर है ऐसा नूर तो किसी धनी व्यक्ति के चेहरे पर ही आ सकता है तो उन दोनों की बातें सुनकर सज्जन सोचने लगा कि मानो ना मानो अवश्य ही ये कोई जासूस है और वह उन दोनों नौकरों से कहने लगा कि हमारे लिए यही अच्छा होगा कि हम उनको मार दें और यहीं पर दबा दें यह जरूर ही कोई जासूस है साध संगत जी वहां पर एक महिला भी थी जिसने उनकी सारी बात सुन ली और वह उनको कहने लगी कि वैसे तो आप दोनों मुझे मूर्ख मानते हैं लेकिन मैं आपको बता देती हूं वह कोई सामान्य पुरुष नहीं है जरूर वह कोई सिद्ध पुरुष है और वह कहने लगी कि मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि जब मैं उनके पास गई थी तो मैंने उनको कहा था कि आपको देखकर मुझे सहानुभूति हो रही है तो उन्होंने मुझसे कहा कि अगर तुम हमसे सहानुभूति ना भी करती तो भी ईश्वर सहानुभूति करेंगे और वह कहने लगी अब आप इस बात से खुद ही समझ जाओ कि कोई सामान्य पुरष ऐसी बातें नहीं कर सकता वह जरूर ही कोई सिद्ध पुरष है तो उस महिला की बातें सुन सज्जन ने कहा कि पता नहीं तुम कैसी बातें कर रही हो आज के जमाने में कोई भी भगवान का अवतार नहीं होता सभी अपने बारे में सोचते हैं अपना फायदा सोचते हैं इस जमाने में अगर कोई अच्छा व्यक्ति था तो वह मैं था और तुम लोग थे हमने संसार का इतना भला किया लेकिन हमें क्या मिला इस समय के हिसाब से मैंने यह निष्कर्ष निकाला है कि जो जितना बड़ा पापी है वह उतना ही बड़ा आदमी है और वह कहने लगा कि यह बात मैं नहीं मानता कि कोई संत होता है या कोई अवतार होता है लेकिन पता नहीं आज मेरा दिल भी डर रहा है तो ये सुनकर वह महिला कहने लगी कि आपको जैसा अच्छा लगे वैसा करो मेरा जो फर्ज था मैंने तुमको बता दिया तो ये सुनकर सज्जन ने कहा कि तुम चुप करो आज हम उनका सारा धन लूट लेंगे और उन्हें वैसे ही मार देंगे जैसे सैकड़ों लोगों को मारा है और उन्हें मार कर अपने खुफिया कुएं में डाल देंगे और ये सोचकर सज्जन ने कहा कि अगर धन मिलेगा तो अच्छी बात है अगर नहीं तो यहां पर 100 मरे हैं वहां पर 102 हो जाएंगे तो साध संगत जी जब रात हो गई तो सज्जन अपने कमरे में जाकर सोने की तैयारी कर रहा था और जैसे ही उसने आंखें बंद की तो उसे डर लग रहा था और ऐसे लग रहा था कि जैसे वह रात उसके लिए निकालनी मुश्किल हो रही थी तो इतने में ही उसकी आंख लग गई तो फिर उसने वह देखा जिसने उसकी जिंदगी ही बदल दी उसने उन सभी व्यक्तियों को देखा जिन्हें उसने मारा था, दूसरी और भाई मरदाना जी ने भजन गाना शुरू किया "कर्म जो तूने किये है बुरे फल उनका तू पाएगा, क्या लाया था सज्जन तू और क्या लेकर जाएगा, बहन का तू भाई मारा, किसी की मां का बेटा प्यारा, बच नहीं तू पाएगा, क्या लाया था सज्जन तू और क्या लेकर जाएगा, नेकी की राह पर चलता था, बन गया क्यों हत्यारा, गुरु के चरणों में तू झुक जा, पाप करेंगे माफ़ तुम्हारा, गुरु का नाम है सबसे प्यारा, नया जन्म दिलवाएगा क्या लाया था सज्जन तू और क्या लेकर जाएगा"  तो साध संगत जी सतगुरु की ऐसी कृपा हुई कि सज्जन की आंखों में पश्चाताप के आंसू आ गए और उसने सभी बुरे काम छोड़ दिए और गलत ढंग से कमाया हुआ पैसा गरीबों में बांट दिया ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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