Guru Nanak Sakhi । पढ़ाई-लिखाई को लेकर सतगुरु नानक क्या उपदेश करते है ? जरूर सुने

 

साध संगत जी आज की साखी आज के विकसित समाज से संबंधित है कि आज हमने जितना ज्ञान विकसित कर लिया है जो कुछ भी हमने हासिल कर लिया है इंसान ने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए जो कुछ भी बना लिया है आज की शिक्षा जितनी विकसित हो गई है उसको लेकर सतगुरु वाणी में हमें क्या उपदेश करते हैं आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी आज के समय में इंसान ने बहुत कुछ बना लिया है जिसका कोई अंत नहीं है इतना ज्ञान विकसित हो चुका है जिसकी कोई सीमा नहीं है ज्ञान के जितने साधन हमने बना लिए है यह पहले नहीं थे आज पृथ्वी पर जितने बड़े-बड़े स्कूल कॉलेज और यूनिवर्सिटी है यह पहले नहीं थी, विद्या प्राप्ति के जितने साधन हमने बना लिए हैं ये पहले मौजूद नहीं थे लेकिन यह भी सत्य है कि आज का पढ़ा लिखा व्यक्ति जितना मूर्ख है वह पहले नहीं था अगर हम कुछ साल पीछे चले जाएं 100-200 साल पीछे चले जाएं तो उस समय अनपढ़ समझदारओं की गिनती ज्यादा थी लेकिन आज के समय में पढ़े लिखे लोग जितने मूर्ख है वह पहले नहीं थे पढ़ाई लिखाई को लेकर सतगुरु वाणी में फरमान करते हैं :

"पढ़ेया मूर्ख आखिये जिस लब लोभ अहंकारा"

