साध संगत जी आज की साखी सतगुरु तेग बहादुर जी की है जब श्री गुरु हरकृष्ण जी महाराज जी ने अपनी देह त्यागी थी और सतगुरु ने सिखों के नौवें गुरु होने का संदेश बाबा बकाला में दिया था और बकाला में इस बात को लेकर भ्रम बहुत बढ़ गया था और हर कोई अपने आप को सिखों का गुरु बता रहा था तो उसके बाद सतगुरु तेग बहादुर जी ने अपने आप को सिखों का नौवां गुरु कैसे अवगत करवाया आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी सिखों के आठवें गुरु सतगुरु हरकृष्ण जी साहिब से जब सिखों ने पूछा कि उनके नौवें गुरु कौन हैं तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा " बाबा बसे गांव बकाला" क्योंकि सिखों में बाबा शब्द का अर्थ गुरु होता है और दादा को भी बाबा कहा जाता है तो साध संगत जी जब सतगुरु ने यह वचन कहे थे उसके बाद सिखों में इस बात को लेकर भ्रम फैल गया था और इसी भ्रम का फायदा उठाकर कुछ नकली गुरुओं से बकाला गांव भर गया था तो साध संगत जी इस बात को लेकर सभी सिक्खों में यह समस्या उत्पन्न हो गई थी कि इतने सारे गुरुओं में से असली गुरु को कैसे पहचाने, अपने गुरु को कैसे ढूंढे और यह स्थिति लगभग 4 महीने तक चली थी तो उसके बाद दिल्ली में से कुछ सिख सतगुरु तेग बहादुर जी से मिलने आए और उनको चल रही इस परिस्थिति के बारे में बताने आए उन्हें अवगत करवाने आए तो जब वह सिख सतगुरु तेग बहादुर जी से मिले तो उन्होंने सतगुरु के आगे फरियाद की कि हे साहिब ! इस परिस्थिति को लेकर बहुत भ्रम पैदा हो गया है यहां पर तो हर कोई हमें अपना गुरु बता रहा है हम यह बात कैसे माने हम इसे कैसे स्वीकार करें कि हमारा गुरु कौन है हम आपकी मदद से इस समस्या को हल करना चाहते हैं उसके बाद वह कहने लगे कि हमारे पास वह सामग्री है जो श्री गुरु हरकृष्ण जी महाराज जी ने हमें दी थी और इसलिए दी थी ताकि आप इसे कबूल करें और हमारे गुरु बनकर अपना आशीर्वाद हमें दें तो साध संगत जी सतगुरु तेग बहादुर जी श्री हरकृष्ण जी महाराज जी की दी हुई सामग्री को कैसे अस्वीकार कर सकते थे तो उन्होंने सतगुरु की सामग्री को स्वीकार किया और उन्होंने उन सिखों से कहा कि इस रहस्य को रहस्य ही बना रहने दें की असली गुरु कौन है क्योंकि मैं नहीं चाहता कि गुरु गद्दी पर बैठ कर वातावरण को दुविधा ग्रस्त कर दिया जाए एक समय आएगा जब झूठे अपने आप ही भाग जाएंगे तो साध संगत जी इस तरह सतगुरु तेग बहादुर जी चार-पांच महीने तक बिल्कुल शांत रहे और संगत अपने गुरु को ढूंढने के लिए इधर उधर जाती रही कि श्री गुरु हरकृष्ण जी महाराज के बाद हमारा गुरु कौन होगा और कौन हो सकता है तो ऐसे कोई किसी गुरु के सामने माथा टेकता था और कोई किसी गुरु के सामने माथा टेकता कोई किसी को भेंट देता और कोई किसी को और इसी तरह समय बीता तो 1 दिन श्री गुरु नानक देव जी और उनके पंथ में विश्वास रखने वाला एक व्यापारी जो देश और विदेशों में अपने माल का आयात और निर्यात करता था और समुद्री जहाज के माध्यम से दूसरे देशों में अपने माल