"मनने की गत कहीं ना जाएं ये को कहे पिशे पश्ताए"
साध संगत जी जो प्रभु करतार के सिमरन को सरवन कर मनन करते हैं उनकी गत या अवस्था कहीं नहीं जा सकती साध संगत जी जगत के कल्याण के लिए जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ जब ढाके बंगाल की धरती पर गए तो वहां पर सतगुरु ने करतार के नाम का कैसे होका दिया आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी, जब सतगुरु नानक संसार के उद्धार के लिए भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ ढाके बंगाल की धरती पर गए थे तो वहां पर सतगुरु नानक की भेट वहां के मशहूर चोर भूमिया के साथ हुई तो सतगुरु नानक ने उससे पूछा कि भाई तू क्या काम करता है ? तो भूमिया चोर ने सब कुछ सतगुरु नानक को बता दिया कि महाराज जी ! मैं एक चोर हूं, दिन रात चोरी करता हूं और चोरी करना ही मेरा कर्म है, चोरी किए हुए धन के साथ ही मेरा गुजारा होता है मेरा घर चलता है तो सतगुरु नानक ने भूमिया चोर को उपदेश करते हुए कहा कि हे भाई ! चोरी करनी अच्छी बात नहीं है किसी दूसरे का कमाया हुआ धन चोरी करना और उसको अपने उपयोग में लाना बहुत बड़ा पाप है जिसकी इस लोक में भी और परलोक में भी सजा मिलती है इसलिए तू हमारा वचन मान तू चोरी को छोड़कर कोई और काम कर तो सतगुरु नानक के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर भूमिया चोर हाथ जोड़कर सतगुरु नानक से कहने लगा कि सतगुरु जी आपकी बात तो ठीक है लेकिन मेरी भी मजबूरी है कि मैं केवल चोरी करना ही जानता हूं और कोई काम ना तो मैंने आज तक किया है और ना ही मैं कर सकता हूं चोरी करने के इलावा मुझे और कुछ भी नहीं आता है और अगर मैंने चोरी करनी छोड़ दी तो मैं अपने परिवार का पालन पोषण नहीं कर पाऊंगा और अपने परिवार सहित भूखा ही मर जाऊंगा तो इसलिए आप भी मुझे इस काम के लिए खिमा बख्शे और इसके अलावा आप मुझे जो भी उपदेश करेंगे जो भी आप मुझे कहोगे मैं आपकी सारी बातें मानूंगा लेकिन मैं चोरी किए बिना रह नहीं सकता तो उसके ऐसे वचन सुनकर सतगुरु नानक उसकी मानसिक अवस्था समझ गए और सतगुरु ने कहा कि ठीक है ! अगर तू चोरी करना नहीं छोड़ सकता तो तुझे हमारे तीन वचन मानने होंगे तो भूमिया ने सिर झुका कर कहा कि सतगुरु जी मैं आपके तीनों वचन मानने के लिए तैयार हूं आप जी हुकुम करो तो सतगुरु ने कहा कि पहला वचन है कि तुझे हमेशा सच बोलना है और दूसरा गरीब मार नहीं करनी और तीसरा वचन है कि किसी का नमक खाकर हराम नहीं करना तो सतगुरु के मुख से तीनों वचन सुनकर भूमिया ने सत्य वचन कह कर तीनों वचनों का पालन करने के लिए कहा और सतगुरु नानक से तीनों वचनों को निभाने का वादा किया तो सतगुरु नानक भाई भूमिया को उपदेश देकर और वहां पर मौजूद संगत को दर्शन देकर आगे चले गए तो उसके पश्चात भाई भूमिया अपने रोजाना कर्म के अनुसार चोरी करने के बारे में सोचने लगा कि चोरी तो करनी ही है परंतु सतगुरु के दिए हुए वह तीनों वचनों का पालन भी करना है क्योंकि सतगुरु ने कहा है कि गरीब मार नहीं करनी इसलिए राजे के महलों के अंदर ही चोरी करनी है वहां पर ही चोरी करनी बनती है अगर किसी और के घर चोरी की तो कहीं गरीब मार ना हो जाए तो भाई भूमिया चोरी करने के बारे में सोचने लगा की राज महल में कैसे जाऊं वहां पर इतने सैनिक मौजूद रहते हैं कैसे चोरी की जाए तो उसने योजना बनाई की राजाओं जैसे वस्त्रों को धारण किया जाए जिससे कि मुझे महल के अंदर जाने की आज्ञा मिल जाएगी और कोई भी मुझे