साध संगत जी आज की साखी शुरू करने से पहले आज की शिक्षा है कि जो तन मन और धन से गुरु घर की सेवा करता है उसका परमार्थ और स्वार्थ दोनों संवर जाता है वह मालिक उसे किसी भी चीज की कमी नहीं रहने देता जब कोई निष्काम होकर सेवा करता है अपने मन में किसी लालच को ना रखकर निष्काम होकर संगत की सेवा करता है गुरुघर की सेवा करता है तो वह मालिक उसकी झोली खुशियों से भर देता है और निष्काम होकर की गई सेवा ही परवान होती है हे भाई ! अगर तू सेवा करना चाहता है तो गुरु की कर और गुरु की संगत की कर जिससे कि गुरु खुश होगा और अगर गुरु खुश हो गया तो समझो हमारा पार उतारा हो गया जिसने गुरु को खुश कर लिया उसने सारे जहान को खुश कर लिया परमार्थ के इस मार्ग पर गुरु की खुशी सर्वप्रथम है और जब गुरु रूठ जाता है तब शिष्य की क्या हालत होती है बुल्ले शाह जी इसकी उदाहरण है इसलिए हे भाई अगर तू रूहानियत के इस मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता है तो गुरु के हुक्म को मानकर उसके उपदेश पर चल और उसकी सेवा कर और उसके हुकुम में रहकर जीवन व्यतीत कर तब जाकर तेरा उद्धार हो सकता है तब जाकर गुरु तेरा उद्धार करेगा इस संसार से तेरे जन्म मरण के चक्कर को खत्म करेगा तुझे मुक्ति बक्शे गा ।
साध संगत जी ये साखी चौथी पातशाही श्री गुरु राम दास जी महाराज के समय की है जब अमृतसर मे श्री हरिमंदिर साहब जी की सेवा चल रही थी, उस वक्त बहुत संगत सेवा कर रही थी, संगत बड़े प्रेम प्यार से गुरु घर की सेवा मे मस्त थी, साध संगत जी, उस संगत में उस समय का राजा भी सेवा के लिए आता था, गुरु साहिबान उस राजा को देख कर मंद मंद मुस्कुराते रहते थे, जब वह राजा सेवा किया करता था तब सतगुरु उसे देख कर मुस्कुराते रहते थे और ऐसा लगातार तीन-चार दिन होता रहा, फिर एक दिन राजा गुरू साहिबान के पास चला गया और उसने गुरु साहिबान से पूछा " हे सच्चे पातशाह ! आप हर रोज मुझे देख कर मुस्कुराते है ऐसा क्यो " तब गुरु साहिबान ने बङे प्यार से राजा की तरफ देखा, और उन्हें एक छोटी सी बात सुनाई एक छोटी सी कहानी सुनाई, सत्गुरु ने फरमाया हे राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक दिन संगत इसी तरह सेवा कर रही थी, पर उस सेवा में कुछ दिहाडी़ दार मजदूर भी थे, जो संगत निष्काम भावना से सेवा करती थी, उन सारी संगत को गुरू साहिबान, शाम को दर्शन देते थे, एक दिन उस दिहाडीदार मजदूर ने सोचा कि क्यों ना मैं भी बिना दिहाड़ी के आज सेवा करूं, एक दिन निष्काम होकर सेवा करू तो उसने यह बात अपने परिवार से की, कि मै गुरु घर निष्काम होकर सेवा करना चाहता हूं तो परिवार ने कहा कोई बात नहीं, आप सेवा में जाओ, एक दिन हम दिहाड़ी नहीं लेंगे, हम भूखे रह लेंगे, लेकिन एक दिन हम सेवा को जरूर देंगे, उस समय वह मजदूर दिन में जो मजदूरी करके कमाता था, उसी से उसका घर चलता था, यह बात सुना कर गुरू साहिबान चुप कर गए, यह सुन कर राजा सोच में पड़ गया और हाथ जोड़कर गुरु साहिबान से प्रार्थना करने लगा कि हे सच्चे पातशाह ! आपने जो कहा वह ठीक है लेकिन आप मुझे देख कर मुस्कुराते हैं, इसका क्या राज है..? तो गुरु साहिबान ने फिर मुस्कुराते हुए, उसको जवाब दिया : हे राजन ! पिछले जन्म में वो मजदूर तुम थे, यह सुनकर राजा अचेत सा हो गया कि उस एक दिन की सेवा का मुझे यह फल मिला कि, इस जन्म में मुझे राजा का जन्म मिला और उसने अपने आप को सतगुरु के सामने झुका दिया और सतगुरु को प्रणाम किया तो साध संगत जी सेवा का फल, एक ना एक दिन जरूर मिलता है, सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती, चाहे ज्यादा की गई हो चाहे कम कि गई हो, जो सेवा हम हृदय से निष्काम भाव से करते हैं, वह हमारे लेखे मे लिखी जाती है और उसका फल हमें जरूर मिलता है, निष्काम भाव से कि गई सेवा का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता, इसलिए हमें भी निष्काम भावना से सेवा करनी चाहिए, ताकि वह सेवा मालिक के दरबार मे प्रवान हो सके ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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