जिसका अर्थ है कि जिस पढ़ाई से अहंकार बढ़ गया हो, झूठ बढ़ गया हो, तृष्णा बढ़ गई हो वह पढ़ाई पढ़ाई नहीं है वह तो ऐसे है जैसे किसी ने दिया जलाया और उस दिए से अपने घर को ही जला दिया, साध संगत जी इसमें कोई शंका नहीं है कि आज विद्या प्राप्ति के बहुत साधन विकसित हो गए हैं और आज का हर व्यक्ति पढ़ा लिखा है समझदार है लेकिन पढ़ाई के साथ संभावित रूप से हमारे अंदर अहंकार निर्मित हो जाता है हम अपनी पढ़ाई को लेकर अहंकार करने लगते हैं हमारी आशाएं बढ़ जाती है तृष्णा बढ़ जाती है जिसका कोई अंत नहीं है और हम अपने उसी अहंकार को लेकर दूसरों की निंदा करते हैं अपने अहंकार को कायम रखने के लिए दूसरे की निरादरी करते हैं अपमान करते हैं ज्ञान अर्जित करने में किसी तरह की कोई मनाही नहीं है बल्कि यह तो बहुत अच्छी बात है कि हम संसार के प्रति और संसार के पदार्थों के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं ज्ञानवान बन रहे हैं लेकिन मुसीबत तब खड़ी होती है जब उस ज्ञान के साथ हमारे अंदर अहंकार भी प्रवेश कर जाता है और हम अपने उस ज्ञान को लेकर अहंकार में आ जाते हैं और वही अहंकार हमें हमारे पतन की ओर ले जाता है साध संगत जी ऐसी बहुत सारी उदाहरणे इतिहास में दर्ज है कि जब जब किसी ने अपने अहंकार को बढ़ावा दिया है तो उसका पतन करने के लिए कोई ना कोई ईश्वरीय शक्ति जरूर आई है साध संगत जी यहां पर सतगुरु हमें उपदेश करते हैं कि भाई ज्ञान लेने में कोई मनाही नहीं है बल्कि यह तो अच्छी बात है लेकिन ज्ञान अर्जित करते समय इस बात का ध्यान रखना कि कहीं उस ज्ञान को लेकर अहंकार ना हो जाए क्योंकि हमारा अहंकार हमारी बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है मनुष्य के पांच ही सबसे बड़े दुश्मन हैं जिसमें से पहला काम दूसरा क्रोध तीसरा लोभ चौथा मोह और पांचवां अहंकार और यह पांच दुश्मन करतार की बंदगी करने से ही हमारे वश में हो सकते हैं हमारे अधीन हो सकते है नहीं तो यह दिन रात हमें लूटने में लगे हुए हैं दिन रात हमें परेशान करते रहते हैं इनका इलाज केवल नाम भक्ति ही है इसलिए सतगुरु ने वाणी में नाम पर बहुत जोर दिया है बिना नाम सिमरन के इनसे छुटकारा नहीं हो सकता इनसे ऊपर उठा नहीं जा सकता इसलिए सतगुरु ने वाणी में बार-बार हमें नाम के साथ जुड़ने के लिए कहा है क्योंकि जब व्यक्ति गुरु से नाम की बख्शीश लेकर गुरु के बताए हुए मार्ग पर चलना शुरू कर देता है तो धीरे-धीरे उसके अंदर जितनी भी गंदगी पड़ी होती है जितने भी जन्मों-जन्मों के कर्म उसके बने होते हैं वह धीरे-धीरे साफ होने लगते हैं और व्यक्ति परमात्मा के नजदीक जाने लगता है शांत होने लगता है और जैसे-जैसे वह इस मार्ग पर आगे बढ़ता है वैसे वैसे वह और जागरूक होता जाता है उसकी देखने की दृष्टि दूसरों से अलग बन जाती है और जो व्यक्ति नाम सिमरन से जुड़ जाता है जिसको नाम धुन सुनाई देने लगती है फिर वह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं रह जाता वह तो खुद करतार का रूप हो जाता है देह रूप में परमात्मा हो जाता है लेकिन ऐसा हो पाना इतना आसान नहीं इसके लिए नाम सिमरन से जुड़ना पड़ता है अमृत वेले उठकर करतार की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना पड़ता है और जिसने एक बार नाम धुन सुन ली जिसको अंदर रस आने लगा फिर उसकी सभी चिंताएं खत्म हो जाती है उसको किसी बात की कोई चिंता नहीं रहती वह अपने मार्ग की ओर बढ़ता चला जाता है और अंत समय करतार में अभेद हो जाता है ऐसे व्यक्ति की जीवन लीला बहुत दिव्य होती है लेकिन ऐसे व्यक्ति बहुत कम होते हैं जो नाम सिमरन से जुड़े होते हैं जिनकी लिव हर समय उस करतार से जुड़ी रहती है क्योंकि बिना उसकी मैहर के ऐसा हो पाना संभव नहीं है केवल वही उसके नजदीक जा सकता है जिस पर उसकी कृपा होती है जिस पर उसका हाथ होता है उसकी मर्जी के बिना उसकी कृपा के बिना उसे मिलाप कर सकना संभव नहीं है व्यक्ति उसकी कृपा का पात्र तब बनता है जब वह इस मार्ग पर चलने का निश्चय कर लेता है जैसे जैसे वह इस मार्ग पर आगे कदम बढ़ाए चला जाता है वैसे वैसे ही परमात्मा उसको अपनी तरफ खींचने लगता है वह एक कदम चलता है तो परमात्मा आगे से 100 कदम चलकर उसके पास आने की कोशिश करता है तो साध संगत जी ज्ञान लेने में कोई मनाही नहीं है लेकिन अहंकारी हो जाने में हमारा ही नुकसान है क्योंकि जब भी व्यक्ति अहंकारी हो जाता है उसकी दूरी परमात्मा से बढ़ने लगती है क्योंकि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यह हमें अपने सच्चे घर की तरफ जाने से रोकते हैं और दूरी पैदा करते हैं, इसलिए हमें भी सतगुरु के इस उपदेश को अमल में लाकर अपना जीवन सफल करना है इस भवसागर से पार होना है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan




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