रोक नहीं पाएगा तो अपनी योजना के अनुसार भाई भूमिया राजे के वस्त्र पहनकर आधी रात को महल में चला गया तो महल के अंदर मौजूद पहरेदारों ने अपनी ड्यूटी को निभाते हुए पूछा कि महाराज जी आप कौन हो और कहां से आए हो आपको किससे मिलना है और कहां जाना है ? तो उस समय भाई भूमिया को एकदम से ख्याल आया कि मैंने अपने गुरु को तीन वचनों का पालन करने का वादा किया है कि सच बोलना है झूठ नहीं बोलना तो उस समय उसने अपने मुस्कुराते हुए चेहरे से कहा कि आपको नहीं दिखता कि मैं चोर हूं इस समय मैं और कहां जाऊंगा मैं राजा के महल के अंदर चोरी करने जा रहा हूं और चोरी की योजना बनाकर ही जहां पर आया हूं तो जब पहरेदारों ने ऐसे वचन सुने तो वह सोचने लग गए कि हो सकता है कि यह किसी नजदीक प्रदेश का राजा हो और हमारे राजा का मित्र हो इसलिए तो यह मजाक में ऐसे बोल रहा है और अगर हमने इसको रोक लिया तो कहीं सुबह होते ही इसकी खबर हमारे राजा को ना मिल जाए कि हमने उनके मित्र को उनके महल में जाने से रोका और उसके पश्चात वह हमें कोई सज़ा ना सुना दे तो यह सोचकर वह पहरेदार कहने लगे कि महाराज हमें क्षमा करना कि हमने आपसे प्रश्न किए, लेकिन यह तो हमारा फर्ज था हम तो अपनी ड्यूटी कर रहे थे इसलिए आप हमें क्षमा करें और आप महल के अंदर जा सकते हो तो भाई भूमिया बड़े आराम से महलों के अंदर चला गया तो जब महल के अंदर गया तो उसने देखा कि सभी सोए हुए हैं तो उसने पूरे महल को जांचा, कीमती सामान हीरे जवाहरात धन पदार्थ और गहनों की गठियां बांध ली और इसी तरह खोजता खोजता महल की छत पर चला गया और वहां पर एक बर्तन पड़ा हुआ था और जब उसने उस में हाथ डाला तो उसने देखा कि उसमें कोई पदार्थ मौजूद है तो जब उसने उसको हाथ में लिया और देखा और अपने आप से प्रश्न किया कि यह क्या है ? तो जब उसने उसको चख कर देखा तो उसने पाया कि यह तो राजे का नमकीन चूर्ण है तो उसको ध्यान आया कि मेरे गुरु का वचन है कि किसी का नमक खाकर नमक हराम नहीं करना इसलिए अब मुझे यहां से चोरी किया हुआ माल यहां से नहीं लेकर जाना चाहिए क्योंकि मेरे गुरु का मुझे यही हुक्म है तो गुरु का हुक्म मान कर भाई भूमिया ने वहां से कुछ भी नहीं चुराया और खाली हाथ वापस आ गया तो दूसरे दिन जब सुबह हुई तो महल में सब कुछ इधर उधर बिखरा पाया गया, कीमती सामान की गठियां बांधी हुई पाई गई और जांच करने पर पता चला कि कोई चोरी करने की योजना से यहां पर आया था लेकिन हैरानी की बात यह है कि अपने साथ लेकर कुछ भी नहीं गया ऐसा चोर कौन हो सकता है तो जब राजा ने रात को पहरा देने वाले पहरेदारों से पूछा तो उन्होंने बताया कि महाराज जी रात के समय राजाओं के लिबास में राजाओं की पोशाक में एक व्यक्ति आया था और हमने उससे पूछा था कि आप कहां जा रहे हैं और आपको किससे मिलना है तो उसने कहा कि मैं एक चोर हूं और चोरी करने की योजना से यहां आया हूं लेकिन हमने उसको आपका मित्र समझा और उसके वचनों को मजाक समझा और उसको अंदर जाने की आज्ञा दे दी और वह कहने लगे कि महाराज हमसे गलती हो गई हमें क्षमा बक्शे, यह काम उसी का हो सकता है उसके अलावा और कोई भी अंदर नहीं आया तो ये सुनकर राजा ने हुकुम किया कि चोर को ढूंढा जाए और उसको मेरे सामने पेश किया जाए तो राजा का हुक्म पाकर सैनिक नगर में चले गए और उसकी तलाश करने लगे जो भी उनके सामने आता उसकी कुटमार करते और उससे चोर के बारे में पूछते तो इस तरह पूरे नगर में गरीब मार होने लगी तो दूसरी तरफ भाई भूमिया को भी