को बेचता था और आयात और निर्यात करता था तो 1 दिन उसका जहाज समुंदर में रास्ता भटक गया और चट्टानों में फस गया तो कुछ देर बाद तूफान थम गया और जहाज रेत में फस गया तो जहाज में मौजूद सभी कर्मचारियों ने और मल्लाहओ ने जहाज को फिर से पानी में उतारना चाहा लेकिन जहाज में अधिक वजन होने के कारण जहाज टस से मस नहीं हुआ और वहां पर सभी मायूस हो गए तब व्यापारी हाथ जोड़कर अरदास करने लगा कि मैं गुरु चरणों में अरदास करता हूं और मुझे पूरा विश्वास है कि करतार हमारी जरूर मदद करेंगे और वह कहने लगा की गुरु हमारी सहायता करो ! हे गुरु हमारी सहायता करो ! तो ऐसे ही सभी ने गुरु चरणों में प्रार्थना की और व्यापारी बोला की हे गुरु महाराज मैं आपके आगे अरदास करता हूं कि मेरे जहाज को फिर से पानी में उतार दो और लाभ की राशि में से मैं धन का दसवां हिस्सा आपके चरणों में अर्पित करूंगा तो ऐसा बोल कर व्यापारी ने सभी के साथ फिर से जहाज को समुंदर में उतारने की कोशिश की तो ऐसे गुरु के आशीर्वाद से वह जहाज पानी में दोबारा उतर गया तो कार्य समाप्त होने के बाद वह व्यापारी दिल्ली पहुंचा ताकि वह सतगुरु हरकृष्ण जी महाराज को दिया हुआ अपना वचन निभा सके और अपनी राशि में से धन का दसवां हिस्सा उन्हें अर्पित कर सकें तो जब वह सतगुरु हरकृष्ण जी के पास दिल्ली गया तो वहां पर उसे कुछ सेवकों ने बताया कि भाई साहब जी सतगुरु हर कृष्ण जी ने तो अपनी देह त्याग दी है अब आपको नौवें गुरु बकाला में मिलेंगे तो ऐसे व्यापारी मक्खन साहब बकाला में पहुंचे तो वहां पर जब उनकी मुलाकात कुछ गुरुओं से हुई तो व्यापारी मक्खन शाह ने उनसे पूछा कि सिखों के नौवें गुरु कहां है तो वहां पर मौजूद हर कोई यह कहने लगा कि मैं हूं सिखों का नौवां गुरु तो कोई कहने लगा मैं हूं तो इन सब बातों को देखकर व्यापारी मक्खन शाह ने सोचा कि यह सब गुरु कम और मांगने वाले ज्यादा लगते हैं क्योंकि गुरु तो दाता होता है वह न किसी से कुछ मांगता है और ना ही किसी के आगे अपना हाथ फैलाता है और वह कहने लगा कि मैं अपनी धन राशि में से दसवां हिस्सा इन को अर्पित नहीं कर सकता और अगर मैंने यह धन अपने गुरु को नहीं चढ़ाया तो यह बहुत बड़ी नासमझी होगी और वह सोचने लगा कि मुझे कोई युक्ति लगानी होगी ताकि मैं यह दसवंद सही गुरु तक पहुंचा सकूं और वह सोचने लगा कि मुझे यहां पर सभी गुरुओं की परीक्षा लेनी चाहिए और यह जानना चाहिए कि असली गुरु कौन है तो ऐसे वह सभी के सामने दो मोहरे रखता गया तो जब उसने दो दो मोहरे सभी के आगे रख दी और किसी ने भी उसे अस्वीकार नहीं किया तो वह सोचने लगा कि यह कैसे हो सकता है यहां पर तो सभी ने मेरे द्वारा दी हुई मोहरे स्वीकार कर ली और किसी ने भी अस्वीकार नहीं की और वह कहने लगा कि नहीं इनमें से कोई भी मेरा गुरु नहीं हो सकता तो वहां पर एक बालक बैठा हुआ था तो मखन शाह ने उस बालक से कहा कि ओ बच्चे यहां पर कोई और गुरु भी है तो उस बालक ने कहा कि यहां पर एक व्यक्ति तो है जो गुरु परिवार से हैं लेकिन