इस बात की खबर हुई और वह सोचने लगा कि उसकी गलती के कारण गरीब और निर्दोष मारे जा रहे हैं और भाई भूमिया को सतगुरु का वचन याद आया कि गरीब मार नहीं करनी परंतु वह सोचने लगा कि ये सारी गरीब जनता तो मेरी गलती के कारण ही मारी जा रही है तो अपने आसपास ऐसा होता हुआ देख भाई भूमिया राजा के दरबार में चला गया और वहां जाकर भाई भूमिया ने अपना जुर्म कबूल किया और वह महाराज से कहने लगा की हे महाराज ! आप इन निर्दोष गरीब जनता को छोड़ दो आप का दोषी में हूं मैं ही आपके महल में राजाओं के वेश को धारण कर चोरी करने की योजना से यहां आया था और मैंने आपके कीमती सामान की गठियां भी बाद ली थी लेकिन बाद में मैंने यह सब यहीं पर ही छोड़ दिया इसलिए चोर मैं हूं और मेरी गलती की सजा किसी गरीब को ना दो तो राजा ने पूछा कि अगर तू चोर है और चोरी करने के इरादे से हमारे महल में आया था तो फिर बंधा हुआ सामान लेकर क्यों नहीं गया तो राजा के ऐसे वचन सुनकर भाई भूमिया ने सारी वारदात राजा को सुना दी कि महाराज मैंने श्री गुरु नानक देव जी से उनके तीन वचन मानने का वादा किया था कि झूठ नहीं बोलना, नमक खाकर हराम नहीं करना और गरीब मार नहीं करनी इसलिए मैंने गरीबों के घर छोड़कर आपके राज महल में चोरी करने के बारे में सोचा था और पहरेदारों के पूछने पर मैंने सत्य बोला था कि मैं चोर हूं और महलों के अंदर चोरी करने के इरादे से आया हूं जब मैं आपके महलों के अंदर गया और वहां पर कीमती सामानों की गठरियां बांध ली और उसके बाद जब मैं महल की छत पर गया वहां पर आपका नमकीन चूरन पड़ा हुआ था तो मैंने उसको चख लिया तो उसके बाद मैंने अपने गुरु के वचन के अनुसार नमक हरामी नहीं की और सारा कीमती धन मैंने वहीं पर छोड़ दिया तो ये सुनकर राजा सारी बात समझ गया और यह भी समझ गया कि अगर इसको महल की छत पर पड़े नमकीन चूर्ण का पता है तो यही आदमी रात के समय महल के अंदर आया था और यही असली चोर है तो उसकी इस वारदात को सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ और सोचने लगा कि भले ही ये चोर है लेकिन यह अपने गुरु के वचनों को मानने के लिए कितना पक्का है और कितना वफादार है तो राजा ने उसकी गलती को माफ कर दिया और उसकी गलती को माफ कर उसे अपना वजीर बना लिया तो ऐसे उसकी चोरी करने की आदत भी छूट गई उसके पश्चात वह हर रोज गुरु के नाम को सिमरता और दिए गए शब्दों का उच्चारण करता तो उसकी ऐसी संगत के कारण राजा भी सतगुरु नानक का श्रद्धालु बन गया तो उसने धर्मशाला बनवाई और वह भी सतगुरु नानक के नाम सिमरन को सिमरने लगा कि मुझे भी सतगुरु नानक के दर्शन और उनका उपदेश हासिल हो तो एक दिन उसकी ये इच्छा भी पूरी हो गई एक दिन सतगुरु नानक ने उसको दर्शन देकर उसको ब्रह्म ज्ञान बक्श दिया तो साध संगत जी ये साखी हमें सिखाती है कि सतगुरु नानक के वचनों को मानने से भूमिया की चोरी करने की आदत छूट गई और राजे का वजीर बनकर संसार के सुखों की प्राप्ति के साथ-साथ गुरु नानक देव जी की खुशियों का पात्र बन कर सचखंड का अधिकारी भी बन वह गया, साध संगत जी इसी प्रकार श्री गुरु अर्जन देव जी ने अपने पिता श्री गुरु राम दास जी का वचन मानकर विछोडे की पीड़ा तो सहन कर ली लेकिन वचन नहीं तोड़ा जिसके फलस्वरूप सतगुरु गुरु गद्दी के मालिक बने यह सब वचन मानने की ही बरकत है साध संगत जी आज के प्रसंग की यहीं पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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