वह अपने आप को सिख गुरु नहीं कहते और ना ही वह किसी से मिलते हैं तो व्यापारी मक्खन शाह ने उस बालक से कहा कि तुम मुझे उनसे मिलवा दो तो ऐसे वह बच्चा व्यापारी मक्खन शाह को लेकर वहां पहुंचे जहां पर सतगुरु तेग बहादुर जी रहते थे और जब वह सतगुरु तेग बहादुर जी के पास पहुंचे तो वहां पर व्यापारी की मुलाकात माता नानकी जी से हुई तो उन्होंने बताया कि उनका पुत्र ध्यान में लीन है तो उसके बाद व्यापारी मक्खन शाह नीचे पहुंचा और उसने देखा कि सतगुरु तेग बहादुर जी समाधि अवस्था में है तो मखन शाह ने सतगुरु के आगे सिर झुका कर उनको प्रणाम किया और उनके सामने भी दो मोहरे अर्पित कर दी तो सतगुरु तेग बहादुर जी ने अपनी आंखें खोली और सतगुरु ने वचन किए कि तुमने वह नहीं किया जो तुमने कहा था यह दसवंद की पूरी राशि नहीं है और सतगुरु कहने लगे कि तुम हमारे कंधे पर पड़ी चादर उठा कर देखो हमारे कंधों पर अभी भी उन कीलों के निशान हैं जो कीलें हमें तब लगी थी जब हमने तुम्हारा जहाज अपने कंधों पर उठाया था और सतगुरु कहने लगे कि हमें धन नहीं चाहिए लेकिन तुम्हें यह भ्रम भी नहीं होना चाहिए कि कोई पूर्ण गुरु है ही नहीं, तो इस प्रकार व्यापारी मक्खन शाह को पूरा यकीन हो गया कि सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ही है, सतगुरु नानक का नौवां स्वरूप सतगुरु तेग बहादुर जी ही है और उसने दसवंद की पूरी राशि सतगुरु तेग बहादुर जी के चरणों में रख दी और सतगुरु ने उससे कहा गुरु गद्दी कोई प्रभुता का चिह्न नहीं है बल्कि यह तो एक महान जिम्मेदारी है तो ये सुनकर मक्खन शाह ने सतगुरु से कहा की सतगुरु अगर आप ऐसे ही छिपे रहे तो सिख भटक भटक कर दिशाहीन हो जाएंगे, श्रद्धाहीन हो जाएंगे और गुरु की महिमा घट जाएगी हे सत्गुरु ! जब आपने मुझ जैसे दीन हीन का जहाज बिना बताए पार कर दिया तो अब आप इन ढोंगी बाबाओं से सिख समाज की डूबती न्यीआ को भी पार लगाने की कृपा करें तो ऐसे सतगुरु तेग बहादुर जी ने भी महसूस किया कि अब समय आ गया है कि सिखों को उनके नौवें गुरु से अवगत करवाया जाए और उसके बाद व्यापारी मक्खन शाह जी ने छत पर खड़े होकर जोर से ऐलान किया कि "गुरु लाधो रे" "गुरु लाधो रे" "गुरु लाधो रे" इन शब्दों का अर्थ है कि पूरे गुरु को खोज लिया गया है तो जब इस संदेश और घटनाक्रम का संगत को ज्ञान हुआ वह ढोंगीओ के चंगुल से निकलकर श्री गुरु तेग बहादुर जी के चरणों में हाजिर हुए तो ऐसे वहां पर संगत ने श्रद्धा पूर्वक वस्तुओं के ढेर लगा दिए और समस्त नगर सतगुरु तेग बहादुर जी की जय जय कार के साथ गूंज उठा, तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु कहलाए और उन्होंने अपने आशीर्वाद का हाथ सिखों पर रखा और रूहानियत के इस मार्ग पर सतगुरु ने सिख पंथ को आगे बढ़ाने के लिए रोहानियत का प्रचार किया सतगुरु नानक के उपदेश का प्रचार किया ।
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By Sant Vachan
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